Shivpujan Sahay Biography in Hindi: यूं तो बिहारी और हिंदी साहित्य के कई लेखक हुए, जिन्होंने अपनी लिखने की कला के माध्यम से समाज को जागरूक किया। उन्हीं में से अपने समय के प्रमुख लेखक, कवि और सम्मानित व्यक्ति शिवपूजन सहाय थे।
यह हिंदी साहित्य के साथ ही आंचलिक उपन्यासकार थे और एक यथार्थवादी लेखक तथा कुशल संपादक भी थे। इन्हें भाषा का जादूगर भी कहा जाता था क्योंकि यह अपनी रचना में जिस तरह की कविता और लेख लिखा करते थे, हर कोई उनके शब्दों के जाल में फंसे जाता था।
शिवपूजन सहाय की साहित्यिक जीवन काफी लंबी रहा है और इस दौरान इन्होंने कई उपन्यास व कथा की रचना की। इसके साथ ही कई पत्र-पत्रिका का भी संपादन किया।
तो चलिए इस लेख में शिवपूजन सहाय का जीवन परिचय जानने के साथ ही उनके साहित्यिक जीवन और इनके प्रारंभिक जीवन के सफ़र से अवगत होते हैं।
इनके जीवन के संघर्ष से लेकर एक महान और प्रसिद्ध कवि बनने तक का इनका सफर काफी रोमांचक रहा है। निश्चित ही इनका जीवन परिचय आपको प्रेरित करेगा।
शिवपूजन सहाय का जीवन परिचय (Shivpujan Sahay Biography in Hindi)
नाम | शिवपूजन सहाय |
असली नाम | तारकेश्वर नाथ |
जन्म और जन्मस्थान | 9 अगस्त 1893, उनवांस, शाहाबाद, बिहार |
पेशा | कहानीकार, उपन्यासकार, सम्पादक और पत्रकार |
माता का नाम | राजकुमारी देवी |
पिता का नाम | श्री बालेश्वर सहाय |
सम्मान | पद्म भूषण (1960) |
पत्र पत्रिकाएं | मारवाड़ी सुधार, माधुरी, मतवाला, समन्वय, गंगा, मौजी, साहित्य, बालक, गोलमाल, हिमालय, जागरण |
संपादन | जयंती स्मारक ग्रंथ, दिवेदी अभिनंदन ग्रंथ, अनुग्रह अभिनंदन ग्रंथ, हिंदी साहित्य और बिहार, अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ, बिहार की महिलाएं, रंगभूमि |
मृत्यु | 21 जनवरी 1963, पटना (बिहार) |
शिवपूजन सहाय का प्रारंभिक जीवन
शिवपूजन बिहार के बक्सर जिला के उनवांस गांव के रहने वाले थे। इनका जन्म 9 अगस्त 1893 में हुआ था। शिवपूजन सहाय के माता-पिता ने इन्हें भोलेनाथजी से मांगा थे।
इसीलिए बचपन में इनका नाम भोलेनाथ हुआ करता था और असली नाम तारकेश्वर नाथ था। बाद में यह शिवपूजन सहाय के नाम से जाने गए।
इनके पिताजी का नाम श्री बालेश्वर सहाय था। बहुत कम उम्र में शिवपूजन सहाय के पिताजी की मृत्यु हो गई थी। वहीं उनकी माता का नाम राजकुमारी देवी था, जो धार्मिक स्वाभाव की महिला थी।
शिवपूजन सहाय की शिक्षा
शिवपूजन सहाय ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव उनवांस के ही पाठशाला से की थी। उसके बाद उन्होंने आरा से मैट्रिक परीक्षा पास की थी।
शिवपूजन सहाय का वैवाहिक जीवन
शिव पूजन का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था। मात्र 14 वर्ष की उम्र में यह विवाहित हो गए थे। लेकिन कुछ दिनों के बाद इनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद इनका दूसरा विवाह हुआ।
शादी के बाद इन्होंने आरा के केजी एकेडमी स्कूल में शिक्षक के पद पर नौकरी करना शुरू किया।
यहां कुछ दिनों तक शिक्षक के रूप में कार्य करने के बाद इन्होंने नौकरी छोड़ गांधीजी के असहयोग आंदोलन में जुड़ गए और इस आंदोलन के बाद इनके जीवन की एक नई दिशा शुरू हुई।
साहित्यिक जीवन
शिवपूजन सहाय 1920 से 1921 के दौरान गांधीजी के असहयोग आंदोलन में जुड़े रहे। उसके बाद इन्हें आरा के नगर प्रचारिणी सभा का सहकारी मंत्री नियुक्त किया गया।
1921 में ही इन्होंने कोलकाता में पत्रकारिता भी आरंभ की। उसके बाद इन्होंने राजेंद्र अभिनंदन ग्रंथ में संपादन कार्य करना शुरू किया।
इन्होंने सबसे पहले उस समय की साप्ताहिक पत्रिका मतवाला में अपना संपादन कार्य शुरू किया था। यह उस समय एक लोकप्रिय पत्रिका हो चुकी थी। जिसका श्रेय शिवपूजन सहाय की लेखन शैली को ही जाता है।
संपादन कार्य में लंबे समय तक काम करने के बाद शिवपूजन सहाय ने उस समय के प्रसिद्ध लेखकों में अपनी जगह बना ली थी। जिसके बाद वे लखनऊ आ गए और यहां पर माधुरी संपादकीय परिवार से जुड़ गए। जिसके बाद 1924 में इन्होंने प्रेमचंद के साथ माधुरी का संपादन किया।
उसके बाद इन्होंने प्रेमचंद के चर्चित उपन्यास रंगभूमि का भी संपादन किया। लेकिन उस समय लखनऊ में दंगा शुरू हो जाने के कारण इन्हें वापस कोलकाता आना पड़ा।
1926 से लेकर 1933 तक यह लगातार कई पत्रिकाओं में संपादन का कार्य और लिखने का कार्य करते रहे, इन्होंने कई सारी रचनाएं और उपन्यास लिखे। प्रारंभ में इनके लेख लक्ष्मी, मनोरंजन और पाटलिपुत्र आदि नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ करते थे।
1934 से लेकर 1939 तक ये लहरिया सराय में संपादन का कार्य किया। उसके बाद 1950 तक राजेंद्र कॉलेज छपरा में हिंदी के प्राध्यापक के तौर पर भी काम किया। इस कॉलेज में 10 सालों तक हिंदी विभाग के विभाग अध्यक्ष होने के दौरान इन्होंने कई रचनाएं लिखी। इस दौरान वे बहुत ही तन्यता के साथ साहित्यिक कार्यों से जुड़ गए थे।
इतने सालों में छपरा के धरती से इन्हें काफी गहरा लगाव भी हो गया था। यही कारण था कि इनकी रचना में वहां के स्थानीय भाषा देखने को मिलती है।
1950 से लेकर 1959 तक यह पटना के बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के निर्देशक के तौर पर भी कार्य किए।
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शिवपूजन सहाय का लेखन कार्य
शिवपूजन सहाय की रचना में अंचल क्षेत्र की संस्कृति, सभ्यता, वहां के रहन-सहन, बोलचाल आदि के भाव उत्पन्न होते हैं। उन्होंने अपना पहला उपन्यास देहाती दुनिया लिखा था। इसमें इन्होंने बिहार के ग्रामीण जीवन से संबंधित कई चीजें लिखी है।
शिवपूजन सहाय ने अपनी रचना में बिहार के हर क्षेत्र उपरांत के बारे में लिखा है। यहां के ग्रामीण जीवन को इन्होंने बहुत ही बखूबी ढंग से बताया है। अपनी रचना में इन्होंने बिहार की भौगोलिक, ऐतिहासिक स्थितियों का बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है।
वह हमेशा अपने आपको देहात का बोला करते थे। इनका मानना था कि वह जिस जगह के हैं, वहां कभी भी नई सभ्यता और नए युग का शुभारंभ ज्यादा हुआ ही नहीं।
उनका कहना था कि देहात में आज भी दरिद्रता का तांडव है, अज्ञानता का अंधकार है। इसलिए मैं अपनी रचना में देहात को इस तरीके से दर्शाते हूं जिस तरीके से मैंने देखा है। इन्होंने अपनी रचना में किसी भी मौलिकता या कल्पना करके किसी चीज का वर्णन नहीं किया है।
इनकी प्रसिद्ध उपन्यास रचना देहाती दुनिया की जब इन्होंने रचना की थी, उस समय लखनऊ में हिंदू मुस्लिम के दंगे चल रहे थे। जिसके कारण इस रचना का एक पांडुलिपि नष्ट हो गया था।
इन्हें इस बात का बहुत ही बुरा लगा, जिसके बाद इन्होंने दोबारा इसकी रचना की। हालांकि वे तब भी खुश नहीं थे। क्योंकि इनका मानना था कि पहले वाली रचना में जिस भाव से इन्होंने हर चीज का वर्णन किया था, दोबारा इस चीज को लिखने में वह भाव उत्पन्न नहीं हो पाए।
इनकी रचना शिवपूजन रचनावली जो कि 4 खंडों में प्रकाशित है, इसमें इन्होंने महाभारत से संबंधित कई पात्र और उनके जीवन के बारे में लिखा है।
शिवपूजन सहाय के गद्य साहित्य की विशेषता
शिवपूजन सहाय अपने समय में गद्य साहित्य के एक विशेष लेखक माने जाते थे। इन्हें उस समय छायावाद के चार स्तंभों में से एक स्तंभ माना जाता था।
एक लेखक के रूप में इनकी तारीफ करते हुए हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था कि यह एक संपादक के रूप में एक माली थे। क्योंकि जिस तरीके से एक माली पेड़ पौधों को रोपने के बाद उसे काट छांट कर रोज पानी डालकर सुंदर बना देता है, ठीक उसी तरह शिवपूजन सहाय भी एक संपादक के रूप में अपनी रचना को बहुत ही महत्वपूर्ण और सुंदर बना देते थे।
इन्होंने अपनी रचना में उर्दू शब्द का काफी प्रयोग किया है। इसके साथ ही इन्होंने अपनी रचना में अलंकार और अनुप्रास की भाषा का भी भरपूर प्रयोग किया है। इनकी रचना में मुहावरे का भी काफी प्रयोग देखने को मिलता है। क्योंकि गांव में मुहावरों का काफी प्रयोग किया जाता है और उनकी ज्यादातर रचना देहाती जीवन से जुड़ी हुई है।
शिवपूजन सहाय ने अपनी रचना में ग्रामीण जीवन के हर एक ढंग को बतलाया है। ग्रामीण जीवन में जिस तरीके से लोग रहते खाते हैं, जिस तरीके से बातचीत करते हैं, उस हर ढंग को इन्होंने इतनी खूबसूरती से बताया है कि इनकी रचना को पढ़ने वाला पाठक मोहित हो जाता है। इसीलिए इन्हें भाषा का जादूगर भी कहा जाता था।
शिवपूजन सहाय की प्रमुख रचनाएं
कथा एवं उपन्यास
रचना | प्रकाशित वर्ष |
तूती मैना | |
देहाती दुनिया | 1926 |
विभूति | 1935 |
वे दिन वे लोग | 1965 |
स्मृति शेष | 1994 |
ग्राम सुधार | 2007 |
बिंब प्रतिबिंब | 1967 |
शिव पूजा रचनावली (4 खंड) | 1955 से 1959 |
हिंदी भाषा और साहित्य | 1996 |
संपादित पत्र-पत्रिकाएं
पत्र-पत्रिका | प्रकाशित वर्ष |
मारवाड़ी सुधार | 1921 |
मतवाला | 1923 |
माधुरी | 1924 |
समन्वय | 1925 |
मौजी | 1925 |
गोलमाल | 1925 |
जागरण | 1932 |
गंगा | 1931 |
बालक | 1934 |
हिमालय | 1946 |
शिवपूजन सहाय की मृत्यु
हिंदी और बिहारी साहित्य में एक प्रमुख लेखक शिवपूजन सहाय की मृत्यु 21 जनवरी 1963 को बिहार के पटना शहर में हुई थी। उनकी मृत्यु हिंदी साहित्य में एक साहित्यिक संत का अंत भी माना जाता है।
यह हमेशा ही चाहते थे कि हिंदी देश विदेश की भाषा बन जाए। इन्होंने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित कर दिया।
FAQ
शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य और आंचल साहित्य के एक यशस्वी साहित्यकार थे। इन्हें छायावाद के चार स्तंभों में से एक माना जाता था। हिंदी साहित्य में इनके विशेष रचनाओं के कारण इन्हें पद्म भूषण की उपाधि से नवाजा जा चुका है।
शिवपूजन सहाय का जन्म 9 अगस्त 1893 को हुआ था।
शिवपूजन सहाय का जन्म उनवांस, शाहाबाद (बिहार) में हुआ था।
शिवपूजन सहाय का पूरा बचपन देहाती परिवेश में बीता था, जिस कारण इन्हें बचपन से ही देहाती खेल गिल्ली डंडा काफी ज्यादा पसंद था।
देहाती दुनिया शिवपूजन सहाय का उपन्यास है, जिसे 1926 में प्रकाशित किया गया था।
कहा जाता है कि शिवपूजन सहाय का जन्म भगवान शिव की कृपा से हुआ था। इसी कारण इनके माता-पिता ने इनका नाम भोलानाथ रखा था। हालांकि इनका असल नाम तारकेश्वर नाथ था।
शिवपूजन सहाय की ज्यादातर रचना में ग्रामीण परिवेश का भाव उत्पन्न होता है। लेकिन उनकी सबसे प्रसिद्ध उपन्यास जिसमें ग्रामीण परिवेश को ठेठ भाषा में उभारा गया है, वह है देहाती दुनिया जिसे 1926 में प्रकाशित किया गया था। हालांकि इसकी पहली पांडुलिपि लखनऊ हिंदू मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गया था।
शिवपूजन सहाय ने द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ, जयंती स्मारक ग्रंथ, हिंदी साहित्य और बिहार, अनुग्रह अभिनंदन, अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ, बिहार की महिलाएं रंगभूमि संपादित पत्रिका जैसे कई पत्र पत्रिकाओं में संपादक का कार्य किया।
निष्कर्ष
शिवपूजन सहाय ने अपनी रचना के माध्यम से हिंदी भाषा को विकसित करने और उसे विश्व भर में प्रचार प्रसारित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भाषा का जादूगर कहे जाने वाले शिवपूजन सहायक का पूरा जीवन हिंदी साहित्य को समर्पित था। आज भी इनकी रचनाएं युवा को प्रेरित करती हैं।
हमें उम्मीद है कि इस लेख में शिवपूजन सहाय की जीवनी (shiv pujan sahay ka jivan parichay) के माध्यम से आपको इनका प्रारंभिक जीवन और इनके साहित्यिक सफर के बारे में काफी कुछ जानने को मिला होगा।
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