कुंवर चैन सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। कुंवर चैन सिंह नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार थे, जो मध्यप्रदेश के भोपाल में स्थित है। कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
स्वतंत्रता से अपने मिट्टी को, जमीन को, रियासत को स्वतंत्र रखने के लिए अंग्रेजों से युद्ध किया और वे वीरगति को प्राप्त हुए। भारत का इतिहास स्वतंत्रता सेनानी वीर योद्धाओं से भरा हुआ है। भारत में समय-समय पर अनेक सारे स्वतंत्रता सेनानी और वीर योद्धा हुए हैं, जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से अपना नाम अमर किया।
उन स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में कुंवर चैन सिंह का भी नाम आता है। उन्होंने अंग्रेजों के समय अपने रियासत को स्वतंत्र रखना चाहा और स्वतंत्रता से शासन करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध कर दिया।
वर्तमान समय में स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय शहीद की सूची में शामिल कुंवर चैन सिंह का इतिहास और जीवन परिचय किताबों में बच्चों को पढ़ाया जाता है। वीर कुंवर चैन सिंह को प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और प्रथम शहीद का जाता है।
क्योंकि उन्होंने सबसे पहले 24 जून 1824 को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। कुंवर चैन सिंह के जीवन के बारे में आज के इस आर्टिकल में हम आपको पूरी जानकारी के साथ विस्तार से बताने का प्रयास करेंगे।
कुंवर चैन सिंह का जीवन परिचय (जन्म, युद्ध, क्रांति, विरगती)
कुंवर चैन सिंह की जीवनी एक नजर में
नाम | कुंवर चैन सिंह |
कहाँ के राजकुमार थे | नरसिंहगढ़ रियासत |
समाधि | नरसिंहगढ़ रियासत में एवं सीहोर युद्ध स्थल पर |
सम्मान | गार्ड ऑफ ऑनर |
विरगती | 24 जुलाई 1824 (सीहोर, मध्यप्रदेश में तत्कालीन अंग्रेजों की छावनी पर युद्ध करते हुए शहीद हुए) |
नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुंवर चैन सिंह
भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी और पहले शहीद कहे जाने वाले कुंवर चैन सिंह नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार थे। नरसिंहगढ़ रियासत मध्यप्रदेश के भोपाल में आता है। यहां पर राजकुमार कुंवर चैन सिंह शासन करते थे। लेकिन इन्हें अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार नहीं थी, अंग्रेजों ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाए और कुंवर चैन सिंह को परेशान करना शुरू किया, लेकिन कुंवर चैन सिंह ने अपने अंतिम समय तक अंग्रेजों की गुलामी सहन नहीं की।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1818 में भोपाल के तत्कालीन नवाब से समझौता करके 1000 सैनिकों की छावनी स्थापित की थी, यह छावनी सीहोर में स्थापित की थी। इसी जिले में नरसिंहगढ़ रियासत आती है। नरसिंहगढ़ के अलावा और भी रियासतें आती है, लेकिन उन सभी ने अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार कर ली।
इस हस्ताक्षर के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के 1000 सैनिकों को नरसिंहगढ़ रियासत से भोजन का प्रबंध एवं वेतन करना होता था। इसीलिए राजकुमार कुमार चैन सिंह ने इसे अपनी गुलामी समझा और अंग्रेजों के इस फैसले का विरोध किया।
नरसिंहगढ़ रियासत के एक मंत्री रूपराम बोहरा और एक दीवान नंदराम बख्शी यह दोनों ही अंग्रेजों से मिले हुए थे। गुप्त रूप से अंग्रेजों को सहायता प्रदान करते थे और महत्वपूर्ण जानकारी देते थे। इस बात का पता राजकुमार कुंवर चैन सिंह को लगा, तब उन्होंने इन दोनों को तलवार से मार दिया।
जिसके बाद अंग्रेजों से मिले हुए मंत्री रूपराम के भाई ने कुंवर चैन सिंह की शिकायत कोलकाता के गवर्नर से की, जिसके बाद एक बैठक बुलाई गई। इस बैठक को भोपाल के नजदीक बैरसिया में रखा गया और चैन सिंह को बुलाया गया था।
कोलकाता के गवर्नर जनरल की भोपाल के नजदीक इस बैठक में कुमार चैन सिंह को हत्या के अभियोग में 2 शर्तें में से किसी एक शर्त का पालन करके बचने के लिए कहा। पहली शर्त यह थी कि नरसिंहगढ़ रियासत को अंग्रेजों के हवाले कर दें एवं दूसरी शर्त यह थी कि नरसिंहगढ़ रियासत में पैदा होने वाली अफीम की पूरी फसल अंग्रेजों को ही बेची जाए।
नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुमार चैन सिंह में अंग्रेजों की इन दोनों ही शर्तों को ठुकरा दिया, जिसके बाद कुमार चैन सिंह अंग्रेजों की आंखों में खटकना लग गए।
कुंवर चैन सिंह का अंग्रेजों से युद्ध
जब कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों की दोनों ही शर्तों को ठुकरा दिया तब अंग्रेजों ने कुंवर चैन सिंह को 24 जून 1824 को सीहोर पहुंचने का आदेश दिया। कुंवर चैन सिंह को अंग्रेजों की नियत का संदेह हो गया था, जिसके बाद कुंवर चैन सिंह अपने साथी और सैनिक हिम्मत खान एवं बहादुर खां के साथ 42 सैनिक लेकर सिरोही पहुंच गए।
जहां पर पहले से ही अंग्रेजों की सेना युद्ध के लिए तैयार थी। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में कुंवर चैन सिंह एवं उसके साथियों ने अपने सैनिकों के साथ वीरता का परिचय दिया और अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए।
इस युद्ध में 50 से भी कम सैनिकों के साथ चैन सिंह ने अंग्रेजों की सुनियोजित तरीके से एवं शस्त्रों से सज्जित सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। दोनों सेनाओं में जबरदस्त युद्ध हुआ। युद्ध के बीच कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों की अष्टधातु तोप को तलवार से काट दिया था।
तोपों को तलवार से काटने पर तलवार तोप के बीच में फस गई थी। इस बात का फायदा उठाकर तोपची ने कुंवर चैन सिंह का सर धड़ से अलग कर दिया। कहा जाता है कि उसी समय कुंवर चैन सिंह का सर उसी जगह पर गिर गया, लेकिन उनके धड़ को उनका घोड़ा रियासत लेकर पहुंच गया।
इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से बड़ी-बड़ी और विशालकाय तोपे एवं बंदूकों से युद्ध लड़ा जा रहा था, वहीँ कुंवर चैन सिंह की तरफ से तलवार और भालों से युद्ध लड़ा जा रहा था। अंग्रेजों की विशाल सेना के आगे मुट्ठी भर चैन सिंह की सेना डटकर मुकाबला करती रही और आखिरकार एक-एक करके सभी योद्धा शहीद हो गए।
इतने कम सैनिक होने के बावजूद भी चैन सिंह एवं उसकी सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। अगर ज्यादा सैनिक और सेनापति होते तो इस युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता।
कुंवर चैन सिंह की पत्नी रानी राजावत थी, जिन्हें चैन सिंह के शहीद होने की खबर मिलने पर अन्न त्याग दिया एवं केवल पत्ते व फल खा कर जीवन यापन किया।
कुंवर चैन सिंह के शहीद होने के बाद कुंवर चैन सिंह की पत्नी रानी राजावत ने परशुराम सागर के पास एक मंदिर का निर्माण करवाया, जिसे वर्तमान समय में कुवरानी जी का मंदिर कहा जाता है। कुंवर चैन सिंह की छतरी नरसिंहगढ़ के छारबाग़ में स्थित हैं।
कुंवर चैन सिंह को मिली विरगती
उस समय सीहोर में अंग्रेजों की छावनी थी, जहां पर भरपूर मात्रा में गोला-बारूद और सैनिक थे। अंग्रेजों की छावनी पर ही कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों से युद्ध किया। अंग्रेजों ने वहां पर कुंवर चैन सिंह को अनेक बार चेतावनी दी।
लेकिन चैन सिंह ने अंग्रेजों की किसी भी चेतावनी को नहीं माना और हमेशा स्वतंत्र रहने के लिए अंग्रेजों से उन्हीं की छावनी पर युद्ध करके शहीद हो गए। कुंवर चैन सिंह के साथ गए अनेक सारे ठाकुर, जमीदार और सिपाही शहीद हो गए।
सीहोर में अंग्रेजों के साथ युद्ध करते हुए कुंवर चैन सिंह के साथ शहीद होने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानी और योद्धाओं के नाम इस प्रकार हैं:
खुमान सिंह जी (दीवान), अखे सिंह चंद्रावत जी (ठि.कड़िया), शिवनाथ सिंह जी राजावत (ठि.मुवालिया), गोपाल सिंह (राव जी), रतन सिंह (राव जी), मोहन सिंह राठौड़, हिम्मत खाँ, बहादुर खाँ, राजावत तरवर सिंह, प्रताप सिंह गौड़, पठार उजीर खाँ, फौजदार खलील खाँ, बखतो नाई, हमीर सिंह, दईया गुमान सिंह, मौकम सिंह सगतावत, गज सिंह सींदल, ईश्वर सिंह, प्यार सिंह सोलंकी इत्यादि अनेक सारे वीर योद्धा शहीद हो गए थे।
प्रथम शहीद कुंवर चैन सिंह
मध्यप्रदेश में स्वाधीनता संग्राम के दौरान सीहोर सैनिक छावनी विद्रोह 6 अगस्त 1857 को हुआ था। इस विद्रोह से लगभग 33 वर्ष पहले इसी जगह पर नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार कुंवर चैन सिंह ने अंग्रेजों के साथ अंग्रेजों की ही छावनी पर युद्ध करके शहीद हो गए। कुंवर चैन सिंह देश के पहले स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाते हैं।
सरकार ने नरसिंहगढ़ रियासत एवं सीहोर स्थल दोनों ही जगहों पर कुंवर चैन सिंह के स्मारक बनवाए है। वर्ष 2015 में मध्य प्रदेश सरकार ने कुंवर चैन सिंह को “गार्ड ऑफ ऑनर” से नवाजा गया है।
कुंवर चैन सिंह की छतरी पर गार्ड ऑफ ऑनर शुरू कर दिया गया, जिसके बाद अब हर वर्ष 24 जुलाई को उनकी जयंती पर सरकार की तरफ से गार्ड ऑफ ऑनर की सलामी उनकी समाधि स्थल पर दी जाती है।
FAQ
मध्य प्रदेश के भोपाल से नजदीक सीहोर जिले के नरसिंहगढ़ रियासत के राजकुमार थें, जिन्हें प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और शहीद का दर्जा मिला हुआ है।
मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 में कुंवर चैन सिंह को “गार्ड ऑफ ऑनर” का सम्मान दिया है, जिसके बाद हर वर्ष 24 जुलाई को उनकी समाधि स्थल पर गार्ड ऑफ ऑनर से सलामी दी जाती है।
कुंवर चैन सिंह की समाधि नरसिंहगढ़ रियासत में एवं सीहोर युद्ध स्थल पर बनी हुई है।
मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में तत्कालीन अंग्रेजों की छावनी पर युद्ध करते हुए कुंवर चैन सिंह शहीद हो गए थे। वहां पर चैन सिंह की छतरी भी बनी हुई है।
निष्कर्ष
कुंवर चैन सिंह को सरकार ने प्रथम शहीद और स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दे दिया है। मध्य प्रदेश सरकार ने कुंवर चैन सिंह को “गार्ड ऑफ ऑनर” का सम्मान दिया है। वर्तमान समय में नरसिंहगढ़ रियासत एवं सीहोर दोनों ही जगह पर कुंवर चैन सिंह की छतरी और स्मारक बने हुए हैं। पाठ्यक्रम में कुंवर चैन सिंह की वीर गाथा पढ़ाई जाती है।
कुंवर चैन सिंह का जीवन परिचय इस आर्टिकल में पूरी जानकारी के साथ विस्तार से बता दिया गया है। हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित हुई होगी। यदि आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई भी सवाल या सुझाव है तप कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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