जब शेर जी उठा (The Lion that Sprang to Life Story In Hindi)
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में चार मित्र रहते थे। उन चारों में से तीन कुशल वैज्ञानिक थे किंतु बुद्धि रहित थे। चौथा मित्र वैज्ञानिक तो नहीं था किंतु वह बुद्धिमान था। उन सब ने सोचा की हमारे विज्ञानिक होने का क्या मतलब जब हम इससे कुछ कर ही नहीं सकते। हमें विदेश जाकर अपनी विद्या से धनोपार्जन करना चाहिए। यह विचार करके चारों यात्रा पर निकल गए।
यात्रा के समय पहले मित्र ने कहा “धनोपार्जन करने के लिए विद्या की आवश्यकता होती है ना कि बुद्धि की। हम अपने विद्या का प्रयोग करके धनिको को प्रसन्न कर देंगे, जिससे वह हमें धन देंगे। तो हमें उस धन में से इस विद्या हीन को कुछ भी हिस्सा नहीं देना चाहिए। वह चाहे तो यही सही पुनः लौट सकता है।”
दूसरे मित्र ने उसकी बात का समर्थन किया। किंतु तीसरे मित्र ने कहा “हम चारों बचपन से एक साथ रह रहे हैं। हमने अपने दुख-सुख एक साथ बिताए हैं। जितना भी धन हमें मिलेगा उसमे इसका भी हिस्सा होगा। अपने पराए की गणना छोटे दिल वाले लोग करते हैं। उदार चरित्र वाले व्यक्ति सबको अपने परिवार की तरह मानते हैं। हमें भी उदारता दिखानी चाहिए।” सभी उसकी बात मान कर आगे चल दिए।
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यात्रा करते समय वे एक जंगल से गुजर रहे थे। बीच राह मैं उन्हें एक मृत शेर का शरीर दिखाई दिया। उसके सभी अंग भंग किए हुए थे। उन्होंने अपनी विद्या की परीक्षा लेने की सोची। क्यों ना हम अपनी विद्या का प्रयोग करके इस मृत शरीर में प्राण डाल दें। पहले वैज्ञानिक ने अस्थि पंजर इकट्ठा किया, दूसरे ने उसका मास और रुधिर को संजोया, तीसरे ने उस मृत शरीर में प्राण डालने की प्रक्रिया शुरू की।
तभी चौथा मित्र जो वैज्ञानिक तो नहीं था बोला “मित्रों आप अपनी विद्या का प्रयोग करके इसे जीवित तो कर देंगे किंतु यह जीवित होते ही हम सब पर हमला करके मार डालेगा। तो कृपया करके इसे जीवित ना करें।”
चौथे मित्र की बात किसी ने नहीं मानी तो वह पुनः बोल पड़ा “यदि आपको इसे जीवित ही करना है तो पहले मैं पेड़ पर चढ़ जाऊं फिर आप इसे जीवित कर देना।”
यह कहकर वह पेड़ पर चढ़ गया। बाकी तीन मित्रों ने प्राण डालने की प्रक्रिया पुनः शुरू की। जब शेर में जान आ गई तो शेर उठा और उन तीनों पर हमला करके उनको मौत के घाट उतार दिया।
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