राजा राममोहन राय और द्वारकानाथ टैगोर के द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज भारत का एक सामाजिक व धार्मिक आंदोलन था। यह आंदोलन 1828 इसवी में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य विभिन्न धार्मिक आस्थाओं में बटे हुए लोगों को एकजुट करना था ताकि समाज में जो भी कुरीतियां फैली हुई है, उन्हें दूर किया जा सके।
19वीं सदी के दौरान भारत के समाज और धर्म पत्नोन्मुख हो रहा था। समाज में कई प्रकार के अंधविश्वास व्याप्त थे, कई प्रकार की बुराइयों में लोग फंस चुके थे, स्त्रियों की स्थिति भी खराब थी, ईसाई धर्म और पाश्चात्य संस्कृति हिंदू धर्म पर प्रहार कर रही थी। इस तरह हो गया था, वह दौर मानो हिंदू धर्म और संस्कृति नष्ट हो रही हो।
उस दौरान समाज में सती प्रथा बाल विवाह, जाति भेदभाव जैसे कई सामाजिक कुरीतियां थी, जिसके कारण समाज आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से कमजोर था। लेकिन इस आंदोलन में सामाजिक कुरीतियों पर रोक लगाने में बहुत मदद की। इस आंदोलन ने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया।
ब्रह्म समाज का प्रमुख सिद्धांत एक ही ईश्वर की उपासना, सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथों के प्रति श्रद्धा रखना, मानव मात्र के प्रति बंधुत्व की भावना उत्पन्न करना और जाति बंधुओं का खंडन करना था। हालांकि राजा राममोहन राय ने “आत्मीय सभा” के नाम से 1815 में ब्राह्मण समाज को स्थापित किया था। लेकिन अच्छा 1828 में इसे ब्राह्म समाज के नाम से जाना गया।
1833 में राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद देवेंद्र नाथ ने ब्रह्म समाज को प्रगतिशील बनाया, उसके बाद केशव चंद्र सेन भी इस समाज से जुड़े। लेकिन बाद में इन दोनों में मतभेद हो गया, क्योंकि केशव चंद्र सेन ईसाई धर्म के सिद्धांत से ज्यादा प्रभावित थे। जिसके कारण वे ब्रह्म समाज को इसाई धर्म के सिद्धांत के अनुसार चलाना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने अपने समाज के प्रचार्थ पर्यटन आरंभ किया, जिसके फलस्वरूप मुंबई में प्रार्थना समाज और मद्रास में वेद समाज की स्थापना की। 1881 में दोबारा मतभेद हुआ परिणाम स्वरूप केशव चंद्र सेन ने विधान समाज की स्थापना की, जिसमें हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अतिरिक्त मुस्लिम, बौद्ध और ईसाई धार्मिक ग्रंथों से भी अनेक बातें ली गई और इस तरीके से ब्रह्म समाज कई शाखाओं में बट गया।
लेकिन इसका मूल आधार हिंदू समाज और धर्म सुधार करना ही था। इस तरह ब्रह्म समाज की स्थापना से समाज में फैली बाल विवाह, बहुविवाह, सती प्रथा, जाति प्रथा पर्दा प्रथा, अल्पायु विवाह, अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों पर रोक लगा और विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा जैसी क्रियात्मक कार्य करके स्त्रियों की स्थिति को समाज में सुधारने में भी मदद मिली।
FAQ
ब्रह्म समाज ने समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। सती प्रथा, बहुविवाह, बाल विवाह, जाति प्रथा, पर्दा प्रथा, अल्प विवाह, अस्पृश्यता, नशा आदि जैसी अनेकों कुर्तियों का विरोध किया। ब्रह्म समाज ने विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा जैसी कई क्रियात्मक कार्य करके समाज सुधार में योगदान दिया।
1866 में कैशवचंद ने भारतवर्षिय ब्रह्मसमाज की स्थापना की थी।
राजा राममोहन राय के समय में समाज में कई बुराइयां फैली हुई थी। राजा राममोहन राय ने उन बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया, उन्होंने सती प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त किया और सभी धर्मों को एक करने के लिए ब्रह्म समाज की भी स्थापना की। इसीलिए राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है।
राजा राममोहन राय को भारत में सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन का अग्रदूत माना जाता है। दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक अकबर द्वितीय ने राजा राम मोहन राय को “राजा” की उपाधि से नवाजा था।
राजा राममोहन राय ने 1822 ईसवी में फारसी भाषा में ‘मिरात-उल-अखबार’ नाम का एक साप्ताहिक अखबार शुरू किया था, इसे भारत का पहला फारसी अखबार माना जाता है।
निष्कर्ष
आज के लेख में आपने ब्रह्म समाज के बारे में जाना। ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की, ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुई इससे संबंधित आपको महत्वपूर्ण जानकारी मिली। हमें उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा।
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