Rabindranath Tagore Biography in Hindi: हमारे देश में बहुत से ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों ने जन्म लिया है, जिनके संपूर्ण जीवन से यदि कोई सीख ली जाए तो वह एक प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।
हमारे भारतीय इतिहास में आपको बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे, जिन्होंने अपने कार्यों के बल पर हमारे देश का प्रतिनिधित्व किया हुआ है। ऐसे ही व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे, रबीन्द्रनाथ टैगोर। जिनके बारे में यदि हम शब्दों में बयां करें तो हमारे लिए शब्दों की कमी पड़ जाएगी।
यह एक ऐसे अद्भुत प्रतिभा के धनी वाले व्यक्तित्व के व्यक्ति के दिन के संपूर्ण जीवन से हमें एक प्रेरणा भी मिलती है।
इस लेख में रविंद्र नाथ टैगोर जीवन परिचय (rabindranath tagore ka jivan parichay) जानेंगे, जिसमें उनके जन्म, परिवार, शिक्षा, रविंद्र नाथ टैगोर की प्रमुख रचनाएं, मृत्यु, आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय (Rabindranath Tagore Biography in Hindi)
पूरा नाम | रबीन्द्रनाथ टैगोर |
जन्म और स्थान | 7 मई 1861, कलकत्ता, ब्रिटिश भारत (वर्तमान कोलकाता, पश्चिम बंगाल) |
पिता का नाम | देवेंद्रनाथ टैगोर |
माता का नाम | शारदा देवी |
पत्नी का नाम | मृणालिनी देवी |
बच्चे | रेणुका टैगोर, शामिंद्रनाथ टैगोर, मीरा टैगोर, रथिंद्रनाथ टैगोर और मधुरनथ किशोर |
पेशा | लेखक, गीत संगीतकार, नाटककार, निबंधकार, चित्रकार |
भाषा | बंगाली, अंग्रेजी |
पुरस्कार | साहित्य में नोबेल पुरस्कार (1913) |
निधन | 7 अगस्त, 1941 |
निधन का स्थान | कलकत्ता, ब्रिटिश भारत |
रबीन्द्रनाथ टैगोर कौन थे?
रबीन्द्रनाथ टैगोर बीसवीं शताब्दी के भारत के एक प्रमुख कवि और लेखक थे, जो उस समय के सबसे प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक थे। यह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय गान की रचना की और साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार को प्राप्त किया।
यह बहुस्तरीय दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्तित्व के व्यक्ति थे, जो एक बंगाली कवि, ब्रह्म समाज दर्शनिक, हास्य कलाकार, नाटककार, उपन्यासकार, चित्रकार और एक संगीतकार के रूप में भी जाने जाते हैं और यही कारण है कि इन्हें बहु स्तरीय कला का ज्ञाता भी कहा जाता है।
रविंद्र नाथ टैगोर ने अपनी लेखन प्रतिभा के कारण संपूर्ण विश्व भर में अपनी एक अलग पहचान बनाई। इन्होंने बहु स्तरीय दृष्टिकोण को रखते हुए अपने स्तर को इतना ज्यादा ऊंचा कर दिया है कि वर्तमान समय में किसी भी लेखक का वहां तक पहुंचना नामुमकिन सा है।
इन सभी के अतिरिक्त रबीन्द्रनाथ टैगोर समाज सुधारक के रूप में भी विश्व विख्यात है। आज जब पूरा विश्व नई नई तकनीक की ओर अग्रसर हो चुका है और नई-नई प्रणाली कर विकास के क्षेत्र में अपनी सहयोग प्रदान कर रहा है।
आज के इस आधुनिक दौर में भी यह दुनिया के लोग रबीन्द्रनाथ टैगोर के काव्य गीतों के द्वारा उनको याद किया करते हैं। रबीन्द्रनाथ टैगोर महान बुद्धिजीवियों में से एक है, जो अपने समय से आगे थे और यही कारण है कि अल्बर्ट आइंस्टाइन के साथ उनकी मुलाकात को विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच टकराव सिद्ध करती है।
टैगोर अपनी विचारधारा के माध्यम से दुनिया के बाकी हिस्सों में ज्ञान के प्रकाश को फैलाने के लिए उत्सुक थे और इसीलिए जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में उन्होंने विश्व यात्रा करनी शुरू की।
शीघ्र ही उनके द्वारा किए गए कार्यों की विश्व के देशों ने सराहना की और अंततः उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि पहले गैर-यूरोपीय नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में भी जाने जाते हैं।
टैगोर ने ‘जन गण मन’ भारत के राष्ट्रीय गान के अतिरिक्त ‘अमर शोनार बांग्ला’ के लिए भी रचना की, जो आगे चलकर बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में भी जाना गया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म
विलक्षण प्रतिभा के धनी रबीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म इनके पैतृक स्थान कोलकाता के जोड़ासाँको हवेली में 7 मई 1861 को हुआ। इनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर और इनकी मां का नाम शारदा देवी था।
यह अपने परिवार के सभी बच्चों में से सबसे छोटे बच्चे थे। उन्होंने अपनी मां को अपने छोटी उम्र में ही खो दिया था, जिसकी वजह से उनका लालन पोषण नौकरों और नौकरानियों द्वारा किया गया था।
रविंद्र नाथ टैगोर का पारिवारिक संबंध
रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्र नाथ टैगोर का पेशा व्यापक रूप से यात्रा करने वाला था और इसी कारण अपने पुत्र को ज्यादा समय नहीं दे पाते थे। रबीन्द्रनाथ टैगोर अपनी बहुत कम उम्र में ही बंगाल पुनर्जागरण का हिस्सा बन गए थे और उनके परिवार की भी भागीदारी इसमें थी।
टैगोर बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। क्योंकि उन्होंने केवल 8 वर्ष की उम्र में ही कविताओं को पढ़ना शुरू कर दिया था। 16 वर्ष की उम्र तक टैगोर ने कला कृतियों की रचना करनी शुरू कर दी।
इसके अतिरिक्त छद्म नाम भानुसिंह के तहत उन्होंने अपनी कविताओं को प्रकाशित करने का कार्य भी शुरू कर दिया था।
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रविंद्र नाथ टैगोर का प्रारंभिक जीवन
अपने प्रारंभिक जीवन को शुरू करते हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1877 में लघु कथा ‘भिखारिनी’ और 1982 में कविता संग्रह ‘संध्या संगत’ की रचना भी कर दी थी।
इसके अतिरिक्त रबीन्द्रनाथ टैगोर 1873 में अपने पिता के साथ अमृतसर की यात्रा की और वहां पर उन्होंने सिख धर्म से ज्ञान प्राप्त किया।
सिख धर्म से प्राप्त अनुभव से उन्होंने बाद में 6 कविताओं और धर्म पर कई लेखों को कलमबद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा
टैगोर ने अपनी प्रारंभिक एवं ग्राम परीक्षा को ब्राइटन, ईस्ट ससेक्स, इंग्लैंड में एक पब्लिक स्कूल में शुरू की। रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता चाहते थे कि उनका बेटा बैरिस्टर बने और इसी के कारण उन्होंने 1878 में रबीन्द्रनाथ टैगोर को इंग्लैंड में भेज दिया था।
बचपन से ही रबीन्द्रनाथ टैगोर स्कूली शिक्षा को ग्रहण करने के लिए दिलचस्पी नहीं रखते थे। इसके बाद भी उन्हें एक बार लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा गया, जहां उनको कानूनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए बोला गया।
परंतु उन्होंने एक बार फिर से अपनी इच्छा के अनुसार ही कार्य किया और उसके ठीक विपरीत वह अपने कार्य को करने लगे।
बाद में टैगोर ने अपने दम पर शेक्सपियर के कई कार्य को करना सीखा। फिर उसके बाद अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार सीखने के बाद वह अपने स्वदेश लौट आए और यहां पर उन्होंने मृणालिनी देवी से शादी कर ली।
रविंद्र नाथ टैगोर का व्यक्तिगत जीवन
बाद में टैगोर ने अपने दम पर शेक्सपियर के कई कार्य को करना सीखा। फिर उसके बाद अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत का सार सीखने के बाद वह अपने स्वदेश लौट आए और यहां पर उन्होंने 1883 में मृणालिनी देवी से शादी कर ली।
शांतिनिकेतन की स्थापना
रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता ने शांति निकेतन के क्षेत्र में एक जमीन का बड़ा हिस्सा खरीद कर रखा था। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने पिता की संपत्ति को स्कूल के रूप में रूपांतरित करने का विचार किया। इस कार्य का शुभारंभ उन्होंने 1901 में करना शुरू कर दिया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। यही आगे चलकर शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के नाम से जाना गया। इसके अंतर्गत दो परिषद हैं, एक सांतिनिकेतन और दूसरा श्रीनिकेतन है।
श्रीनिकेतन के अंतर्गत कृषि, प्रौढ़, शिक्षा, गांव, कुटीर, उद्योग और हस्तशिल्प की शिक्षा प्रदान करने का कार्य होता है।
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रविंद्र नाथ टैगोर की प्रसिद्ध रचनाएं
भारत के राष्ट्र कवि रविंद्र नाथ टैगोर ने वैसे तो बहुत सी रचनाएं लिखी है। परंतु इन्होंने कुछ ऐसी भी रचनाएं लिखी है, इसे आज पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध माना जाता है।
रविंद्र नाथ टैगोर अवतरित पुरुष थे और उन्होंने अपनी रुचि को अनेकों क्षेत्रों में दिखाया। आइए हम सभी जानते हैं राष्ट्रकवि रविंद्र नाथ टैगोर की रचनाओं के विषय में:
- रविंद्र नाथ टैगोर ने बहुत ही छोटी सी उम्र में अपनी पहली कविता लिखी थी, जिसका नाम लघुकथा था।
- रविंद्र नाथ टैगोर के लेखक के साथ-साथ 2230 गीतों की भी रचना की।
- रविंद्र नाथ टैगोर ने अपनी संस्कृत का ध्यान रखते हुए बंगाली संस्कृत में अपना योगदान दिया।
रबीन्द्रनाथ टैगोर के संगीत और कलाकृतियां
रबीन्द्रनाथ टैगोर बहुमुखी प्रतिभाशाली होने के अतिरिक्त वे एक अच्छे संगीतकार भी थे। इन्होंने 2000 से भी अधिक संगीत की रचना की और उसे चित्र का रूप भी प्रदान किया। आज भी उनके संगीत को बंगाली संगीत संस्कृति का एक अभिन्न अंग माना जाता है।
इनके गीतों को रविंद्र संगीत के रूप से भी विश्व विख्यात है। उनकी संगीत की रचना में भक्ति में भजन और प्रेम सारांश तक सीमित है। इसके अतिरिक्त इनके संगीत मे मानवीय संगीत भावनाओं के पहलू भी देखने को मिल जाते हैं।
जब रबीन्द्रनाथ टैगोर की उम्र 60 वर्ष की हुई तो उन्होंने पेंटिंग करना शुरू कर दिया और उन्होंने अपने जीवन काल में 2000 से भी अधिक चित्र रचनाएं की है और यह सभी अन्य देशों में भी प्रदर्शित हो चुकी है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की सबसे प्रसिद्ध रचना ‘गीतांजलि’ रही और इसी के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
टैगोर की यह रचना लोगों द्वारा बहुत पसंद की गई और इसे अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी और रूसी आदि विश्व के सभी प्रमुख भाषाओं में इनकी इस रचना को अनुवादित किया गया था।
टैगोर द्वारा रचित कई प्रकार की कहानियां भी हैं, जो बहुत ही प्रसिद्ध हुई। उनमें से काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्ट मास्टर भी है, जो आज भी लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ी हुई है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रत्येक रचनाओं में स्वतंत्रा आंदोलन और उस समय के सामाजिक दृष्टि की झलक देखने को मिल जाती है।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का सामाजिक जीवन
16 अक्टूबर 1905 को रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर उन्होंने बंग – नामक आंदोलन का आरंभ हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इसी आंदोलन की वजह से भारत में स्वदेशी आंदोलन का शुभारंभ हुआ था।
इसके अतिरिक्त रबीन्द्रनाथ टैगोर ने सबसे बड़े नरसंहार जलियांवाला बाग कांड की बहुत ही कड़ें तरीके से निंदा की थी।
अंग्रेजों द्वारा रबीन्द्रनाथ टैगोर की बहुमुखी प्रतिभा को देखकर उन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि प्रदान की गई थी। जलियांवाला बाग कांड के बाद कड़ी निंदा करने के बाद उन्होंने अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई इस उपाधि को वापस लौटा दिया था।
रबीन्द्रनाथ टैगोर की विरासत
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाली साहित्य को एक नया आयाम प्रदान किया था और उसी के वजह से उन्हें कई लोगों ने अपने दिल में बसा लिया है।
इसके अलावा कई देशों में इनकी प्रतिमाएं भी स्थापित है और वार्षिक आयोजनों में ऐसे कई प्रसिद्ध लेखकों को श्रद्धांजलि भी प्रदान की जाती है।
Rabindranath Ji Tagore द्वारा किए गए कार्यों को अंतर्राष्ट्रीय रूप भी प्रदान किया गया और कई देशों ने इनकी सराहना भी की है। रबीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित 5 संग्रहालय का निर्माण किया गया।
5 में से 3 हमारे देश भारत में स्थित है और 2 बांग्लादेश में स्थित है। लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष इनके संग्रहालय में लोग जाया करते हैं।
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रविंद्र नाथ टैगोर को प्राप्त उपलब्धियां
रविंद्र नाथ टैगोर को उनकी रचनाओं और उनके कार्यक्षेत्र को ध्यान में रखते हुए अनेकों प्रकार की उपलब्धियों से सम्मानित किया गया है, जिनका विवरण निम्नलिखित है:
- रविंद्र नाथ टैगोर को उनके जीवन में सबसे प्रमुख रचना गीतांजलि के लिए 1993 ईस्वी में नोबेल पुरस्कार दिया गया।
- रविंद्र नाथ टैगोर ने भारत को और बांग्लादेश को उनकी ज़मानत के रूप में अपनी संस्कृति को बढ़ावा देते हुए उन्हें उनका राष्ट्रगान प्रदान किया। इन दोनों ही देशों का राष्ट्रगान लिखकर रविंद्र नाथ टैगोर ने अमरत्व प्राप्त कर लिया।
- रविंद्र नाथ टैगोर ने भारत के लिए जन गण मन और बांग्लादेश के लिए आमार सोनार बांग्ला राष्ट्रगान प्रदान किए।
- रविंद्र नाथ टैगोर ने इतना ही नहीं बल्कि अपने जीवन में लगभग 3 बार विज्ञान क्षेत्र के सबसे महान साइंटिस्ट अल्बर्ट आइंस्टीन से मिले। अल्बर्ट आइंस्टीन को रविंद्र नाथ टैगोर काफी ज्यादा पसंद है, इसलिए उन्होंने रविंद्र नाथ टैगोर को एक नया नाम दिया जो रब्बी टैगोर था।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का अंतिम दिन और मृत्यु
रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन के अंतिम 4 वर्ष में बहुत बीमारियों का सामना किया और वे अपने इन 4 वर्षों में दर्द से पीड़ित रहे थे।
लम्बे समय से बीमारी से लड़ने के बाद टैगोर का 7 अगस्त 1941 को स्वर्गवास हो गया। उनका स्वर्गवास उनके पैतृक हवेली जोरासांको में हुआ।
निष्कर्ष
रवींद्रनाथ टैगोर के पूरे जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में कोई भी कार्य अगर करना हो तो उसके प्रति हमें सदैव सचेत रहना आवश्यक होता है। मानव अगर चाहे तो किसी भी असंभव कार्य को अपनी इच्छा मात्र से एवं उसके प्रति सहज रहकर अपनी सफलता को प्राप्त कर सकता है।
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