वैसे तो मराठा साम्राज्य के शासक कई हुए, जिनमें से कुछ शासकों का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है।
एक ऐसे ही मराठा साम्राज्य के शासक छत्रपति शाहू महाराज हैं, जो इतिहास में आज भी बड़े सम्मान के साथ याद किए जाते हैं।
कोल्हापुर के इतिहास में यह एक अमूल्य मणि के रूप में प्रसिद्ध है, जो एक राजा होते हुए भी प्रजातंत्रवादी और सच्चे समाज सुधारक थे। इन्होंने समाज के विकास और दलित वर्गों के कष्ट को दूर करने के लिए जितने भी क्रांतिकारी कार्य किए शायद ही ऐसा कार्य किसी और ने किया होगा।
इन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया को शुरू करने से लेकर गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित करना, भारी छात्रों को शरण प्रदान करना, बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना जैसे सैकड़ों सामाजिक कुप्रथा पर अंकुश लगाने का कार्य किया।
इस लेख में महान छत्रपति शाहू महाराज के जीवन परिचय (Chhatrapati Shahu Maharaj Biography in Hindi) के जरिए उनके प्रारंभिक जीवन से लेकर उनके संपूर्ण शासन काल के बारे में जानेंगे।
छत्रपति शाहू महाराज का जीवन परिचय (Chhatrapati Shahu Maharaj Biography in Hindi)
नाम | छत्रपति शाहू महाराज |
जन्म और जन्मस्थान | 26 जून 1874, कागल गांव, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) |
माता का नाम | राधाबाई |
पिता का नाम | जय श्री राव |
पत्नी का नाम | लक्ष्मीबाई |
राज्याभिषेक | 1894 |
घराना | भोंसले |
धर्म | हिंदू |
शासनावधि | 1894–1922 |
मृत्य | 10 मई, 1922, खेतवडी (मुंबई) |
शाहू महाराज का प्रारंभिक जीवन
शाहू महाराज का जन्म 26 जून 1874 को महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर जिले के कागल नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम जयश्री राव और माता का नाम राधाबाई था।
बचपन में इनका नाम यशवंतराव हुआ करता था। शाहू महाराज की माता मुधोल के शाही परिवार से ताल्लुक रखती थी, वहीं इनके पिता जयश्री राव घाटगेट गांव के प्रमुख हुआ करते थे।
जब यह 3 वर्ष के थे, उसी समय इनकी माता का निधन हो गया था। उस समय उनका लालन-पालन इनकी दादी जीजाबाई ने किया था। 20 वर्ष की उम्र में इनके पिता की भी मृत्यु हो गई।
कहा जाता है कि जब शाहू महाराज 10 वर्ष के थे, उसी समय कोल्हापुर रियायत के राजा शिवाजी चतुर्थ की पत्नी आनंदीबाई ने इन्हें गोद लिया था।
दरअसल उस समय ब्रिटिश षड्यंत्र और ब्राह्मण दीवान ने शिवाजी चतुर्थ के साथ गद्दारी की, जिसके कारण इनका कत्ल हो गया।
चूंकि इनका कोई वंशज नहीं था, इसीलिए इनकी पत्नी आनंदीबाई ने 17 मार्च 1884 में यशवंतराव को गोद लिया था। बाद में यही आगे चलकर छत्रपति शाहू महाराज कहलाए और कोल्हापुर रियायत के वारिस बने।
बात करें इनके विवाह की तो 1891 में इनका विवाह बड़ौदा की रहने वाली लक्ष्मीबाई खानविलाकर नाम की महिला से हुआ था। विवाह के पश्चात इन्हें दो पुत्र और दो पुत्रियां हुई।
शाहू महाराज का राज्याभिषेक
छत्रपति शाहू महाराज को शिवाजी चतुर्थ की पत्नी आनंदीबाई ने गोद लिया था। 20 वर्ष की उम्र में इनका राज्याभिषेक हुआ। यह कोल्हापुर रियायत के अगले राजा बने। 1894 में इनका राज्याभिषेक हुआ था।
ये असल में शूद्र जाति से संबंध रखने के कारण राज्यभिशेषक समारोह के दौरान ब्राह्मणों ने अपने पैर के अंगूठे से इनका राजतिलक किया, जिसके कारण इन्हें काफी ज्यादा पीड़ा हुई।
यही कारण था कि आगे चलकर इन्होंने समाज में व्याप्त वर्ण के आधार पर होने वाले जाति भेदभाव को रोकने के लिए कई प्रयास किए।
वैसे एक शासक के रूप में यह बहुत अच्छे राजा साबित हुए। आमतौर राजा अपने प्रजा से जबरन या हड़पकर उनसे टैक्स वसूला करते थे लेकिन छत्रपति शाहू महाराज ने अपनी प्रजा के नजरों में अपनी छवि को बहुत महान बनाया।
इन्होंने राजव्यवस्था में काफी परिवर्तन किया। इनका मानना था कि शासन की उन्नति में हर जाति के लोगों की सहभागिता होना जरूरी है।
शाहू महाराज की शिक्षा
शाहू महाराज ने अपनी शिक्षा राजकोट के राजकुमार महाविद्यालय और धारवाड़ से प्राप्त की थी।
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शाहू महाराज का विवाह
शाहू महाराज ने चार राजकुमारियों से विवाह किया था। इस प्रकार इनकी 4 पत्नियां थी और बात करें इनके संतान की तो इनकी चार पुत्रियां और 2 पुत्र थे।
इन्होंने अपने दोनों पुत्रों को गोद लिया था, जिसमें से एक पुत्र का नाम संभाजीराजे था। शाहू महाराज की मृत्यु के बाद उनका पुत्र राजाराम तृतीय मराठा साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठा था।
वहीं उनके दूसरे दत्तक पुत्र का नाम फतेहसिंह प्रथम था, जो मेहरबान सयाजी लोखंडे के पुत्र थे, जो बारूद के पाटील हुआ करते थे।
गोद लेने से पहले इनका नाम रानू जी लोखंडे था, जिन्हें बाद में फतेह सिंह राजे साहिब भोसले के नाम से जाना जाने लगा। शाहू महाराज ने इन्हें अक्कलकोट शहर और उसके आसपास के क्षेत्र सौंपे थे।
शाहू महाराज ने एक पुत्री को भी गोद लिया था तब वह 3 वर्ष की थी। उसका नाम पार्वतीबाई था। 15 वर्ष की उम्र में शाहू महाराज ने अपनी उस दत्तक पुत्री का विवाह श्रीमंत सदाशिव राव भाऊ से करवाया था।
छत्रपति शाहू महाराज के द्वारा किए गए सामाजिक कार्य
1894 में कोल्हापुर रियायत के राजा बनने के बाद शाहू महाराज ने जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग किस तरह पीस रहा है, इसे बहुत करीब से देखा और फिर उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए कई योजना बनाकर उस पर अमल आरंभ किया।
इन्होंने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले, छात्रावास भी बनाए ताकि उन लोगों में शिक्षा का प्रचार हो और उनकी सामाजिक स्थिति भी बदले।
हालांकि उनके इस सामाजिक और अच्छे कार्यों के विरोध करने वाले भी समाज में उच्च वर्ग के कुछ लोग बैठे हुए थे, जिन्होंने उन्हें अपना दुश्मन समझ लिया था।
यहां तक कि छत्रपति शिवाजी महाराज की पुरोहित भी उनका विरोध करते हुए हैं। बोले कि आप तो शुद्र हो चुके हैं और शुद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार ही नहीं है।
लेकिन शाहू महाराज ने किसी की बात से हार नहीं मानी और वे अपने निर्णय पर डटे रहे। क्योंकि उन्हें सामाजिक कार्य करने थे, समाज के कुरीतियों, प्रथाएं और अंधश्रद्धा को जड़ से समाप्त करना था।
समाज का यह रूढ़िवादी सोच ना केवल इन्हें अपने क्षेत्र बल्कि पूरे भारत भ्रमण के दौरान हर जगह सामना करने को मिला।
कोल्हापुर के महाराज होने के बावजूद भारत भ्रमण के दौरान इन्हें हर जगह जातिवाद के विष पीने पड़े। हर स्थान पर इन्हें रूढ़िवादी ढोंगी ब्राह्मणों का सामना करना पड़ा, जो इनसे कर्मकांड कराना चाहते थे, लेकिन इन्होंने हमेशा ही इन रूढ़िवादी विचारों का विरोध किया।
शाहू महाराज को बहुत दुख होता था जब समाज में एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा अत्याचार होता था। जब यह लंदन में एडवर्ड सप्तम के राज्य अभिषेक समारोह के बाद भारत वापस लौटे थे, उस समय इन पर समुद्र पार करने, अपवित्र होने जैसे कई आरोप लगाए गए थे।
ऐसे में समाज की स्थिति को सुधारना बहुत ही जरूरी हो गया था। ऐसे में समाज में सभी वर्ग का एक समान योगदान हो इसके लिए उन्होंने 1902 में अति शुद्र और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 50% आरक्षण देने की शुरुआत की।
यहां तक कि निम्न वर्ग के लोगों को रोजगार प्रदान करने के लिए 1906 में इन्होंने शाहू छत्रपति बुनाई और स्पिनिंग मिल की भी शुरुआत की।
पिछड़े वर्ग के लोगों शिक्षा के महत्व को बढ़ाने के लिए इन्होंने अनगिनत कार्य किए। इन्होंने कोल्हापुर में शूद्रों के शिक्षा संस्थाओं की श्रृंखला खड़ी कर दी। राजाराम कॉलेज का निर्माण शाहू महाराज ने किया।
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इन्होंने अलग-अलग समुदायों के अनुसार छात्रावास स्थापित किया, मिस क्लर्क बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की।
गरीब मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति देने की भी शुरुआत की। शुद्र वर्ग के लोगों में शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया।
शिक्षा के क्षेत्र में न केवल आधुनिक शिक्षा बल्कि हमारी संस्कृति को फैलाने का भी कार्य किया। इन्होंने वैदिक स्कूलों की स्थापना की, जिसमें सभी वर्ग के छात्रों को हमारे हिंदू शास्त्र और संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा दिया।
शाहू महाराज ने सामाजिक कुरीतियों को भी खत्म करने के लिए कई योजनाओं की शुरूआत की, कई प्रयास किए, जिसमें इन्होंने बंधुआ मजदूरी को समाप्त किया, सती प्रथा, बाल विवाह, देवदासी प्रथा जैसे अनगिनत सामाजिक कुरीतियों पर अंकुश लगाने के लिए इन्होंने अनेकों कार्य किए।
एक राजा होने के बावजूद इन्होंने संपूर्ण जीवन एक समाज सेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे कुचले वर्ग के उत्थान के लिए इन्होंने समाज के उच्च वर्ग के लोगों के विरोध का विष पिया।
इन्होंने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की भी कई बार आर्थिक सहायता की। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर इन्हें सामाजिक लोकतंत्र के जनक कहते थे।
छत्रपति शाहू महाराज का निधन
छत्रपति शाहू महाराज की मृत्यु 6 मई 1922 को कोल्हापुर में हुई थी। छत्रपति शाहू महाराज का मात्र 47 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। इनकी मृत्यु के बाद इनके बड़े पुत्र राजाराम तृतीय कोल्हापुर के उत्तराधिकारी बने।
FAQ
मराठा साम्राज्य के शासक छत्रपति शाहू महाराज सामाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। इन्होंने ही पहली बार 50% आरक्षण की शुरुआत की। इसके अतिरिक्त इन्होंने पुनर्विवाह कानून को मान्यता दी। समाज के दलित वर्ग के प्रति हमेशा ही सामाजिक कार्य किए। किसी भी वर्ग से यह द्वेष नहीं रखते थे। सामाजिक परिवर्तन की दिशा में इन्होंने कई क्रांतिकारी कार्य किए।
छत्रपति शाहू महाराज के सामाजिक कार्यों को देखते हुए डॉ बी आर आंबेडकर ने उनके तारीफ में इन्हें सामाजिक लोकतंत्र का जनक कहा था।
छत्रपति शाहू महाराज के पिता का नाम जय श्री राव था। लेकिन कोल्हापुर रियायत के राजा शिवाजी चतुर्थ की पत्नी आनंदीबाई ने छत्रपति शाहूजी महाराज को गोद लिया था, जिसके बाद छत्रपति चतुर्थ भी इनके पिता कहलाते हैं।
शाहू महाराज दलित वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारना चाहते थे, इसीलिए इन्होंने समाज के दलित वर्गों को रोजगार प्रदान करने के लिए साल 1906 शाहू छत्रपति बुनाई और स्पिनिंग मिल की शुरुआत की थी।
छत्रपति शाहू महाराज से पहले कोल्हापुर रियायत के राजा छत्रपति चतुर्थी थे, जिनके साथ कुछ ब्राह्मण दीवान ने ब्रिटिश के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा और इनके साथ गद्दारी की, जिसमें इनकी हत्या कर दी गई। जिसके बाद छत्रपति शाहू महाराज उत्तराधिकारी बने।
निष्कर्ष
मराठा साम्राज्य के शासक छत्रपति शाहू महाराज जिन्होंने समाज के कई कुप्रथा को खत्म करने की कोशिश की, पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता दी, इन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रांतिकारी उपाय किए वह हमेशा ही इतिहास में याद रखे जाएंगे।
हमें उम्मीद है कि इस लेख में शाहू महाराज के जीवन परिचय (Chhatrapati Shahu Maharaj Biography in Hindi) से आपको इनके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला होगा और उनके सामाजिक कार्यों से आप प्रेरित भी हुए होंगे।
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