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दर्द भरी प्रेम कहानी

Emotional Pyar ki Kahani: नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके सामने एक सच्चे प्यार की कहानी (sache pyar ki kahani) लेकर प्रस्तुत हुए है। यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। इस दर्द भरी प्रेम कहानी (pyar ki dard bhari kahani) से आप प्रेम का मतलब बहुत ही करीब से महसूस कर पाएंगे। चलिए पढ़ते है दर्द भरी लव स्टोरी।

Emotional Pyar ki Kahani
अधूरे प्यार की कहानी (Emotional Pyar ki Kahani)

दर्द भरी प्रेम कहानी | Emotional Pyar ki Kahani

इस कहानी की शुरुआत होती है दशहरे के दिन से। पूर्णिमा! अपनी दोस्त के घर रावण दहन देखने के लिए जाती है जहां उसकी मुलाकात उसकी दोस्त के चचेरे भाई हेमंत से होती है। दोनों एक दूसरे को जानते हैं और फिर दोनों की दोस्ती हो जाती है। हेमंत से ये मुलाक़ात पूर्णिमा के लिए कुछ नया लाई थी। अब तो हेमंत से पूर्णिमा का मिलना जुलना बढ़ गया और कुछ दिन बाद और देखते देखते वो दोनों अच्छे दोस्त बन गये।

हेमंत और पूर्णिमा की यह दोस्ती बहुत आगे बढ़ती गई और अब तो हेमंत को पूर्णिमा से प्यार हो गया था और उसने पूर्णिमा से अपने प्यार का इज़हार तक कर दिया हालांकि पूर्णिमा थोड़ा असहज हुई क्योंकि उसके जीवन के इस ख़ालीपन में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी के वह इतने करीब आई थी और उसका प्यार का इज़हार उसके सामने करना यह सब नया था पूर्णिमा के लिए।

पूर्णिमा ने तब तो कुछ नहीं कहा बाद में हमेशा हेमंत के बारे में सोचती और अपने मन में ख्वाबों को बुनती रहती। कई बार तो उसने यह बात हेमंत से भी साझा की और जो बात आगे बढ़ी तो पूर्णिमा के इस ख़ालीपन की जगह पर हेमंत का ऐसा असर हो गया था की अब तो पूर्णिमा को भी हेमंत से प्यार हो गया।

अब दोनों की प्यार परवान चढ़ने लगी थी और  दोनों के प्यार की ऊंचाई आसमान छूने लगी थी। बात लोगों तक पहुंच गई थी और बात इतनी बढ़ी कि ख़बर का दोनों के परिवार के दहलीज तक आ गई थी।

बात जब पूर्णिमा के परिवार तक पहुंची तो पूर्णिमा के परिवार वालों ने पूर्णिमा को काफी समझाया। परिवार की मान-मर्यादा, इज़्ज़त व ना जाने कितने-कितने ताने दिए। कई बार तो परिवार के लोगों ने पूर्णिमा के ना मानने पर उसे मारा तक। उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया पर कहते हैं ना प्यार के लिए यह बहुत छोटी सी चीज है और शायद इसीलिए पूर्णिमा का प्यार के सफर में उसका कदम का पीछे ना हटना इसकी गवाही देती है।

सामाजिक रूढ़िवादिता व परिवार के लाख कोशिश करने के बाद भी जब ये रिश्ता नाकाम होता नहीं दिख रहा था तो इन दोनों के पक्ष में एक दलीलें थी कि दोनों एक ही जाति व समाज से थे। जब दोनों के इस रिश्ते को नामंज़ूर करने की सारी कोशिशें नाकाम हो गई तो दोनों की सगाई करवा दी गई।

इसे पूर्ण रूप से दोनों के प्यार की जीत तो नहीं कह सकते। पर, हां! यह एक पड़ाव तो जरूर था शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना से छुटकारे का। ये एक पड़ाव तो जरूर था सामाज के लोगों से मिलने वाले ताने का और ये एक पड़ाव तो जरूर था उनके मिलने जुलने पर लगी हुई पाबंदी का।

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बहरहाल! दोनों अब एक ऐसे रिश्ते में बंध चुके थे, जहां वो अपने शादी के और आने वाले कल के जिसमें वो साथ होंगे के ख़्वाब संजो रहे थे। पर कहानी का यह सफ़र यहां पर ख़त्म नहीं होता! कहते हैं ना नियति जिंदगी के पड़ाव को कब आखरी पड़ाव बना दे यह कोई नहीं जानता।

कल गणगौर है। आज पूर्णिमा बहुत खुश थी कि कल गणगौर है और हेमंत उससे मिलने आने वाला है। बात थोड़ी सामान्य होने लगी थी और घर के लोग भी थोड़े बहुत खुश हैं पूर्णिमा खुद को संवारती है। बार-बार आईने में खुद को निहारती है। आज बहुत खुश है मानो चकोर को चांद से मिलने के सारे विघ्न खत्म हो गए हों, सारे इंतजार खत्म हो गए हों।

हालांकि अब तो इंतजार था कल का! पूर्णिमा के लिए ये पल मानो एक दिन का नहीं हजारों-हजारों वर्षों का था। वह प्रतीक्षा में एक-एक पल को बड़ी ही कठिनाइयों से बिता रही थी। लेकिन मन में मिलने की उत्कंठा व आशा थी पर आज वह बहुत खुश थी।

वहीं दूसरी ओर हेमंत पूर्णिमा से मिलने के लिए अपने वहां से निकलता है और दुर्भाग्यवश रास्ते में हेमंत के साथ एक दुर्घटना हो जाती है और उनकी मौत हो जाती है। इस बात से बेखबर पूर्णिमा उनके लिए प्रतीक्षारत हैं।

पूर्णिमा के परिवार वालों ने पूर्णिमा को यह बात नहीं बताई, इधर हेमंत अंतिम यात्रा पर चलने को तैयार है। उनका दाह संस्कार होने वाला है तो उधर दूसरी और इन सब से अनजान  पूर्णिमा, उनके इंतजार में व्याकुल है। उसका मन बैचेन है अपने हेमंत से मिलने के लिए।

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शायद! अंतिम यात्रा में वह हेमंत के साथ हो सकती थी क्योंकि हेमंत अब इस सफर से लौट बहुत दूर जा बैठे हैं। हेमंत का दाह संस्कार हो जाता है। किंतु पूर्णिमा अपने हेमंत के इस आखिरी सफर और उसके लिए आरंभ एक दर्दनाक सफर से अब भी अंजान, एक कभी ख़तम न होने वाले इंतजार में ही रहती हैं।

इधर हेमंत की मौत की ख़बर से अनजान जब पूर्णिमा को उसकी मौत की ख़बर मिलती है तो पहले तो वह इस बात को स्वीकार हीं नहीं कर पाती है। वो ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाती है। उसका मानसिक संतुलन इतना बिगड़ जाता है कि अब वह जोरों से चीखती है, चिल्लाती है और उसकी जुबान पर एक ही लफ्ज़ बार-बार आता हैं कि मेरा हेमंत कहीं नहीं गया।

“मेरे हेमंत! जिनके लिए कल मैं पूजा करने वाली हूं वो गणगौर के पूजा में शामिल होने जरूर आएंगे। उन्होंने मुझसे ना भूलने का वादा किया हुआ है इसीलिए हेमंत जरूर आएंगे। मेरे हेमंत जरूर आएंगे।”

कभी चीखती है, कभी जोर से चिल्लाती है तो कभी अचानक अपने आप को सन्नाटे में बदल देती है। फिर उस सन्नाटे को चीरती हुई अपने चीख पुकार से, हमेशा एक हीं बात दुहराती है कि मेरा हेमंत जरूर आएगा। मेरे हेमंत मुझे छोड़कर नहीं जाएंगे।

अब इस बात को हुए महीनों बीत गए हैं पर उसके जुबान में बस एक ही बात है मेरे हेमंत मुझे छोड़कर नहीं जा सकते, वह जरूर आएंगे।

इन सबके बीच, परिवार के लोग व समाज के अन्य लोग जो इसके प्यार को नाकाम करने में अपनी तमाम कोशिशें कर चुके थे। वह लोग जो कभी न जाने कितने ताने सुनाया करते थे तो कभी तानों की बरसात कर दिया करते थे। आज उनकी आंखों में भी आंसू थे पूर्णिमा के हालात देखकर।

आज वो लोग भी उनके प्यार की बात कर रहे थे जिन्होंने कभी उनके प्यार को नहीं समझा था और प्रार्थना कर रहे थे पूर्णिमा के जल्द ठीक होने की। उसकी ज़िन्दगी की खुशियों की दुआ मांग रहे थे।

क्या उनके आंखों में आंसू पश्चाताप के आंसू हैं? क्या इन समाज व परिवार के लोगों की हमदर्दी में उनकी सोच में परिवर्तन की कोई किरण झलक रही थी? क्या जो लोग कभी इन्हें ताने दिया करते थे, वो आज जो भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं इसके ठीक होने की। क्या ये उनकी ह्रदय की गहराइयों से की गई प्रार्थना थी?

बहरहाल कहानी में आपको आगे लिए चलते हैं। कहानी की उस पड़ाव पर हम पहुंच चुके हैं जहां पर पूर्णिमा के जिंदगी की शुरुआत होने से पहले ही खत्म होता दिख रहा था।

खैर, बहुत दिन गुजर गए थे अब पूर्णिमा ख़ामोशी के साथ रहने लगी थी। अपनी खामोशी में अपनी घुटन को छुपाए बैठी रहती थी, किसी से कुछ नहीं कहती। अपने जज्बातों को अपने सिरहाने में समेटे रहती, रात में उसकी सिसकने की  आवाज बस उसके कानों तक हीं जाती थी। किसी और का कंधा उसके रोने के लिए था भी तो नहीं।

इसी बीच परिवार की ओर से दलील दी जाने लगी कि अब कौन करेगा इससे शादी और यदि बेटी की शादी नहीं होगी तो समाज में लोगों के बीच क्या मुंह दिखाएंगे! यह सोचकर हेमंत के छोटे भाई से पूर्णिमा की फिर से सगाई करवा दी गई।

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ना चाहते हुए भी पूर्णिमा को फिर एक रिश्ते में बांध तो दिया गया पर वह महीनों तक, वर्षों तक जिंदा होकर भी मरती रही, सहती रही सारे ताने, सारी प्रताड़ना। अब वह जिंदा होकर भी मर चुकी थी, थक चुकी थी।

अपने ज़िंदगी के सफ़र में और अब वह इतना थक चुकी थी कि धीरे-धीरे अपने हालातों से समझौता करना सीख लिया था उसने और शायद इसीलिए अब तो खुश रहने लगी थी। परिवार के अन्य सदस्यों के सामने और लोगों के सामने अपने दुख को छुपाने की भरसक पूरी कोशिश करने लगी थी।

फिर शुरू हो गई इस समाज के अन्य लोगों की अपनी अपनी पूर्वाग्रह तथा दलीलें फिर से लांछन लगाना शुरू कर दिया गया और प्यार का मजाक बनाने का एक और नया हथकंडा मिल गया शायद उन्हें। अब उसकी खुशी पर न जाने कितनी बातें गढ़ने लगे कि देखो कितना खुश है मानो कुछ हुआ ही ना हो।

ध्यान रहे ये वही लोग हैं जो कुछ ही समय पूर्व पूर्णिमा के हालातों पर आंसू तक बहा रहे थे और भगवान से प्रार्थना की थी उसके जल्दी ठीक होने की। आज वही लोग इस पर चरित्र हीनता के आरोप मढ़ रहे थे।

इन सभी बातों ने उसके जीवन में पुनः वहीं सारी विपदाओं को ला खड़ा किया जो उसने पहले देखी थी। मानो उस के जीवन में दुखों का साया फिर से आ गया। उसके हंसते खेलने वाले जिंदगी में फिर से दुखों का बवंडर आ गया। अब वह फिर से टूटने लगी।

समाज ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि, इसने जो कुछ भी किया था वह नाटक था। वह सारा प्यार, वह सारा दुख तो दिखावा था वह तो महज़ एक छल था और पूर्णिमा से अब उसके ससुराल वालों ने फिर से सगाई तोड़ दी, ये कह कर कि हमारे एक बेटे की मौत की जिममेदार यहीं हैं, अब दूसरे को न मार दे। इसके कारण हमारे मान सम्मान, इज्ज़त को ठेस पहुंची है और साथ ही ठहरा दिया अपने ही बेटे के मौत का जिम्मेदार।

हम उसके दर्द की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं जिसने इस दर्द को जिया हैं। मैंने मात्र देखा है उसे ये ज़िन्दगी जीते हुए और मैं बहुत आहत हूं लोगों की, समाज की व परिवार की ऐसी मानसिकता को देखकर। और जिसने ये सब सहा है उसकी मनोदशा कोई नहीं समझ सकता। फिर क्यों लोग आ जाते हैं किसी की खुशियों को छीनने, क्यों लोगों को किसी की पल भर की खुशी नहीं देखी जाती! उसके दर्द को नहीं समझ सकते तो मत समझो उसे और दर्द तो ना दो!

क्यों किसी को फिर से जीने का हक नहीं, मुझे आज तक उस लड़की का गुनाह समझ नहीं आया कि क्या किसी से प्यार करना गुनाह है! क्या प्यार करने से वो चरित्रहीन हो जाती हैं! और क्या उसका गुनाह था कि उसका प्यार अधूरा रह गया! क्या उसका गुनाह ये था कि उसने फिर से जीना चाहा!

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प्यार के नाम पे लोग न जाने कितने भाषण देते हैं, ना जाने कितनी सारी उपमाऐं दी जाती है। कान्हा जी और राधा जी के प्रेम को लोग पूजते हैं, क्या वाकई में पूजते हैं! मैं नहीं मानता ऐसा की लोग मानते हैं भगवान के उस प्यार को!

अगर ऐसा होता तो आज हर समाज में प्यार करने वालो को अलग नहीं होना पड़ता, किसी को ये दर्द नहीं सहना पड़ता।

अगर लोगो के अनुसार ये गुनाह ही हैं तो क्यों पूजा करते हो राधा कृष्णा की प्रेम की मूरत की? क्यों उन्हें भी सजा नहीं देते प्रेम करने की, प्रेम करके अधूरा छोड़ देने के लिए!

एक ही उम्मीद करूंगा किसी को जीने नहीं दे सकते तो उसे मरने के लिए मजबूर तो न करो! किसी का दर्द नहीं समझ सकते तो और दर्द मत दो।

उम्मीद करता हूँ कि आपको यह दर्द भरी कहानी और सच्ची प्रेम कथा (sachi love story) पसंद आई होगी, इसे आगे शेयर जरूर करें

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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