धर्मात्मा शब्द में समास (Dharmaatma Mein Kaun sa Samas Hai)
धर्मात्मा में प्रयुक्त समास का नाम क्या है?
धर्मात्मा में तत्पुरुष समास है।
Dharmaatma Mein Kaun sa Samas Hai?
Dharmaatma Shabd mein Tatpurush Samas Hai.
धर्मात्मा का समास विग्रह क्या है?
धर्मात्मा का समास विग्रह धर्म की आत्मा है।
Dharmaatma ka Samas Vigrah kya hai?
Dharmaatma ka Samas Vigrah dharam ki aatma
धर्म की आत्मा का समस्त पद है?
धर्मात्मा
तत्पुरुष की परिभाषा
तत्पुरुष समास उसे कहा जाता है, जिसमें उत्तरपद प्रधान होता है। ऐसे सभी वाक्य जिसमें प्रथम पद गौण होता है एवं उत्तर पद की प्रधानता होती है। इस तरह के शब्द तत्पुरुष समास के अंतर्गत आते है। इनका उच्चारण करते समय विभक्ति का लोप हो जाता है।
तत्पुरुष समास की पहचान इसने आने वाले शब्दों कारक चिन्हों को, से, के लिए, से और का/के/की आदि का लोप होता है।
तत्पुरुष समास में कौन सा पद प्रधान होता है?
तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है और प्रथम पद गौण होता है। इसमें लिए गए शब्दों में उत्तर पद की प्रधानता होती है व इनका मुख्य अर्थ होता है। वह सभी शब्द जिसमे समास करते वक़्त विभक्ति का लोप होता है।
तत्पुरुष समास के बारे में विस्तार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें तत्पुरुष समास (परिभाषा, भेद और उदाहरण)
कुछ अन्य उदहारण
- मूर्तिकार – मूर्ति बनाने वाला।
- कालजयी – काल को जीतने वाला।
- राजद्रोही – राजा के साथ धोखा करने वाला।
- आत्मघाती – स्वयं की मारने वाला।
- मांसाहारी – मांस का सेवन करने वाला।
- परलोकगमन: अन्य लोक में चले जाना।
- शरणागत: शरण में आया हुआ।
- आशातीत: जो आशा को लाँघकर गया हो।
- गगनचुम्बी: गगन को चूमने वाला अर्थात ज्यादा ऊंचाई पर होना।
- रथचालक: रथ को चलाने वाला।
तत्पुरुष समास का विग्रह
समस्त पद | विग्रह |
शोकाकुल | शौक से आकुल |
वाल्मीकिरचित | वाल्मीकि द्वारा रचित |
कष्टसाध्य | कष्ट से साध्य |
ऊपर दिए गए सभी उदाहरण में तत्पुरुष समास का बोध होता है। जैसा कि आप देख सकते हैं यहां सभी शब्दों में उत्तरपद प्रधान है और पूर्वपद गौण है। जब इनका समास विग्रह किया जाता है तो शब्दों के बीच में से योजक चिन्ह का लोप हो जाता है।
तत्पुरुष समास के भेद
तत्पुरुष समास में 6 तरह के भेद होते है, जिन्हें कारक चिन्हों के अनुसार विभाजित किया जाता है।
इसमें प्रथम तीन, कर्म तत्पुरुष समास, करण तत्पुरुष समास और सम्प्रदान तत्पुरुष समास आते है। इसके बाद तीन और है। अपादान तत्पुरुष समास, सम्बन्ध तत्पुरुष समास और अधिकरण तत्पुरुष समास यह सभी 6 तत्पुरुष समास के भेद होते है।
- कर्म तत्पुरुष समास
- करण तत्पुरुष समास
- सम्प्रदान तत्पुरुष समास
- अपादान तत्पुरुष समास
- सम्बन्ध तत्पुरुष समास
- अधिकरण तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास
कर्म तत्पुरुष समास जिसमें को चिन्ह कारक का लोप बनता है। जैसे:
- शहरगत – शहर को गया हुआ।
- नर्कगत – नर्क को गया हुआ।
- इतिहासकार – इतिहास को लिखने वाला।
- मूर्तिकार – मूर्ति को बनाने वाला।
- चित्रकार – चित्र को बनाने वाला।
- माखनचोर – माखन को चुराने वाला।
अपादान तत्पुरुष समास
ऐसे समास शब्द जिनमें अपादान कारक चिन्ह “से” का लोप हो रहा हो, उनको अपादान तत्पुरुष समास के अंतर्गत रखा जाता है।
- सजामुक्त – सजा से मुक्त।
- विद्यारहित – विद्या से रहित।
- कर्जमुक्त – कर्ज से मुक्त।
- धनहीन – धन से हीन।
- बीमारीमुक्त – बीमारी से मुक्त।
- नेत्रहीन – नेत्र से हीन।
ऊपर उदाहरण में आप देख सकते हैं कि उत्तर पद प्रधान है और पूर्व पद का गौण हो रहा है और जब इन शब्दों का समास किया जाता है तो इनके बीच से योजक चिन्ह का लोप होता है। इसलिए इन उदाहरण को अपादान तत्पुरुष समास के अंतर्गत रखा गया है।
सम्बन्ध तत्पुरुष समास
संबंध तत्पुरुष समास में संबंध कारक के चिन्ह का, के, की, का लोप होता है। उनको संबंध तत्पुरुष समास कहा जाता है। जैसे:
- अंगदान – अंग का दान।
- जीवदानी – जीव का दान।
- भारतरत्न – भारत का रतन।
- जलधारा – जल की धारा।
- लोकसभा – लोक की सभा।
- देशरक्षा – देश की रक्षा।
अधिकरण तत्पुरुष समास
इस समास में कार्य चिन्ह के रूप में “मैं और पर” शब्द का लोप होता है। इनको अधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है जैसे:
- दुकानप्रवेश – दुकान में प्रवेश।
- शहरवास – शहर में वास।
- जलसमाधि – जल में समाधि।
- खुदबीती – खुद पर बीती।
- पर्वतारोहण – पर्वत पर आरोहण।