Sharad Purnima ki Kahani: नमस्कार दोस्तों, कहानी की इस श्रृंखला में आपके साथ आज शेयर करने जा रहे हैं शरद पूर्णिमा की कहानी क्या है?। इस कहानी में दो बहनों के विषय मे बताया गया है। आप इस कहानी को अंत तक जरूर पढ़िएगा।
एक बार एक गांव में एक व्यापारी रहा करता था, जो व्यापार के मामले में बहुत ही निपुण था। गांव के सभी लोग व्यापारी की बहुत प्रशंसा किया करते थे और उससे ही व्यापार की सभी वस्तुएं खरीदा करते थे। उस व्यापारी की दो बेटियां थी, वह अपनी बेटियों से बहुत प्रेम किया करता था।
उनके लालन-पालन में कोई भी कमी होने नहीं देता था। धीरे-धीरे जब व्यापारी की दोनों बेटियां बड़ी हो गई तब उस व्यापारी ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह बड़ी धूमधाम से किया। अपनी दोनों बेटियों की शादी अच्छे-अच्छे परिवारों में की। व्यापारी की बड़ी बेटी को पूजा पाठ में अत्यधिक रुचि थी और उधर व्यापारी की छोटी बहन को पूजा पाठ में कोई भी रुचि नहीं थी।
शादी के बाद व्यापारी की दोनों बेटियों ने माता शरद पूर्णिमा का व्रत रखना शुरू कर दिया। व्यापारी की बड़ी बेटी बहुत ही ध्यानपूर्वक और मन लगाकर शरद पूर्णिमा की पूजा की तैयारी करती थी और उपवास रखा करती थी।
उधर व्यापारी की छोटी बेटी शरद पूर्णिमा की पूजा तो करती थी, लेकिन वह सारे काम को आधा अधूरा करती थी। व्यापारी की छोटी बेटी ने कभी भी शरद पूर्णिमा की पूजा संपन्न करी ही नहीं थी। उधर व्यापारी की बड़ी बेटी ने हमेशा से शरद पूर्णिमा की पूजा मन लगाकर की थी और उसको संपन्न भी किया था, जिसके फलस्वरूप व्यापारी की छोटी बेटी के कोई संतान नहीं थी।
जब भी कोई संतान होती थी तो वह तुरंत मर जाती और उधर व्यापारी की बड़ी बेटी को संतान की प्राप्ति हुई और उसके बच्चे सही सलामत और स्वस्थ हुए। यह देख कर यह व्यापारी की छोटी बेटी बहुत परेशान हो जाती है और उसने एक ब्राह्मण के पास जाने का निर्णय लिया।
जब व्यापारी की छोटी बेटी ने ब्राह्मण के पास जाकर उनसे पूछा कि महाराज मेरे जब भी कोई संतान होती है, वह मर क्यों जाती है और मेरी बड़ी बहन की जब भी कोई संतान होती है तो वह स्वस्थ रहती है। ऐसा मेरे साथ क्यों होता है।
जिसके बाद उस ब्राह्मण मैं व्यापारी की छोटी बेटी से कहा की तुमने जो अपराध किया है, उसका फल तुमको मिल रहा है। जिसके कारण तुम्हारी कोई भी संतान होती है, वह मर जाती है। यह सुनकर वह आश्चर्यचकित हो गई और तभी व्यापारी की छोटी बेटी ने ब्राह्मण से पूछा कि कैसा अपराध हुआ है, मुझसे आप बताइए।
तब ब्राह्मण ने व्यापारी की छोटी बेटी को बताया कि तुमने कभी भी शरद पूर्णिमा का व्रत और उनकी पूजा कभी पूरी नहीं की है, उसको हमेशा आधा अधूरा छोड़कर खत्म किया है। जिसके कारण तुमको यह कष्ट झेलना पड़ रहा है।
जिसके बाद व्यापारी की छोटी बेटी ने ब्राह्मण से इसका उपाय पूछा तब उस ब्राह्मण व्यापारी की छोटी बेटी से कहा तुम एक बार फिर से शरद पूर्णिमा का व्रत करना शुरू कर दो और इस बार उनकी पूजा पूरी करना।
जिसके बाद व्यापारी की छोटी बेटी ने ब्राह्मण की बात मानकर शरद पूर्णिमा की पूजा करने की तैयारी करने लगी और व्रत भी रखा। इस बार पूजा संपन्न भी की, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी जब व्यापारी की छोटी बेटी को संतान की प्राप्ति हुई तब उसकी संतान एक बार फिर से जन्म के बाद मर गई। जिसको देखकर वह बहुत क्रोधित हो हो गई।
जिसके बाद उसने अपनी बड़ी बहन को अपने घर बुलाया ताकि वह उससे बदला ले सके कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, जिसके लिए व्यापारी की छोटी बेटी ने एक पाटे में अपने मरे हुए बेटे को लिटा दिया और उसके ऊपर से एक चादर से उसको डाल दिया, जिससे वह दिखे नहीं और अपनी बड़ी बहन को अपने घर बुला लिया। जिसके बाद व्यापारी की छोटी बेटी ने अपनी बड़ी बहन को उसी पाटे पर बैठने के लिए कहा, जिसमें उसका मरा हुआ बच्चा लेटा था।
जैसे ही उसकी बड़ी बहन उस पाटे में बैठने लगी तब उसको कुछ अजीब लगा, जिसको देखने के लिए वह उठी और उसने देखा कि नीचे तो एक बच्चा लेटा है। जिसको व्यापारी की बड़ी बेटी ने छुआ तो वह मरा हुआ बच्चा जोर-जोर से रोने लगा।
जिसके बाद व्यापारी की बड़ी बेटी ने अपनी छोटी बहन से कहा कि तुम मुझसे यह क्या करवाने जा रही थी। अभी तो मुझसे अपने बच्चे की मृत्यु करवा देती और मैं कितना बड़ा अपराध कर देती।
जिसके बाद उसकी छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन को बताया कि यह बच्चा तो पहले से ही मर चुका था। लेकिन जैसे ही तुमने इस बच्चे को छुआ है, वह पुनः जीवित हो गया। तुमने मेरे बच्चे को नया जीवन दिया है, यह चमत्कार देखकर सभी लोगों ने भी शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजा करना शुरू कर दी।
शरद पूर्णिमा को अधिकतर उत्तर भारत में रहने वाले लोग मनाते हैं और जब अश्विन की पूर्णिमा होती है तो उससे ही सभी लोग शरद पूर्णिमा कहते हैं और इस दिन उपवास रखने के कारण इस उपवास को कोजागरी उपवास पूर्णिमा और रास पूर्णिमा कहते है क्योंकि बहुत से लोगों का मानना है।
इस दिन भगवान श्री कृष्ण जी ने अपनी गोपियों के साथ रासलीला की थी। शरद पूर्णिमा के दिन सभी लोगों को चंद्रमा को देखना चाहिए, क्योंकि उस दिन चंद्रमा अपनी पूरी सोलह कलाओं में विराजमान होता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा इतना सुंदर लगता है कि मन करता है बस उसे देखते ही जाए। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को देखने से हमारे शरीर में एक अलग सी शांति प्रदान होती है और शरद पूर्णिमा के दिन सभी लोग सुबह स्नान करके और नए कपड़े पहन कर पूजा की तैयारी करते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन सभी लोग जो भी शरद पूर्णिमा की पूजा करता है, उस दिन उसको पूरे दिन का व्रत रखना होता है। शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और जैसे-जैसे शाम होती है तो शाम के समय ही माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। पूजा करने के बाद सभी लोग चंद्रमा के पास जाते हैं। चंद्रमा को देखकर अपना व्रत खोलते हैं, बहुत सारे गाने गाते हैं, खीर बनाते हैं।
जिसको खाकर बहुत सारा आनंद प्राप्त करते हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि शरद पूर्णिमा वाले दिन रात में चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है, जिसके कारण सभी लोग खीर बनाकर अपनी छत में जाकर खीर को रख देते हैं।
जब रात के बारह बज जाते हैं तब सभी लोग चंद्रमा की पूजा करते है, उस खीर का सेवन करते हैं और ऐसा माना जाता है कि जो भी मनुष्य और औरत शरद पूर्णिमा का व्रत रखते हैं, उसकी सारी इच्छाएं पूरी होती हैं।
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