Karam Mein Karuna Hi Dayaluta Hai Par Nibandh: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होता है जिसके अंदर विभिन्न प्रकार की भावनाएं उत्पन्न होती हैं। यह भावना मोह, माया प्यार, लालच, ईर्ष्या, दया करुणा इत्यादि प्रकार से भिन्न भिन्न हो सकती है। इन सभी भावनाओं को अलग अलग तरीके से प्रदर्शित किया जाता है।
आज के समय में हमें आमतौर पर लोगों में ईर्ष्या, लालच, मोह, माया इत्यादि प्रकार की भावनाएं देखने को मिलते हैं। ऐसे लोगों में दयालुता एवं करुणा जैसे शब्द ना के बराबर ही देखने के लिए मिलते हैं। ऐसी स्थिति में हमें यह निश्चित करना चाहिए कि कर्म करते समय हमेशा करुणा का भाव रखना चाहिए।
व्यक्ति के अंदर दयालुता की भावना से व्यक्तित्व को परखा जाता है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि व्यक्ति अपने कर्म के अंतर्गत किस तरह से दयालुता और करुणा की भावना रखता है। अगर कोई मनुष्य इस तरह से कर्म करता है तो यह सही दिशा में मनुष्य कहलाने लायक कर्म होता है।
मनुष्य का दयालु हो ना दूसरे लोगों की ओर दयालु बना होता है। दयालु व्यक्ति में विभिन्न प्रकार के विचारशील गुण पाए जाते हैं। यह गुण मनुष्य को हमेशा कर्म के दौरान करुणा की भावना रखने की प्रेरणा देता है और दयालु बनकर कर्म करने की ओर अग्रसर करता है।
आज के इस आर्टिकल में हम आपको कर्म में करुणा ही दयालुता है पर निबंध 150 और 500 शब्दों में निबंध बताने वाले हैं, तो चलिए शुरू करते हैं।
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कर्म में करुणा ही दयालुता है पर निबंध 150 शब्दो में ( Karam Mein Karuna Hi Dayaluta Hai Par Nibandh)
दयालुता शब्द का अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से हैं जो सुखी जीवन जीते हुए भी दूसरों के लिए चिंता करते हैं। दूसरे लोगों के लिए अपने मन में करुणा की भावना रखते हैं तथा दयालुता कर्म में करुणा है। यह इस बात को व्यक्त करता है कि मनुष्य को कर्म के दौरान करना की भावना रखनी चाहिए और दयालुता भी साथ में होनी चाहिए।
इस तरह से कर्म करने वाले लोग हमेशा दूसरे लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं। दयालुता को लोग अपने मन की भावना से व्यक्त करते हैं, इसे दया कहते हैं। जो लोग दूसरों पर दया दिखाकर कुछ सहयोग या उनके लिए कार्य करते हैं उसे दयालुता की प्रवृत्ति कह सकते हैं।
दया एक तरह का पुण्य है जो व्यक्ति दूसरों की मदद करता है। बिना किसी लालच और अपने लाभ के लिए दूसरों का सहयोग करता है वह व्यक्ति दयालुता के अंतर्गत पुण्य प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति दूसरों के प्रति दयालु होते हैं।
कर्मा में करुणा है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कर्म अथवा कार्य किस प्रकार से करते हैं। व्यक्ति के कर्म ही उस व्यक्ति की प्रवृत्ति और उसके जीवन के लक्ष्य और जीवन रेखा को निर्धारित करता है।
कर्म के दौरान करुणा की भावना रखना एक दयालु और निष्ठावान मनुष्य की पहचान है। इसे बरकरार रखना दयालुता कर्म में करुणा है। कर्म करने के दौरान मनुष्य विभिन्न प्रकार के लालच वाली भावनाओं से ग्रसित हो जाता है और वह दयालुता कर्मा में करुणा है को सदैव के लिए भूल जाता है।
कर्म में करुणा ही दयालुता है पर निबंध 500 शब्द ( Essay On Karam Mein Karuna Hi Dayaluta Hai)
प्रस्तावना
“कर्म में करुणा ही दयालुता का अर्थ है।
बिन दयालुता के मनुष्य जीवन ही व्यर्थ है”।।
दयालुता का अर्थ कर्म में करुणा का होना आवश्यक है। अगर किसी व्यक्ति में दयालुता की भावना नहीं है तो वह व्यक्ति मनुष्य कहलाने लायक नहीं है। अर्थात उस व्यक्ति का मनुष्य जीवन व्यर्थ है क्योंकि मनुष्य की पहचान नहीं दयालुता कर्म में करुणा होती है।
यह कर्म की एक पद्धति है जिसे मनुष्य को भावनात्मक रूप से दयालुता के साथ कर्म में करुणा की भावना रखनी होती है। जिससे व्यक्ति अपने कर्म के साथ दूसरे व्यक्ति का सहयोग करके दयालुता और कर्म के दौरान करुणा की रखा कर दयालुता और करुणा का महत्व व्यक्त करता है।
दयालुता
दूसरे लोगों के प्रति दया रखने वाले लोग दयालुता को महत्व देते हैं। ऐसे लोग जरूरतमंद लोगों की सहायता करते हैं दीन- हीन के प्रति संवेदनशीलता व्यक्त करते हैं और विनम्रता से उसका सहयोग करते हैं।
इस तरह के दयालु भावना वाले गुण बहुत ही कम मनुष्य में देखने को मिलते हैं जिस व्यक्ति में इस तरह की दयालुता के भाग होते हैं। वह व्यक्ति मनुष्य कहलाने लायक होता है उसका मनुष्य जीवन सफल हो जाता है कर्म के दौरान भी दयालुता की भावना रखनी जरूरी होती है।
जो मनुष्य दूसरे के हित और भलाई के लिए कर्म करता है अथवा उसका सहयोग करता है। वह व्यक्ति अपने हृदय में दयालुता की भावना रखता है ऐसे व्यक्ति हमेशा कर्म के दौरान किसी भी समय और किसी भी मोड़ पर दयालुता को नहीं पूर्ण मिलते हैं।
यही वजह है कि ऐसे लोग समाज में दयालु कहलाते हैं जो अपने बिना किसी लाभ के दूसरे लोगों की मदद और सहयोग करके उसे खुश रखते हैं अथवा उसके चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं। ऐसे लोग पिछड़े हुए लोगों को भी समाज में जिन्हें के लिए प्रेरित करते हैं।
कर्म में करुणा है
कर्म करना मनुष्य जीवन का स्वभाविक और जरूरी हिस्सा है। इसीलिए कर्म करते रहना मनुष्य की एक जीवन पद्धति बन चुका है। कर्म के आधार पर ही मनुष्य अपना जीवन सफल करता है।
अच्छे कर्म करते अपने लिए अपने परिवार के लिए समाज के लिए संपूर्ण जीव जगत के लिए और पर्यावरण तथा वातावरण के लिए अच्छा कार्य करता है। इसके अलावा कर्म मनुष्य अपने जीवन को जीने के लिए तथा अपने जीवन को और अधिक तरीके से बेहतर ढंग से जीने के लिए करता है। लेकिन इस कर्म के दौरान करुणा की भावना को रखना बहुत जरूरी है।
मनुष्य को पर्यावरण में मौजूद विभिन्न प्रकार के जीवों के प्रति भी करुणा की भावना रखनी चाहिए। उन जीवों पर भी दयालुता को दिखाना चाहिए, जो जीव जंतु अपना भरण-पोषण करने के लिए असमर्थ हैं। उन्हें भोजन देना चाहिए तथा कठिन परिस्थिति में रहने वाले जीवों की सहायता करनी चाहिए।
यह दयालुता कर्म में करुणा की भावना होती है। परंतु मनुष्य आज के समय में कर्म करते समय यह भूल जाता है कि कर्म में करुणा ही व्यक्ति की पहचान है और वह लालच एवं ईर्ष्या जैसे भाव अपने मन में पाल लेता है।
निष्कर्ष
दयालुता कर्म में करुणा है के तहत इसका सारांश यह निकलता है की – “कर्म में रखें हमेशा करुणा का भाव,
दयालुता दिखाने से कभी भी होता ना अभाव”।
इसी तरह से कर्म के दौरान करुणा की भावना रखना और कर्म के दौरान दयालुता दिखाना मनुष्य की पहचान है। मनुष्य को हमेशा दयालुता कर्मों में करुणा रखनी चाहिए। कर्म करना एक मनुष्य जीवन के लिए जरूरी कार्य है क्योंकि इससे ही मनुष्य अपने जीवन को जीता है तथा और बेहतर तरीके से जीने की कोशिश करता है।
परंतु इस दौरान कुछ मनुष्य भूल जाते हैं कि कर्म में करुणा होनी चाहिए और दयालुता का भाव होना चाहिए। लोग इन सभी को भूल कर दयालुता कर्मों में करुणा को छोड़कर लालच, ईर्ष्या इत्यादि विभिन्न प्रकार की भावनाएं उत्पन्न कर लेता है जिससे व्यक्ति दयालु कहने लायक नहीं रहता है।
अंतिम शब्द
इस आर्टिकल में हमने कर्म में करुणा ही दयालुता है पर निबंध (Karam Mein Karuna Hi Dayaluta Hai Par Nibandh) के बारे में बताया। मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी।
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