पड़ोसी राजा (तेनालीराम की कहानी)

पड़ोसी राजा (तेनालीराम की कहानी) | Padosi Raja Tenali Rama ki Kahani

विजयनगर साम्राज्य में तेनाली रामा नाम का व्यक्ति बहुत ही प्रचलित था जो कि विजयनगर साम्राज्य के महाराजा के सलाहकार भी थे। तेनाली रामा अपनी बुद्धि एवं चतुराई से हर किसी के मन को मोह लेते थे। बुरे से बुरे व्यक्ति को अच्छा बनाने मैं तेनाली रामा को महारथ हासिल था।

विजयनगर साम्राज्य के हालात अच्छे ना थे। राज्य में पड़ोसी देश का हमला करने का खतरा मंडरा रहा था। उस वक्त महाराजा कृष्ण देव राय अपने राज्य को लेकर बहुत चिंतित रहते थे।

Padosi Raja Tenali Rama ki Kahani
Images:-Padosi Raja Tenali Rama ki Kahani

महाराज को चिंतित देखकर एक दरबारी ने सोचा कि महाराज को तेनालीराम के खिलाफ भड़काने का इससे अच्छा मौका शायद ही कभी मिलेगा। दरबारी तुरंत महाराज के सामने गया और महाराज से कहा की महाराज अगर आप गुस्सा ना करें तो एक बात बोलूं। महाराज ने उन्हें निडर होकर बोलने को कहा। दरबारी कहता है कि महाराज क्या आप जानते हैं? तेनाली रामा उस पड़ोसी राज्य का गुप्तचर है।

वह हमारे राज्य की सभी योजनाओं को पड़ोसी राज्य तक पहुंचाता है। यही नहीं वह हमारी गुप्त बातें पड़ोसी राज्य के राजा को बता देता है। महाराज गुस्से से आग बबूला हो जाते हैं। राजा दरबार इसे कहते हैं कि मूर्ख तुम तेनालीराम के बारे में बिना कुछ जाने ऐसा कैसे कह सकते हो। जहां तक मैं जानता हूं, तेनाली रामा इमानदार और सच्चा देशभक्त भी है। वहां विजयनगर का सबसे वफादार नागरिक है। जिस पर दरबारी बोला।

महाराज! यह झूठ है।

वह इतना चालाक हैं कि आपको कुछ भी पता नहीं लगने देता। दरबारी के इतने विश्वास के साथ कहने पर राजा उसकी बात को मान लेते हैं, उसी वक्त तुरंत तेनाली रामा को बुलाया जाता है और पूछा जाता है कि क्या तुम पड़ोसी राज्य के गुप्तचर हो? तेनाली रामा को महाराज के ऐसे सवाल करने की उम्मीद ना थी।

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तेनाली रामा उसी वक्त रो पड़े। राजा ने कहा कि क्या तुम्हारे इस चुप्पी का मतलब वही है जो हमने सुना? तेनाली रामा ने रोते हुए कहा कि महाराज आप मुझे अच्छी तरह जानते हैं, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा आप जो निर्णय लेना चाहे लीजिए। महाराज को बहुत गुस्सा आया और तेनालीरामा को बोले कि जाओ जिस राजा की चापलूसी करते हो उसी के साथ रहो और तुरंत तेनाली रामा को राज्य से बाहर जाने का आदेश दे दिया। तेनाली रामा तुरंत उस राज्य को छोड़कर पड़ोसी राज्य की ओर चल दिए।

तेनाली रामा पड़ोसी राज्य के दरबार पहुंचता है। जाते ही तेनाली रामा राज्य की तारीफों के पुल बांध देता है, तेनाली रामा राजा की भी खूब तारीफ करता है। तेनाली रामा की प्रशंसा से राजा बहुत खुश हुआ। तेनाली रामा की प्रशंसा सुनकर राजा बोले कि तुम कौन हो, कहां से आए हो? तेनाली रामा बोलता है कि मैं आपके पड़ोसी राज्य विजयनगर से आया हूं और मैं विजयनगर के राजा श्री कृष्ण देव राय का मुख्य सचिव हूं।

वहां के राजा तुरंत खड़े हो गए और बोले पकड़ लो इसे, यह हमारे दुश्मन के राज्य से आया है। तेनाली रामा बोले की महाराज मैं आपका दुश्मन नहीं हूं और ना ही विजयनगर आपका दुश्मन है। इसी गलतफहमी को मिटाने के लिए विजयनगर के राजा ने मुझे शांति दूत के रूप में भेजा है।

महाराज पूछते हैं कि तुम यहां तक कैसे आ गए, तुम्हें डर नहीं लगा। तेनाली रामा बोले डर तो दुश्मनों को लगता है और मैं आपका दुश्मन नहीं हूं। आप ही विजयनगर साम्राज्य को अपना दुश्मन मानते हैं। जबकि विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय आपकी बहुत तारीफ करते हैं और आपकी इस गलतफहमी को मिटाने के लिए मुझे राजा ने यहां भेजा है।

पड़ोसी राज्य के राजा को तेनाली रामा पर विश्वास होने लगा। राजा बोले तो अब हमें क्या करना पड़ेगा। तेनाली रामा बोले आपको कुछ नहीं करना है बस एक संधि पत्र के साथ उपहार के रूप में कुछ भेज दीजिए, राजा इतने में समझ जाएंगे।

जैसा कि तेनालीरामा ने कहा राजा ने उसी प्रकार तेनाली रामा के साथ अपना एक दूत भेजा, जिसके पास संधी पत्र एवं उपहार थे। अगले दिन तेनाली रामा और दूत विजयनगर के साम्राज्य तक पहुंच गए। उतने में महाराज को तेनाली रामा की बेगुनाही का पता चल गया था। महाराज कृष्णदेव राय को संधी पत्र पढ़ाया गया, जिससे महाराज की आंखें खुल गई।

महाराज ने तुरंत तेनालीराम से क्षमा मांगते हुए उन्हें गले से लगा लिया। संधी पत्र के साथ कई सारे उपहार भी थे। राजा प्रेम पूर्वक मुस्कुराते हुए तेनाली रामा के सामने देखते हैं और कहते हैं की दुश्मनी को दोस्ती में बदलना सिर्फ तेनालीरामा को ही आता है। तेनाली रामा ने एक बार फिर से अपना मान सम्मान वापस ले लिया और इसके साथ ही महाराज का विश्वास भी जीत लिया। दरबार में तेनाली रामा की जय की उद्दघोषणा भी हुई।

कहानी की सीख

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें किसी पर भी आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर व्यक्ति सच्चाई का पात्र नहीं होता है। और हर व्यक्ति बेईमान भी नहीं होता है।

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