Swami Vivekanand ki Mrityu Kaise Hui: “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए” स्वामी विवेकानंद का यह कथन आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करती है।
एक महान भारतीय आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद ने अपने छोटे से जीवन काल में ही ऐसे ऐसे महान कार्य किए, जिसके बारे में सोचना भी कठिन है। देश विदेश तक उन्होंने अपनी भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार किया।
शिकागो में दिए गए उनके भाषण से देश दुनिया के लोग उनके मुरीद हो गए। लेकिन ऐसे महान व्यक्ति मात्र 39 वर्ष तक ही जीवित रहे।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कैसे हुई, स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई, स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण आदि जैसे आज भी प्रश्न बने हुए है। यहां पर इन सवालों के बारे में जानेंगे।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण (Swami Vivekanand ki Mrityu Kaise Hui)
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण अब तक एक रहस्य बना हुआ है। उनके मृत्यु के कई कारण बताए गए हैं। विवेकानंद पर लिखी गई राजगोपाल चट्टोपाध्याय की एक किताब है, वहीं के. एस भारती के द्वारा भी एक अन्य किताब लिखी गई है।
इन दोनों के द्वारा लिखी गई किताब में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के बारे में बताया गया है कि ध्यान करने के दौरान उनका निधन हुआ था। विवेकानंद ने तकरीबन 7:00 बजे 2 से 3 घंटे तक ध्यान किया और ध्यान अवस्था के दौरान ही अपने ब्रह्मरंध्र को भेद कर समाधि ले ली।
कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद महा समाधि से एक सप्ताह पहले अपने शिष्यों से पंचांग लाने का आदेश दिया था। वे पंचांग को बहुत ही बारीकी से देख रहे थे मानो किसी चीज का ठोस निर्णय ले नहीं पा रहे हैं।
उनके मृत्यु के बाद उनके गुरु भाइयों और शिष्यों को अंदाजा हुआ कि वे जरूर अपने देह को त्यागने के लिए सटीक तिथि का पता लगा रहे थे। क्योंकि इससे पहले स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने भी अपने देह त्याग से पहले पंचांग में तिथि देखी थी।
इस घटना से स्वामी विवेकानंद ने अपने भविष्यवाणी को सत्य साबित कर दिया। कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने पहले ही बता दिया था कि वह 39 वर्ष तक ही जी पाएंगे।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण कई तरह की बीमारी भी बताई जाती है। मशहूर बांग्ला लेखक शंकर के द्वारा लिखी किताब द मोंक एज मैन में उन्होंने बताया है कि स्वामी विवेकानंद डायबिटीज, माइग्रेन, हार्ट अटैक, नींद जैसी 31 बीमारियों से जूझ रहे थे।
उस समय डायबिटीज की कोई कारगर दवा उपलब्ध नहीं थी। लेकिन कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद ने अपने रोगों से मुक्ति पाने के लिए कई तरह के उपचार भी किए थे। स्वामी अपने मृत्यु के 2 महीना पहले अपने सभी सन्यासी शिष्यों को देखने की इच्छा जताई, जिसके बाद उन्होंने पत्र लिखकर सभी को बेलूर मठ आने के लिए कहा।
उनके सभी शिष्य जहां थे, वहां से उनसे मिलने के लिए आए। उस दौरान स्वामी ने देश दुनिया के समाचारों पर अपनी प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया। क्योंकि उस समय वह कई तरह की बीमारियों की चपेट में थे। लेकिन उनके मृत्यु का सटीक कारण दिल का दौरा बताया जाता है।
स्वामी विवेकानंद का दाह संस्कार
स्वामी विवेकानंद का दाह संस्कार पश्चिम बंगाल के बेलूर में गंगा नदी के तट पर चंदन की चिता पर किया गया।
कहा जाता है कि महासमाधि लेने से तीन दिन पहले स्वामी ने प्रेमानंद जी को मठ भूमि में एक विशेष स्थल की ओर इशारा करते हुए कहा था कि वहीं पर उनका दाह संस्कार होना चाहिए।
जिस स्थान पर स्वामी का दाह संस्कार हुआ था, उसके दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस उनके निधन के 16 वर्ष पूर्व अंतिम संस्कार हुआ था। स्वामी के दाह संस्कार स्थान पर आज विवेकानंद मंदिर बना हुआ है।
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