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खाटू श्याम का इतिहास

Khatu Shyam History In Hindi :राजस्थान में खाटू श्याम भगवान की पूजा हर साल बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है। राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नगरी नाम का एक स्थान है, जहां पर हर साल फागुन के महीने में निशान यात्रा निकाली जाती है और खाटू श्याम भगवान की पूजा अर्चना की जाती है। राजस्थान के कुछ भव्य त्योहारों में खाटू श्याम का मेला भी आता है।

मगर क्या आप लोगों को पता है खाटू श्याम का इतिहास क्या है? अगर आप खाटू श्याम का इतिहास नहीं जानते तो आज इस लेख में हम आपको राजस्थान में होने वाले खाटू श्याम मेला और भगवान खाटू श्याम के बारे में बताएंगे।

Khatu Shyam ka Itihas
Image: Khatu Shyam ka Itihas

एक पौराणिक कथा के अनुसार खाटू श्याम का संबंध द्वापर युग के महाभारत काल से है। द्वापर युग के महाभारत युद्ध में जिस वीर योद्धा को बर्बरीक के नाम से जाना जाता था। भगवान श्री कृष्ण ने उसे कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। यही कारण है कि भगवान के श्याम नाम से बर्बरीक को श्याम खाटू के नाम से पूजा जाता है।

खाटू श्याम का इतिहास | Khatu Shyam History In Hindi

खाटू श्याम कौन है?

खाटू श्याम बर्बरीक का कलयुग अवतार है। द्वापर युग के महाभारत काल में बर्बरीक नाम का एक वीर योद्धा था, जो एक दिन में महज एक तीर से पूरे युद्ध को खत्म कर सकता था। भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि इस योद्धा के आने की वजह से धर्म और अधर्म की लड़ाई बेमन्य रह जाएगी। इस वजह से भगवान ने बर्बरीक से उसके शीश का दान मांगा था।

बर्बरीक भगवान का परम भक्त था और उसने बिना एक बार सोच अपने शीश को काटकर भगवान को दान में दे दिया। भगवान श्री कृष्ण इससे बहुत प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा को पूरा करते हुए आने वाले युग में उसकी पूजा अपने नाम से करने का वरदान दिया था। आगे चलकर राजस्थान के खाटू नगरी में बर्बरीक का शीश एक राजा को मिला था, जिसने खाटू श्याम के नाम से कलयुग में बर्बरीक के मंदिर को बनवाया और हर साल फागुन के महीने में लोग वहां यात्रा, मेला निकालते हैं।

खाटू श्याम का इतिहास

महाभारत की कहानी आप सबको पता ही होगी की किस प्रकार पांडवों को 13 वर्ष का वनवास दिया गया था। इस दौरान जब लाक्षागृह में आग लगी थी तो, पांडव वन वन भटकने लगे थे। वहां पांच पांडव भाई की मुलाकात तो हेडिंबा नाम की एक खूबसूरत राक्षसनी से होती है, जो भीम को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। अपनी माता की आज्ञा से भीम ने हेडिंबा से शादी रचाई और उसका बेटा घटोत्कच हुआ।

घटोत्कच अपने पिता से बहुत अधिक बलशाली था, जिसने महाभारत में पांडवों की तरफ से लड़ाई लड़ी थी। इस युद्ध में जब कोई भी घटोत्कच को हरा नहीं पा रहा था तब कर्ण ने अपने दिव्य बाण से घटोत्कच का वध किया था। उसी घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक बचपन से ही अत्यंत ध्यानी और भगवान का परम भक्त था। देवी की पूजा करके उसने वरदान में तीन ऐसे तीर प्राप्त किए थे जिसे वो किसी भी लक्ष्य पर मारे तो वह तीर उस लक्ष्य को भेद कर वापस आ जाता था।

उसकी माता ने जब बर्बरीक के इस वरदान के बारे में सुना तो वह समझ गई थी कि बर्बरीक को अब इस विश्व में कोई हरा नहीं सकता। इसलिए उसने अपने बेटे से वचन मांगा कि वह हमेशा उसका साथ देगा’ जो हार रहा होगा। बर्बरीक ने जब महाभारत के युद्ध के बारे में सुना तो उसे युद्ध को देखने और उसे खत्म करने के लिए कुरुक्षेत्र आता है। जब भगवान कृष्ण को बर्बरीक के आगमन के बारे में पता चलता है तो वह समझ जाते हैं कि यह महान वीर पल भर में पूरे महाभारत युद्ध को खत्म कर देगा।

मगर भगवान श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षा लेने के लिए उसके पास एक तपस्वी ब्राम्हण बनकर जाते है और उससे उसकी वीरता के बारे में पूछते है। परीक्षा के तौर पर भगवान श्री कृष्ण उससे कहते है कि क्या वह जिस लक्ष्य पर मारने को कहेंगे बर्बरीक उसे भेद पाएगा। तब बर्बरीक कहता है कि अगर वह परीक्षा में असफल रहा तो वहीं से वापस लौट जाएगा और महाभारत का युद्ध नहीं देखेगा।

इतना सुनते ही भगवान श्री कृष्ण पीपल के पेड़ से एक पत्ता तोड़ कर अपने पैर के नीचे दबा देते है और बर्बरीक से कहते है कि यहां पर इस पीपल के पेड़ के जितने भी पत्ते है सबको एक तीर से भेद दो।

बर्बरीक मुस्कुराते हुए यह आदेश अपने तीर को देता है और अपना तीर आकाश में मार देता है। भगवान देखते हैं कि पलक झपकते ही यह तीर सारे पीपल के पत्ते को भेदता हुआ भगवान के पैर के पास रुक जाता है, तब बर्बरीक ब्राम्हण रूपी भगवान से कहता है की हे ब्राम्हण अपना पैर हटा लीजिए वरना मेरा तीर आपके पैर को भेदता हुआ उस पत्ते को भेद देगा।

भगवान बर्बरीक के इस कारनामे से आश्चर्यचकित हो जाते है और कुछ देर सोचने के बाद बर्बरीक से कहते है कि अगर तुम इतने बलवान हो तो तुम कुछ भी पा सकते हो तो क्या तुम इस गरीब ब्राह्मण को एक दान दे सकोगे? बर्बरीक कहता है कि मेरे तीर को छोड़कर आप मुझसे कुछ भी मांग लीजिए। मैं आपकी इच्छा जरूर पूरी करूंगा।

इतना सुनते ही वह ब्राह्मण बर्बरीक से उसके शीश का दान मांगता है। बर्बरीक मुस्कुराता हुआ कहता है कि आप ब्राम्हण नहीं है कृपया अपने असली रूप में आकर मुझसे मेरा दान मांगे। उसके बाद भगवान श्री कृष्ण अपने असली रूप में आते है और बर्बरीक को बताते है कि यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है। तुम्हारे जैसे योद्धा अगर इस युद्ध में शामिल होगा तो धर्म और अधर्म का फैसला नहीं हो पाएगा।

इतना सुनकर बर्बरीक ने ब्राम्हण के दान के अनुसार अपना शीश काटकर भगवान को दान में दे दिया। भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक से बहुत खुश हुए। उन्होंने बर्बरीक के शीश काटने से पहले उसे कुछ मांगने को कहा। बर्बरीक ने कहा कि मैं महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं इसलिए मेरे इस कटे हुए शीश को ऐसी जगह विराजमान कीजिए, जहां से मैं महाभारत का युद्ध देख सकूं।

भगवान ने ऐसा ही किया बर्बरीक के शीश को एक ऊंचे पहाड़ पर रख दिया जहां से बर्बरीक महाभारत के युद्ध को देख सकें और आने वाले कलयुग में बर्बरीक के नाम को अपने नाम से जोड़कर पूजे जाने का वरदान दिया।

आगे चलकर बर्बरीक के सर को राजस्थान के खाटू नगरी से प्राप्त किया जाता है और जैसा कि हम जानते है भगवान श्री कृष्ण का नाम श्याम भी था, इस वजह से इस नाम को बर्बरीक के शीश के उत्पत्ति स्थान से जोड़कर खाटू श्याम का नाम दिया जाता है।

हर साल फागुन के महीने में राजस्थान के खाटू नगरी में भगवान खाटू श्याम का एक विशाल यात्रा निकलता है, जिसमें बड़ी मात्रा में भक्तों भगवान खाटू श्याम की जय जयकार करते हुए वहां से जाते है। यह मेला राजस्थान के कुछ भव्य त्योहारों में से एक माना जाता है।

FAQ

खाटू श्याम कौन है?

महाभारत काल के बर्बरीक योद्धा को कलयुग में खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है।

खाटू श्याम का मंदिर कहां है?

राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नगरी में खाटू श्याम का मंदिर है जहां हर साल फागुन के महीने में मेला लगता है।

खाटू नगरी में खाटू श्याम की पूजा कैसे होती है?

राजस्थान में स्थित खाटू नगरी में खाटू श्याम की पूजा हर साल फागुन महीने में एक बड़े से निशान यात्रा के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

निष्कर्ष

आज इस लेख में हमने आपको खाटू श्याम का इतिहास (Khatu Shyam History In Hindi)बताया की किस प्रकार महाभारत का बर्बरीक कलयुग में खाटू श्याम के नाम से जाना जाता है इसके बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी आज के लेख में हमने आपके समक्ष प्रस्तुत की है।

अगर इस लेख में बताई गई सभी जानकारियों को पढ़ने के बाद राजस्थान राज्य में मनाए जाने वाले एक भव्य त्यौहार की जानकारी आपको मिली है, जिससे अत्यंत प्रभावित हुए हैं तो इस लेख को अपने मित्रों के साथ अवश्य साझा करें। साथ ही अपने सुझावों विचार या किसी भी प्रकार के प्रश्न कमेंट में पूछना ना भूले।

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