नमस्कार दोस्तों, कहानी की इस श्रृंखला में आज हम आपको हरदौल की कहानी के विषय में विस्तार से बताएंगे। आप इस कहानी को अंत तक पढ़िएगा। यह कहानी बुंदेलखंड की है और चर्चित कहानियों में से एक है।
प्राचीन समय में एक बुंदेलखंड नामक शहर हुआ करता था। मध्य प्रदेश के ओरछा नामक जिले में एक बहुत ही प्रतापी राजा रहा करता था, जिसका नाम वीर सिंह देव था। प्रजा भी अपने राजा के राज्य में बहुत खुश थी और सभी लोग आपस में मिलजुल कर रहा करते थे। वीर सिंह देव के आठ बेटे थे, उनके बड़े बेटे का नाम जुझारू सिंह था और उनके छोटे बेटे का नाम हरदौल सिंह था।
राजा ने अपने दोनों बेटों को बहुत सारे संस्कार और उनका लालन पोषण बहुत अच्छे से किया था। राजा ने अपनी मृत्यु के पहले अपना राज्य अपने बड़े बेटे जुझार सिंह को सौंप दिया था और अपने छोटे बेटे को मध्य प्रदेश के ओरछा का दीवान बनाया था। एक दिन राजा वीर सिंह देव की अचानक से तबीयत खराब हो जाने के कारण उनका निधन हो गया।
जिसके बाद उनके दोनों बेटों ने अपने पिता का अंतिम संस्कार बड़े धूमधाम से किया और फिर राजा के बड़े बेटे जुझारू सिंह ने राज्य को संभाला शुरू कर दिया। उन्होंने चंपावती नाम स्त्री से विवाह किया था और हरदौल सिंह का जन्म कब हुआ था तो हरदौल सिंह के जन्म होते ही उनकी मां का देहांत हो गया था।
जिसके बाद बड़े भाई की पत्नी चंपावती ने ही हरदौल सिंह का पालन पोषण किया था और हरदौल सिंह का विवाह दुर्गापुर के एक बहुत बड़े दीवान जिसका नाम लाखन सिंह था, उसकी बेटी हिमांचल कुंवारी के साथ हुआ था। उनसे हरदौल सिंह को एक बेटा भी जन्मा था, जिसका नाम उन्होंने विजय सिंह रखा था।
राजा जुझारू सिंह को युद्ध करने का बड़ा शौक था, जिसके कारण जुझारू सिंह हमेशा मुगलों से युद्ध करने के लिए निकल जाया करते थे। जिसके बाद उनके राज्य को हरदौल सिंह संभालते थे, जिसको देखकर जुझारू सिंह के कुछ मित्र हरदौल से जलने लगे थे। जिसके कारण उनके दोस्तों ने हरदौल सिंह से बदला लेने के लिए एक बहुत ही भयानक षड्यंत्र बनाया।
एक दिन जब राजा जुझारू सिंह युद्ध करके वापस आए तब उनके दोस्त पहाड़ सिंह, प्रतीत राय और हीरा देवी ने उनको हरदौल के खिलाफ भड़काया और उनसे कहा कि आपके पीठ पीछे यहां पर बहुत कुछ हो रहा है। राजा जुझारू सिंह ने इस पर जोर देकर अपने दोस्तों से पूछा कि मुझे खुलकर इस बारे में बताओ। तब उनके दोस्तों ने राजा जुझारू सिंह से कहा कि आपके छोटे भाई हरदौल और आपकी पत्नी चंपावती के बीच आपके पीठ पीछे चक्कर चल रहा है।
यह सुनकर राजा जुझारू सिंह बहुत क्रोधित हो गए। जिसके कारण उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि अगर तुमने कोई अपराध नहीं किया है और तुम एकदम सही हो तो तुम हरदौल को खाने में जहर मिलाकर दे दो, जिससे मैं यह समझूंगा कि तुम लोगों के बीच कुछ नहीं था। जिसके बाद जुझारू सिंह की पत्नी चंपावती ने अपने पति की बात मानते हुए हरदौल सिंह के खाने में जहर मिलाकर उनको दे दिया।
लेकिन हरदौल सिंह को यह बात पहले से ही पता थी कि खाने में जहर मिला हुआ है। जिसके बाद भी हरदौल सिंह ने अपनी भाभी को सही साबित करने के लिए और उन पर लगाए हुए कलंक को दूर करने के लिए खुशी-खुशी उस जहर वाले खाने को खा लिया और जहर वाला खाना खाकर हरदौल सिंह का निधन हो गया। जिसके बाद हरदौल सिंह के मरे हुए शरीर को ओरछा से बाहर ले जाकर एक बीहड़ इलाके में दफना दिया गया।
कुछ दिनों बाद जब जुझारू सिंह की बहन कुंजा वती ने अपनी बेटी का विवाह दतिया के रंजीत सिंह के साथ करने का फैसला लिया। जिसके बाद जुझार सिंह की बहन कुंजावती अपनी बेटी का विवाह का निमंत्रण लेकर अपने भाई जुझारू सिंह के पास गई। जहां पर जुझारू सिंह ने अपनी बहन कुंजाबती का बहुत अपमान किया और उसको बहुत भला बुरा बोला और उसको अपनी राज्य से बाहर निकाल दिया। कहा कि तुम जाकर अपने छोटे भाई हरदौल से भात मांगो।
जिसके बाद कुंजा वती रोते-रोते हरदौल सिंह की समाधि के पास पहुंच गई और वहां पहुंच कर जोर-जोर से रोने लगी और कहने लगी कि अब आप ही मुझे भात दो। ऐसा बोलकर कुंजा वती हरदौल सिंह की समाधि पर बैठकर रोने लगी। जिसके बाद कुंजा वती को एक आवाज सुनाई दी है, वह आवाज हरदौल सिंह की थी। उन्होंने कहा कि मैं अपनी भांजी की शादी में भात लेकर जरूर आऊंगा।
उन्होंने अपनी बहन से वादा किया, जिसके बाद उनकी बहन कुंजा वती अपनी बेटी की शादी की तैयारी बहुत धूमधाम से करने लगी। देखते ही देखते जब कुंजा वती की बेटी की शादी होने लगी तब हरदौल सिंह अपनी भांजी की शादी में भात लेकर पहुंचे। लेकिन उनको कोई देख नहीं पा रहा था। भात को देखकर शादी में उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए और तभी हरदौल सिंह की बहन कुंजा वती की बेटी ने जिद करना प्रारंभ कर दिया।
अपनी मां से कहा कि आप मामा जी से साक्षात प्रकट होने के लिए कहे। जिसके बाद कुंजा वती में अपने भाई हरदौल सिंह से कहा कि भाई आप साक्षात प्रकट हो। जिसके बाद हरदौल सिंह ने अपनी बहन कुंजा वती का मान रखते हुए साक्षात वहां पर उपस्थित हो गए। जिसको देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए।
जिसके बाद पूरे गांव में सनसनी मच गई और उन्होंने जहां पर हरदौल सिंह को दफनाया गया था, वहां पर सभी लोगों ने मिलकर हरदौल सिंह के नाम से एक बड़ा सा मंदिर बनवाया और उसमें हरदौल सिंह की मूर्ति भी लगवाई। तभी से सभी लोग हरदौल सिंह की पूजा करने लगे और उनको अपना भगवान मानने लगे।
तभी से ऐसी मान्यता हो गई कि जब गांव में किसी की शादी होती तो सबसे पहले हरदौल सिंह को शादी का निमंत्रण दिया जाता है और कहा जाता है कि वह निमंत्रण पाकर हरदौल सिंह शादी में अवश्य आते है। दूर-दूर से लोग हरदौल सिंह की पूजा करने के लिए आते हैं। ओरछा के लोगों ने हरदौल सिंह को भगवान की उपाधि दी है।
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