इस लेख में cocopeat kya hai, कोकोपीट का उपयोग कैसे करें, कोकोपीट कैसे बनाया जाता है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
क्या आप भी प्लांटिंग करना पसंद करते हैं या खेती में रुचि रखते हैं? यदि हाँ तो आपको कोकोपीट के बारे में जरूर मालूम होगा। क्योंकि पिछले कुछ सालों से कोकोपीट का प्रयोग खेती में काफी ज्यादा किया जा रहा है।
कोकोपीट में पौधे के विकास के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिस कारण बड़ी मात्रा में इसका प्रयोग मिट्टी के साथ किया जाता है।
वैसे सैकड़ों सालों से नारियल के रेसों से रस्सी, ब्रश, चटाई, मछली पकड़ने का जाल यहाँ तक कि फर्नीचर और मेट्रस के गड्ढे में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है।
लेकिन अब नारियल के रेशों से कोकोपीट का निर्माण करके खेती में इसका उच्च मात्रा में उपयोग किया जा रहा है, जो पौधों के अच्छे विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कोकोपीट क्या है
कोकोपिट एक तरह की नारियल की भूसी होती है और नारियर से नारियल कॉइर तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान कोकोपीट प्राप्त किया जाता है।
जब नारियर के ऊपरी परत को निकालने के बाद जो भूसी प्राप्त होती है, उस भूसी में मौजूद रेशे को हटा देने के बाद बचा शेष धूल युक्त उत्पादक कोकोपीट कहलाता है।
कोकोपीट को कोयर पिट या कोयर डस्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरी तरह एक ऑर्गेनिक उत्पादक होता है, जिसमें किसी भी तरह का केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता।
यही कारण है कि यह पौधों के विकास के लिए लाभकारी माना जाता है। यह ऐंटिफंगल होता है, जिससे बीज के रोपण में फायदा मिलता है।
इसके साथ ही मिट्टी के सुधार करने, पॉटिंग मिश्रण तैयार करने और हाइड्रोपोनिक उत्पादन में इसका काफी उपयोग किया जाता है।
श्रीलंका विश्व का सबसे ज्यादा कोकोपीट उत्पादक देश है, इसके बाद दूसरे स्थान पर भारत आता है। भारत में सबसे ज्यादा केरल राज्य में कोकोपीट का निर्माण होता है क्योंकि वहाँ पर नारियल का उत्पादन अत्यधिक मात्रा में होता है।
उसके साथ ही भारत का अन्य नारियल उत्पादक राज्य भी बड़ी मात्रा में कोकोपीट का निर्माण करते हैं। कोकोपीट के अत्यधिक निर्माण करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से ही भारत सरकार ने Coir Board India नाम से क योजना की शुरुआत की।
साल 2016 में भारत में इंडिया इंटरनेशनल कॉइर फेर का आयोजन किया गया गया था, जिसके अंतर्गत नारियल इंडस्ट्री के वेस्ट से करोड़ों का इंडस्ट्री बना और इसके कारण हजारों गरीब लोगों की आमदनी का भी जरिया मिला।
कोकोपीट का इतिहास
कोकोपीट का इतिहास इतना लम्बा भी नहीं है। हालांकि कोकोपीट जो पिटमॉस को ही रिप्लेस करके बस अपनी जगह बनाई है, उसका इतिहास काफी लंबा है।
दरअसल, पिट मोस यूरोप और अमेरिका महाद्वीप के कुछ खास इलाकों में पाया जाने वाला हज़ारों साल से वनस्पति के सड़ने गलने से बना एक चादर है, जो भूमि के ऊपर चादर जैसा परत बनाया हुआ नजर आता हैं।
इसे खोदकर निकाला जाता है। इस तरह का पिटमॉस का चादर पूरे विश्व के कुल छेत्रफल के लगभग 37 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाया जाता है और काफी लंबे समय से इसका प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता रहा है।
लेकिन पश्चिमी देशों ने पिटमॉस का प्रयोग खेती में भी व्यापक रूप से करना शुरू किया। लेकिन पिटमॉस का अत्यधिक प्रयोग करना पर्यावरण के अनुकूलता के खिलाफ़ था।
जिसके कारण श्रीलंका में नारियल के रेसों से पिटमॉस के जगह किसी और रूप के प्रयोग करने की स्टडी शुरू हुई और काफी लंबे समय तक यह स्टडी चलने के बाद आखिर कार यह सफल रही और कुछ ही सालों में पिटमॉस के जगह पर कोकोपीट का प्रयोग शुरू हो गया।
वैसे ऐसा नहीं है कि कोकोपीट आ जाने से पीठ मोस का प्रयोग बागवानी में पूरी तरीके से बंद हो गया है। अभी भी बागवानी में पिट मोस का प्रयोग होता है, लेकिन पहले की तुलना में काफी कम होता है ताकि पर्यावरण का कोई नुकसान न हो।
कोकोपीट कैसे बनाया जाता है?
कोकोपीट का औद्योगिक स्तर पर निर्माण ज्यादातर वैसे इलाकों में किया जाता है, जहाँ पर अत्यधिक मात्रा में नारियल का उत्पादन होता। नारियल समुद्री इलाकों में उगते हैं और वहाँ पर बड़े मात्रा में नारियल से कोकोपीट का निर्माण किया जाता है।
हरे नारियल से कोकोपीट बनाने में ज्यादा समय लग जाता हैं। वहीं सूखे हुए नारियल से कम समय में ही कोकोपीट बनाया जा सकता है।
कोकोपीट बनाने के लिए सूखे हुए नारियल को बड़े-बड़े फार्मों पर कुछ सालों तक पानी में छोड़ दिया जाता है। इन नारियल को मीठे पानी या फिर समुद्री पानी में भी छोड़ कर रखा जाता है।
लेकिन जिन नारियल को समुद्री पानी में छोड़ कर रखा जाता है, उन्हें पानी से निकालने के बाद ताजे पानी में भी मिक्स किया जाता है ताकि इसके अंदर समुद्री पानी के नमकीनपन को हटाया जा सके।
पानी से निकालने के बाद नारियल के रेशे को निकाल लिया जाता है और बचा शेष हिस्सा कुछ महीने के लिए धूप में सूखने रख दिया जाता है।
कुछ महीनों तक पूरी तरीके से सूख जाने के बाद इसको तीन रूप में तैयार किया जाता है। पहला बुरादे के रूप में, दूसरा चिप्स के रूप में, तीसरा रेशे के रूप में।
जो बुरादे या चूरे के रूप में होता है, उन्हे पानी में मिक्स करके निचोड़ कर, उन्हें कंप्रेस करके क्यूब या ब्रीक्स का स्वरूप दे दिया जाता और फिर पैकेट में पैक करके बेचा जाता है।
कोकोपीट के फायदे (Cocopeat Benefits)
- कोकोपीट में मिट्टी की तुलना में पानी को संग्रहित करने की क्षमता ज्यादा होती है। एक किलोग्राम कोकोपीट लगभग 10 लीटर पानी को सोंख सकता है। ऐसे में मिट्टी के साथ कोकोपीट का उपयोग करने से लंबे समय तक पानी बरकरार रखता है और पौधों को लंबे समय तक पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती है।
- कोकोपिट में अच्छा Aeration का गुण होने के कारण यह मिट्टी को हवा युक्त बनाता है, जिससे पौधे को उचित मात्रा में ऑक्सीजन मिलते रहता है, जिससे पौधे सवस्थ तरीके से विकास करते हैं। इसके साथ ही पौधों के जड़ भी अच्छे से फेल पाते हैं, जिससे पौधा मजबूत बनता है।
- कोकोपीट में रेशे जैसी संरचना होती है, जिसके कारण पोषक तत्व को अच्छे से स्टोर करके रखता है। यदि आप कोकोपीट मिक्स किए हुए मिट्टी में किसी भी तरह के फर्टिलाइजर को मिक्स करते हैं तो कोकोपीट मे अच्छी Drainage ड्रेनेज होने के कारण पोषक तत्व लंबे समय तक स्टोर रहते हैं और जरूरत के हिसाब से पौधों को पोषक तत्व मिलते राहत है। उसी जगह पर सिर्फ मिट्टी रहने से मिट्टी के छिद्र से पोषक तत्व निकल जाते हैं।
- कोकोपीट में जल निकासी की प्रक्रिया भी बहुत अच्छी होती है। मिट्टी में कोकोपीट मिलाने से जलभराव की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है, जिसके कारण पौधों के जड़ों के सड़ने की कोई संभावना नहीं रहती और पौधे अच्छे से विकास करते हैं।
- कोकोपीट अत्यधिक संपीड़ित होने के कारण इसे लंबे समय तक संग्रहित करना आसान होता है।
- कोकोपीट में किसी भी तरह का हानिकारक रसायन नहीं होता, जिसके कारण यह पर्यावरण के अनुकूल होता है और इसके उपयोग से किसी भी तरह का प्रदूषण उत्पन्न नहीं होता।
- मिट्टी के तुलना में कोकोपीट वजन में काफी हल्के होते हैं और यही इसका प्रमुख गुण है। कम वजन होने के कारण कोकोपीट को एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसपोर्ट करना बेहद ही आसान होता है। इसे आप नर्सरी में ऑनलाइन मांगा सकते हैं। छत या बाल्कनी में रखे गमलों में भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। ज्यादा वजन ना होने के कारण महिलाएं भी आसानी से गमलों को जरूरत के अनुसार इधर उधर खिसकाने में सक्षम हो पाती है।
- कोकोपीट में बैक्टीरिया और कवक के प्रति प्रतिरोधी का गुण रखता है, जिसके कारण यह पौधों में बैक्टीरिया या कवक को विकसित होने नहीं देता।
- कोकोपीट की एक और अच्छी खासियत यह है कि यह धीरे-धीरे विघटित होता है, जिसके कारण कोकोपीट को बार-बार उपयोग करने की जरूरत नहीं पड़ती है। एक बार कोकोपीट के उपयोग करने के बाद काफी लंबे समय के बाद यह विघटित होता है।
कोकोपीट का इस्तेमाल करते समय क्या सावधानियां रखें?
जैसे हमने आपको पहले ही बताया कि कोकोपीट का निर्माण करने के दौरान बहुत जगह पर इसे समुद्र के खारे पानी में भिंगो कर रख दिया जाता है।
ऐसे में तैयार कोकोपिट में नमक की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जो पौधों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
ऐसे में जब आप कोकोपीट का उपयोग करें तो इसे कुछ समय के लिए पानी में भिंगोकर रख दे ताकि कोकोपीट में संग्रहित नमक की अत्यधिक मात्रा निकल जाये।
इस तरह कोकोपीट का उपयोग करते समय उसमे संग्रहित नमक की उचित मात्रा का ध्यान जरूर रखना चाहिए।
इसके अतिरिक्त बहुत लोग घर पर ही कोकोपीट का निर्माण करते हैं, जिसके डीकंपोजिशन में लंबे समय का वक्त लगता है, जिसके कारण वे सीधे नारियल के छिलके को निकालकर गमले में डाल देते हैं।
लेकिन ऐसा करना सही नहीं है। क्योंकि जब आप गमले में सीधे नारियल के छिलके को डाल देते हैं तो ये धीरे-धीरे डिकंपोज होता है और डिकंपोज होने के लिए नाइट्रोजन की जरूरत पड़ती है, जो यह मिट्टी में रहे नाइट्रोजन को शोषित करके प्राप्त कर लेते हैं।
इससे पौधों को आवश्यक नाइट्रोजन मिल नहीं पाता है और इससे उनका ग्रो अच्छे से नहीं हो पाता। इसलिए ध्यान रहे कभी भी बिना डिकंपोज किया हुआ नारियल का छिलका सीधे गमले में न डालें।
घर पर कोकोपीट बनाने की प्रक्रिया
अगर आप घर पर गार्डनिंग करते हैं तो पौधों को हेल्दी तरीके से ग्रो करने के लिए आप घर पर ही कोकोपीट का निर्माण कर सकते हैं।
हालांकि इसमें कुछ महीनों का वक्त लगता है, लेकिन निम्नलिखित प्रक्रिया को स्टेप बाई स्टेप फॉलो करके आप बहुत अच्छे तरीके से घर पर ही कोकोपीट बना सकते हैं।
- सबसे पहले तो आपको घर में कोई भी एक बेलनाकार बर्तन लेना है जैसे कोई भी बाल्टी या कोई भी प्लास्टिक का कंटेनर।
- उसके बाद उसमें नारियल के छिलके को रख देना है और फिर उसे पानी से भर देना है।
- आपको तीन महीने तक उसे पानी में ही भींगने रहने देना है। समय समय पर आपको उसे देखते रहना है। क्योंकि इसमें पानी कम होते जाता है, इसलिए आपको बीच-बीच में पानी डालते रहने की जरूरत है।
- तीन-चार महीने के अंदर ये नारियल के छिलके कम्पोस्ट होने शुरू हो जाएंगे। उसके बाद आप इन नारियर के छिलकों को निकाल सकते हैं।
- जब यह नारियल के छिलके कम्पोस्ट हो जाते हैं तो नारियल की ब्राउन जटा ब्लैक रंग में नजर आती है।
- डीकंपोज होने के बाद नारियल के छिलके से रेशे और बुरादो को अलग करना बहुत ही आसान हो जाता है।
- अब आप सीधे अपने पौधों में इसका इस्तमाल कर सकते हैं या फिर आप चाहे तो इन बुरादो को घर के ऑर्गेनिक पदार्थ जैसे अंडे के छिलके या बची हुई चाय पति के साथ मिक्स करके भी पौधों में डाल सकते हैं। इस तरह आपके पौधे काफी सवस्थ तरीके से ग्रोव होंगे।
FAQ
कोकोपीट में मिट्टी की तरह समान पोषक तत्व नहीं होते है। इसमें पोषक तत्वों की कमी होती है। लेकिन इसमे ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर मिलाने से यह मिट्टी से भी ज्यादा पौधों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कोकोपीट एक आर्टिफिशियल मिट्टी है, जिसे नारियल के छिलकों से बनाया जाता है।
हाँ, मिट्टी के साथ कोकोपीट को मिलाने से पानी लंबे समय तक स्टोर रहता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी हवा युक्त बनता है, जिससे उचित मात्रा में पौधों को ऑक्सीजन प्राप्त होता है।
कोकोपीट की यही अच्छी गुणवत्ता है कि यह बहुत धीरे-धीरे विघटित होता है, जिसके कारण कोकोपीट को बार बार पुनः उपयोग करने की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर एक बार मिट्टी में कोकोपीट डाल दिया जाए तो लगभग 4 साल के बाद इसका पुनः उपयोग कर सकते हैं।
कोकोपीट का प्रयोग फ़र्न, ब्रोमेलियाड, ऑर्किड, एन्थ्यूरियम जैसे विदेशी पौधे इसके अतिरिक्त सांप के पौधे, पीस लिली, बोन्साई और कंटेनरीकृत सजावटी पौधों के विकास के लिए कर सकते हैं।
कोकोपीट में लंबे समय तक जल संग्रहित करने की क्षमता, Drainage और Aeration का गुण पाया जाता है।
निष्कर्ष
इस लेख में आपने हॉर्टिकल्चर में प्रयोग किया जाने वाला आर्टिफिशियल मिट्टी कोकोपीट के बारे में जाना। जो लोग गार्डनिंग करने का शौक रखते हैं, पौधों के अच्छे विकास के लिए उन्हें कोकोपीट के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख के जरिए कोकोपीट क्या होता है (cocopeat in hindi), कोकोपीट कैसे बनाया जाता है और कोकोपीट के क्या फायदे हैं? इस तरह कोकोपीट संबंधित सारी जानकारी आपको प्राप्त हो गई होगी।
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