Anangpal Tomar History In Hindi: आज के वर्तमान दिल्ली की स्थापना अनंगपाल द्वितीय ने ही की थी। अनंगपाल द्वितीय को ही अनंगपाल तोमर के नाम से जाना जाता था, जो तोमर वंश के क्षत्रिय शासक थे। सातवीं से आठवीं शताब्दी के बीच में तोमर वंश अस्तित्व में आई थी।
आज दिल्ली में उपस्थित लाल किला को मुगल सम्राट शाहजहां की देन मानी जाती है लेकिन असलियत में उस किले का निर्माण तोमर वंश के शासक अनंगपाल तोमर ने हीं करवाया था। अनंगपाल के शासनकाल में तोमर साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच चुका था। अनंगपाल द्वितीय ने महरौली इलाके के आसपास के क्षेत्र को नगर के रूप में बसाया जो स्वर्ग के समान सुंदर क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ।
कहा जाता है कि पांडवों द्वारा बसाई गई इंद्रप्रस्थ नगर को दोबारा तोमर वंश ने ही बसाया। अनंगपाल तोमर के शासनकाल के कई स्थापत्य कला के उदाहरण आज भी मौजूद है। तो चलिए लेख में आगे बढ़ते हैं और अनंगपाल तोमर के इतिहास के बारे में जानते हैं।
अनंगपाल तोमर का इतिहास और तोमरों का शासन | Anangpal Tomar History In Hindi
तोमर वंश के साम्राज्य का विस्तार
तोमर वंश अर्जुन के ही वंशज माने जाते हैं। पांडवों के भाई अर्जुन के बेटे अभिमन्यु हुए और अभिमन्यु के बेटे परीक्षित हुए और परीक्षित के बेटे जन्मेजय हुए, जिसके बाद जन्मेजय से ही चला तोमर वंश। पांडू के बाद धीरे-धीरे उनके वंश का भौगोलिक रूप से विस्तार हुआ।
कथित तौर पर तोमर वंश पांचवी छठी शताब्दी तक हिमालय के क्षेत्रों में रहे और फिर भी नीचे की ओर उतरे और फिर धीरे-धीरे हरियाणा तक पहुंचे। वे कुछ राजाओं के जागीरदार भी रहे और फिर हरियाणा से दक्षिण की तरफ बढ़े। इस तरीके से इन्होंने धीरे-धीरे अपना विस्तार बढ़ाया। इन्होंने अपने पूर्वजों द्वारा बसाई इंद्रप्रस्थ नगरी को फिर से नए सिरे से बसाया।
दिल्ली पर तोमर वंश का साम्राज्य
दिल्ली में तोमर राजवंश की स्थापना 736 ई. सन में हुई। दिल्ली पर तोमर राजवंश के साम्राज्य की स्थापना अनंगपाल सिंह तोमर प्रथम के द्वारा हुआ था। कहा जाता है लगभग उसी समय नागभट्ट प्रथम ने भी 730 ईसवी में गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की थी।
उसी समय आबू पर्वत पर हुए यज्ञ में क्षत्रिय शासकों ने विदेशी आक्रमणकारियों को भगाकर भारत के धर्म और उसके संस्कृति की रक्षा करने का संकल्प लिया और राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय विचारधारा को प्रबल करने की भावना से प्रेरित होकर काम आरंभ किया। इस तरीके से उस समय सभी शासकों के भीतर अपने राष्ट्रीय के धर्म और संस्कृति की रक्षा करने का प्रबल भाव था।
अतः तोमर शासकों ने भी दिल्ली में अपने राज्य वंश की स्थापना की और अरब आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष किया। इसी तोमर वंश में आगे 1051 ईस्वी से 1081ईस्वी तक अनंगपाल द्वितीय नाम के प्रतापी शासक ने शासन किया। इन्होंने ही अपने शासनकाल में 1060 ईस्वी के लगभग लाल कोट नाम का किला बनवाया।
यह भी पढ़े: पृथ्वीराज चौहान का इतिहास
अनंगपाल तोमर ने इन चीजों का किया था निर्माण
अनंगपाल तोमर ने अपने शासनकाल में बहुत से चीजों का निर्माण करवाया था। जिसे आज हम दिल्ली का लाल किला कहते हैं, उसका नाम लालकोट हुआ करता था, जिसे बनाने का श्रेय अनंगपाल तोमर को ही जाता है। अनंगपाल तोमर ने वर्ष 1060 में लाल कोट का निर्माण कार्य पूरा करवाया था।
इस किले की परिधि 2 मील से भी अधिक थी, किले की दीवारें 60 फीट लंबी और 30 फीट मोटी थीं। यह लाल कोट यानी लाल किला को मूल रूप से मूल रूप से किला-ए-मुबारक कहा जाता था।
इसके अतिरिक्त अंगपाल तोमर ने असीगढ़ (हांसी किला) का भी स्थापना किया था। हंसी की स्थापना अनंगपाल तोमर ने अपने गुरु हंसकर के लिए किया था लेकिन बाद में उनके पुत्र द्रुपद ने इस किले में तलवार बनाने का कारखाना स्थापित किया।
अनंगपाल तोमर ने तहनगढ़ किले (त्रिभुवनगिरी) का निर्माण भी करवाया था, जो राजस्थान के करौली जिले में उपस्थित है। इसके अलावा अंगपाल तोमर ने सौंख, बादलगढ़, ज्ञबल्लभगढ़ और महेंद्रगढ़ के किलों का भी निर्माण करवाया।
अंगपाल तोमर ने योग माया मंदिर का भी निर्माण करवाया था। योगमाया को ही तोमर वंश की कुलदेवी माना जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की बहन थी और सबसे पहले योगमाया मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा किया गया था। यह मंदिर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ में स्थापित किया था।
इसके बाद पुनः अंगपाल तोमर ने उसी जगह इस मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर के बगल में एक जल निकाय भी बनाया गया, जिसे अनंगताल बावली के नाम से भी जाना जाता है। सल्तनत काल से संबंधित यह एकमात्र जीवित मंदिर है, जो अभी भी उपयोग में लाया जाता है। यह मंदिर दिल्ली के एक महत्वपूर्ण अंतर धार्मिक उत्सव और वार्षिक फूल वालों की सैर का भी एक अभिन्न अंग है।
FAQ
अनंगपाल सिंह तोमर का शासनकाल 1051 से 1081 ई0 तक माना जाता है।
इनका गोत्र अत्री एवं व्याघ्रपद है।
तोमर राजपूतों को क्षत्रियों में एक चंद्र वंश की शाखा मानी जाती है, जो पांडु के पुत्र अर्जुन के वंशज हैं।
तोमर के पूर्वज पांडव थे, जिन्होंने भगवान कृष्ण की बहन योगमाया को कुलदेवी मानकर इंद्रप्रस्थ में मंदिर बनवाया था। जिसके बाद उसी स्थान पर दिल्ली के संस्थापक राजा अनंगपाल जी ने भी पुनः उस मंदिर का निर्माण कराया। इस तरीके से तोमर वंश के कुलदेवी के रूप में श्री कृष्ण की बहन योगमाया को पूजा करते थे।
तोमर वंश के लोग उत्तरी भारत के जाट, गुर्जर और राजपूत समुदायों में पाए जाते हैं।
तोमर वंश के कई शासकों ने अलग-अलग समय पर उत्तर भारत के कई हिस्सों में शासन किया था।
तोमर वंश के अंतिम शासक तेजपाल द्वितीय को बताया जाता है।
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने आपको तोमर वंश के शासक अनंगपाल द्वितीय जिन्हें अनंगपाल तोमर के नाम से भी जाना जाता है उनके अनंगपाल तोमर का इतिहास (Anangpal Tomar History In Hindi) के बारे में बताया। साथ ही तोमर वंश के इतिहास के बारे में भी बताया।
तो हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपको अच्छा लगा होगा। यदि लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो आप कमेंट में पूछ सकते हैं और इस लेख को अपने सोशल मीडिया अकाउंट, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर जरूर करें।
यह भी पढ़े
JAY RAJPUTANA
JAY MAA BHAWANI