Bodhidharma History Story in Hindi: मार्शल आर्ट या फिर कुंग फू की बात करें तो हमारे दिमाग में तुरंत चीन का ख्याल आता है क्योंकि इस कला को सीखने के लिए लोग प्रतिवर्ष चीन का रुख करते हैं। मगर कोई भी मार्शल आर्ट या फिर कुंग फू के वास्तविक इतिहास के बारे में या यूं कहें संपूर्ण बोधिधर्म का इतिहास (Bodhidharma History in Hindi) नहीं जानता है।
आज हम इस लेख के माध्यम से आप सभी लोगों को मार्शल आर्ट के पिता और बौद्ध भिक्षु बोधि धर्मन के जुड़े हुए रहस्य के बारे में बताएंगे। इस अनकही एवं अनसुनी कहानी (bodhidharma in hindi) के बारे में जानने के लिए आपको हमारा यह लेख “बोधिधर्मन के बारे में जानकारी (bodhidharma biography in hindi)” अंत तक पढ़ना होगा।
बोधिधर्मन का इतिहास और अनमोल विचार | Bodhidharma History Story in Hindi
बोधिधर्मन कौन थे और इनकी जन्म कथा क्या कहती है?
बौद्धि धर्मन एक बौद्ध भिक्षु थे और इनके जन्म के बारे में किसी को भी पर्याप्त रूप से सटीक जानकारी नहीं है। बोधिधर्मन का जन्म दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के कांचीपुरम के राजा के यहां पर हुआ था। फिर भी कहा जाता है कि पांचवी से छठी शताब्दी के मध्य में इनका जन्म हुआ होगा।
सन्यासी के रूप में अपने जीवन को बिताने के लिए इन्हें मात्र 22 वर्ष की कम उम्र में ही सभी प्रकार के राजभोग को त्याग दिया था। इन्होंने अपनी राजशाही जीवन को त्याग कर बौद्ध भिक्षु के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की। इन्होंने धर्म प्रचार के लिए कई विदेश यात्राएं भी की है जैसे:- चीन, जापान और कोरिया सहित कई एशियाई देशों में इन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था।
बोधिधर्मन ने 520 से 526 ईसवी में चीन में बौद्ध धर्म की नीव रखने के लिए यह जाने जाते हैं। चीनी इतिहास के अनुसार Bodhidharma एक लंबी दाढ़ी वाले, गहरी आंखों वाले और उदार चरित्र वाले व्यक्ति थे। बोधिधर्मन के विचारों ध्यान साधना और लोक अवतार के रूप में करोड़ों लोग जानते हैं। भगवान बुद्ध द्वारा शुरू किए गए बौद्ध धर्म का 28 वा वारिस या गुरु बोधिधर्मन को ही माना जाता है।
बोधिधर्मन के गुरु कौन थे और उन्होंने किस प्रकार से अपनी शिक्षा को पूरा किया?
जैसा कि इनका जन्म एक राजशाही परिवार में हुआ था, परंतु इनका ध्यान तो सन्यास में रहकर जीवन का आनंद उठाना था। इन्होंने राजशाही भोग को त्याग कर महाकश्यप जो कि गौतम बुद्ध के ही परम शिष्य थे, इन्हीं से बोधिधर्म ने ज्ञान अर्जित करके और फिर ध्यान सीखने की कला से बोधिधर्मन ने बौद्ध भिक्षु बनने की शुरुआत की।
बोधिधर्मन ने अन्य भिक्षुओं की तरह मठ में साधारण रूप से जीवन यापन करना शुरू कर दिया। भगवान बुद्ध द्वारा बताए गए सभी उपदेशों का पालन एवं अनुसरण Bodhidharma बहुत ही भली-भांति तरीके से करते थे। बौद्ध भिक्षु बनने से पहले इनका नाम बौद्धि तारा हुआ करता था और फिर इन्होंने अपने नाम को सन्यासी बनने के बाद से बोधिधर्मन में परिवर्तित कर दिया।
इन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में ही सभी ज्ञान को प्राप्त कर लिया और फिर इन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शन से पूरे भारतवर्ष समेत अन्य देशों में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का और ज्ञान का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया।
आधुनिक मार्शल आर्ट्स के जनक और मार्शल आर्ट से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं क्या है?
आज के जमाने की मार्शल आर्ट की बात करें तो इसे सीखने के लिए लोग बहुत दूर-दूर से चीन की ओर अपना रुख करते हैं और इतना ही नहीं अब इसको सीखने के लिए लोग अपनी काफी रुचि भी दिखाते हुए नजर आते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार आधुनिक मार्शल आर्ट को सबसे पहले महर्षि अगस्त एवं भगवान श्री कृष्ण ने निजात किया था। इस कला का मतलब है कि बिना शास्त्र के युद्ध करना इस पौराणिक एवं शास्त्रों के अनुसार इस युद्ध कला को कालारिपयट्टू (Kalaripayattu) के नाम से जाना जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने इस कला के माध्यम से कई दुष्टों को बिना हथियार के मारा था।
यह अनोखी युद्ध कला ऋषि अगस्त से होते हुए सीधे Bodhidharma तक पहुंची। फिर इस कला को आगे विकसित करने के लिए बोधिधर्मन ने पूरे एशिया के देशों की यात्राएं की। बोधिधर्मन जी ने भारतीय स्वास्थ्य एवं और मार्शल आर्ट द्वारा अपनी शक्ति और अपने संकल्प से इसको एक अलग दर्जा प्रदान किया।
चीन में सिखाई गई इस कला को वहां के रहवासियों ने ‘जैन बुद्धिज़्म’ का नाम प्रदान किया। इसी की वजह से Bodhidharma का नाम इतिहास (History of Bodhidharma) के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो चुका है। इसी कला के वजह से बोधिधर्म को आधुनिक मार्शल आर्ट का जनक भी माना जाता है।
आज के समय में इस कला को सीख कल लोग अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं। विशेषकर महिलाएं इस क्षेत्र में अपने आप को निपुण बनाने का प्रयास करती हैं।
बोधिधर्म को आखिर क्यों चाय की उत्पत्ति का कारण बताया गया?
बोधिधर्म आयुर्वेद चिकित्सक (Bodhidharma Medicine) और पंचतत्व को काबू में करने के लिए भी जाने जाते हैं। चीन में हुए चाय की खोज से बौद्ध धर्म का पौराणिक नाता बताया जाता है। चीन की प्राचीन कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि कई हजार साल पहले चीन का राजा वू चाहता था कि कोई ऐसा व्यक्ति जो बौद्ध धर्म का बिच्छू को चीन में आए और यहां के लोगों को शिक्षित करें एवं उन्हें उपदेशों के बारे में भी बताएं।
इसके अतिरिक्त चीन का राजा वू अपने मन में उठ रहे कुछ सवालों के बारे में भी किसी महर्षि या बौद्ध भिक्षु से जानने के लिए इच्छुक था। जैसे ही उसे पता चला कि भारत देश से दो बौद्ध भिक्षु बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करने के लिए चीन की तरफ आने वाले हैं तो उस राजा ने उनके स्वागत के लिए बड़ी-बड़ी तैयारियां करनी शुरू कर दी।
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बोधिधर्म की चीन यात्रा (Bodhidharma In China)
चीन का राजा वू बौद्ध धर्म को जानने के लिए काफी ज्यादा इच्छुक था। जब बोधिधर्म अपने शिष्यों के साथ चीन में पहुंचे तो उन्हें देखकर वह राजा सोचने लगा कि यह लोग तो बिल्कुल सामान्य मनुष्य की तरह लग रहे हैं, आखिर इनको किस प्रकार का ज्ञान बौद्ध धर्म के बारे में होगा।
चीन के राजा को बोधिधर्म के शक्ति के बारे में जरा सा भी अंदाजा नहीं था। बोधिधर्म कथाओं के अनुसार कहां जाता है कि जिस पर्वतमाला पर उनके बौद्ध भिक्षु ध्यान किया करते थे, एक दिन वही पर्वतमाला पर ध्यान करने के दौरान सो गए। जब बोधिधर्म ने देखा कि उनके बौद्ध भिक्षु ध्यान को छोड़कर निद्रा ले रहे हैं तो बोधिधर्म को यह देखकर बहुत ही क्रोध आ गया।
गुस्से में आकर Bodhidharma में अपनी आंखों की पलकों को काटकर जमीन पर फेंक दिया और उस स्थान पर छोटे-छोटे हरे हरे सुंदर पत्तियां उगने लगे। आगे चलकर इन्हीं सुंदर पत्तियों को चाय के रूप में जाना गया। चाय की इन पत्तियों को उबालकर पीने से बड़ी से बड़ी नींद गायब हो जाती है।
कभी से इन चाय की पत्तियों का सेवन बौद्ध भिक्षु समेत अन्य लोग ध्यान को सफल बनाने के लिए किया करते हैं। इसी के कारण बोधिधर्म को चाय के खोजकर्ता के रूप में भी जाना जाता है।
बौध्दिधर्मन के प्रथम शिष्य
बोधिधर्मन ने कई योग्य लोगों को अपने पास शिष्य के रूप में रखा था, जिनमें माना जाता है कि सबसे प्रथम शिष्य उनके शैन-क्कंग थे। कहा जाता है ये पहले कुन्फ़्यूशियसी धर्म के अनुयाई हुआ करते थे लेकिन बाद में जब इन्होंने बौद्ध धर्म के कीर्ति के बारे में सुना तो बोधिधर्मन के शिष्य बनने के लिए उनके पास आए।
लेकिन इन्हें बोध्दिधर्मन से मिलने का आज्ञा नहीं दिया गया। तब वे दरवाजे के बाहर 7 दिन और 7 रात तक इंतजार करते रहे। ठंड का मौसम था, उनके घुटने तक बर्फ जम गई थी लेकिन उसके बावजूद भी गुरु ने इन पर दया नहीं दिखाई। तब शैन-क्कंग ने तलवार से अपने बांहे काट लिए और उसे ले जाकर बोधिधर्मन के पास खड़े हो गए और कहा कि यदि आपने मुझे अपना शिष्य नहीं बनाया तो में अपने पूरे शरीर का बलिदान दे दूंगा।
तब बोध्दिदर्मन ने शैन-क्कंग से पूछा कि तुम मुझसे क्या चाहते हो? शैन-क्कंग ने कहा मन की शांति चाहिए। यह सुनते ही बौध्दिधर्मन ने क्रोध में आकर कहा कहा कि अपना मन को निकाल कर मेरे सामने रख दो, मैं उसे शांत कर दूंगा।
यह सुनते ही शैन-क्कंग दंग रह गए और बोले कि अपने मन को निकालकर आपके सामने कैसे रखूं? उसके बाद बौध्दिधर्मन ने बहुत विनम्रता से कहा कि मैं ने तुम्हारे मन को शांत कर दिया है। यह बात सुनते ही शैन-क्कंग को शांति का अनुभव होता है और तभी से वे बौध्दिधर्मन के शिष्य बन जाते हैं।
शिष्य बनने के बाद बौध्दिधर्मन ने इन्हें हुई-के नाम दिया। इस तरह शैन्-क्कांग चीन में ध्यान सम्प्रदाय के द्वितीय धर्मनायक भी हुए।
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बोधिधर्मन की मृत्यु कैसे हुई थी और कब हुई थी?
बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार एवं मार्शल आर्ट के कला को विकसित करने के लिए बोधिधर्मन चीन में ही रह गए थे। बोधिधर्म मृत्यु (Bodhidharma Death) 540 ईसा पूर्व को चीन के शाओलिन मंदिर/मठ में हुई थी।
बोधिधर्मन के विचार (Bodhidharma Quotes in Hindi)
- जब आप समझ नहीं पाते हैं, तब वास्तविकता पर आप निर्भर होते हैं, लेकिन जब आप समझ जाते है तो वास्तविकता आप पर निर्भर करती है।
- वास्तविकता में कोई अंदर, बाहर या मध्य भाग नहीं होता है।
- सब रास्ता जानते हैं, कुछ वास्तव में यह चलना।
- प्रकृति ही हमारा मन है और हमारा मन हमारा स्वभाव है।
- कई सड़कें मार्ग की ओर ले जाती हैं लेकिन मूल रूप से केवल दो हैं: कारण और अभ्यास।
- बुद्ध को खोजने के लिए आपको केवल अपना स्वभाव देखना है।
- जब तक आप अपने आप को धोखा देते रहेंगे, तब तक आप अपने वास्तविक मन को नहीं जान पाएंगे।
- दस लाख लोगों में सिर्फ एक व्यक्ति बिना गुरु की मदद के प्रबुद्ध हो पाता है।
- जब तक आप एक बेजान रूप से रोमांचित होते हैं, तब तक आप स्वतंत्र नहीं होते।
- अज्ञान में नहीं उलझना ज्ञान है।
- यदि आप वास्तविकता का अध्ययन करने के लिए अपने दिमाग का उपयोग करते हैं तो आप न तो अपने मन और न ही वास्तविकता को समझ पाएंगे। यदि आप अपने मन का उपयोग किए बिना वास्तविकता का अध्ययन करते हैं तो आप दोनों को समझेंगे।
- सूत्र के अनुसार बुरे कर्मों का परिणाम कठिन होता है और अच्छे कर्मों का परिणाम आशीर्वाद होता है।
- आपका मन ही निर्वाण है।
- बुद्ध जन्म और मृत्यु के माध्यम से स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ते हैं, दिखाई देते हैं और गायब हो जाते हैं।
- जीवन और मृत्यु दोनों महत्वपूर्ण हैं। बेकार में इन्हें पीड़ित न करें।
- आत्मज्ञान कभी भ्रम नहीं पैदा नहीं करता।
- स्वयं को शब्दों से मुक्त करना ही मुक्ति है।
बोधिधर्मन का इतिहास और उनसे संबंधित पौराणिक कथा
इतिहास में लिखे कथाओं के अनुसार कहा जाता है एक बार बोधिधर्मन चीन के सम्राट से मिलने गए थे। वे भारतीय भाषा, प्राचीन संस्कृति और बौद्ध धर्मग्रंथों को चीनी में अनुवाद करवाने के लिए अपने राज्य में कहा ताकि वहां के आम लोग भी उन चीजों का अभ्यास कर सकें।
लेकिन बोधिधर्मन धर्म के इस अनुवाद और शाओलिन मंदिर में होने वाले संस्कृत अनुवाद से असहमत थे। शासक सम्राट के बातों से वे असहमत थे, जिसके कारण लोगों ने उन्हें मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करने से मना कर दिया। तब बोधिधर्मन ने अपनी योग्यता को साबित करने के लिए मंदिर के पास की गुफा में 9 साल तक ध्यान लगाया।
बोधिधर्मन के इतिहास की यह कहानी कितनी वास्तविक है। इसका कोई मूलभूत आधार तो नहीं है लेकिन प्राचीन पौराणिक कथाओं में इन बातों का उल्लेख है, जिसमें कहा जाता है कि वे खुद भी कुंग फू के संस्कृत के विकास का हिस्सा बने। इतिहास के कुछ कहानियां बताती है कि बोधिधर्मन गुफा में 9 सालों तक ध्यान लगाएं और अपने तेज़ आंखों की शक्ति से गुफा की दीवारों पर भी उन्होंने छेद कर दिया।
कहा जाता है उनकी इस ध्यान शक्ति को देखकर मंदिर के भी अन्य भिक्षुक और अन्य लोग इससे प्रभावित होकर उनके लिए खाना-पीना लाने लगे और धीरे-धीरे उनके बीच एक सकारात्मक रिश्ता उत्पन्न हो गया। धीरे-धीरे वे लोग भी उनके विचारों से प्रभावित हुए और बोधिधर्मन से शिक्षा लिया।
इस तरीके से बोधिधर्मन ने भारत के अतिरिक्त चीन में भी अपने ज्ञान को बांटा जिसे चीन में ‘चान बौद्ध धर्म’ के नाम से जाना गया। इन्होंने जापान में भी मार्शल आर्ट का ज्ञान और तरीका फैलाया, जिसे वहां जैन के नाम से जाना जाता है।
FAQ
बोधिधर्म एक महान भारतीय बौद्ध भिक्षु एवं विलक्षण योगी थे, जिन्होंने एशिया के कई देशों की यात्रा की और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। उन्होंने ध्यान संप्रदाय की भी स्थापना की थी।
कहा जाता है अपने जीवन के अंतिम समय में बोधिधर्मन चीन में बोद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए रुके हुए थे और चीन के ही शाओलिन मंदिर में 540 ईसा पूर्व को इनकी मृत्यु हो गई थी।
बौध्दिधर्मन के गुरु का नाम महाकश्यप था। अपनी इसी गुरु से बौध्दिधर्मन ने जीवन में बहुत कुछ ज्ञान अर्जित किया और बाद में ध्यान सीखने के लिए वे बौध्दि भिक्षुक बने।
बोधिधर्मन जब ध्यान सीखने के लिए भिक्षुक बने थे, उससे पहले उनका नाम बौध्दितारा था लेकिन बाद में भिक्षुक बनने के बाद उन्होंने अपने नाम को बोधिधर्मन में बदल लिया।
कहा जाता है बौध्दिधर्मन एक बहुत राजसी परिवार में जन्मे थे। लेकिन 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने सभी राजभोग को त्याग कर दिया और अपने जीवन को एक सन्यासी के रूप में बिताने का निर्णय लिया।
बौध्दिधर्मन ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए कई देश की यात्रा की। उन्होंने चीन, जापान, भारत, कोरिया, सहित कई एशियाई देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया।
बौद्धिधर्मन के पिता का नाम सुगन्ध था, जो दक्षिण भारत के कांचीपुरम के राजा थे।
कहा जाता है बौध्दिधर्मन ने चीन की यात्रा समुद्री मार्ग से की थी। वे चीन के दक्षिणी समुद्री तट केन्टन बन्दरगाह पर उतरे थे।
निष्कर्ष
ऐसे कई प्रकार के ऋषि मुनि और अन्य लोगों ने अपने देश के प्रत्येक धर्मों को फैलाने और उसके प्रचार प्रसार करने के लिए अपने संपूर्ण जीवन को समर्पित किया है। आज हम उसी देश के रहवासी है जिसमें बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने जन्म लिया हुआ है। सबसे दुखद बात यह है कि हम इन सभी ऋषि-मुनियों के द्वारा बताए गए उपदेशों के बारे में समझना नहीं चाहते हैं।
हमारे इस लेख “बोधिधर्मन कौन था (Who was Bodhidharma)” का मुख्य उद्देश्य आप सभी लोगों को इस महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताना था। यदि एक आपको रोचक लेख पसंद आया हो तो इसे आप अपने मित्र जन एवं परिजन के साथ अवश्य साझा करें। फेसबुक पेज लाइक जरूर कर दें।
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