The Cunning Mediator Story In Hindi
बिल्ली का न्याय
प्राचीन समय में जंगल में एक पेड़ के खोखले तने में कपिंजल नाम का एक तीतर रहता था। एक बार वह तीतर अपने साथियों के साथ धान की नई फसलों को खाने के लिए अपने घर से बहुत दूर निकल गया।
उसी शाम को एक शीघ्रगो नाम का एक खरगोश आश्रय की खोज करता हुआ उस वृक्ष के पास पहुंचा जहां तीतर रहता था। वह स्थान खाली देखकर खरगोश उसमें रहने लगा।
कई दिन बीत जाने के बाद एक दिन अचानक तीतर अपने घर आया। धान की नई-नई फसलें खाने के कारण काफी मोटा ताजा हो गया था। उसने खरगोश से कहा “यह घर मेरा है, तुम यहां से चले जाओ।”
खरगोश तीखे स्वभाव का था, बोला “यह घर अब तेरा नहीं है। आश्रय का स्वामित्व केवल मनुष्यों के पास होता है। जंगल में जो जानवर जिस स्थान पर रहने लग जाता है, वह उसी का ही हो जाता है। इस हिसाब से यह घर अब मेरा है।”
दोनों में झगड़ा बढ़ता गया। अंत में दोनों की इच्छा से किसी तीसरे पंच द्वारा इस समस्या को हल करने के लिए तय हुआ।
इन दोनों का झगड़ा और सुलह की बात एक जंगली बिल्ली बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसने सोचा अगर मैं पंच बन जाऊं तो मुझे इन दोनों को मारकर खाने का अवसर मिल जाएगा।
यह सोचकर बिल्ली हाथ में माला लेकर नदी के किनारे सूर्य के सामने मुख करके बैठ गई और ज्ञान का उपदेश देने लगी।
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जब खरगोश को ज्ञानोपदेश सुनाई दिया तो वह बोला की नदी के किनारे कोई धर्मात्मा बैठा है। उसे ही पंच बना कर इस समस्या का हल कर लेते हैं।
जब तीतर ने बिल्ली को देखा तो वह डर गया और दूर से ही बोला धर्मात्मा आप हमारे झगड़े का निपटारा कीजिए और जिसकी बात धर्म विरुद्ध है, उसको आप मारकर खा लेना।
बिल्ली ने आंखें खोली और बोली “राम राम! ऐसी हिंसा युक्त बातें मेरे से ना करें। मैंने हिंसा का मार्ग छोड़कर ज्ञानार्जन का मार्ग अपना लिया है। अतः मैं धर्म विरुद्ध पक्ष पर भी हिंसा नहीं करती। मैं आपके इस झगड़े का निपटारा करने के लिए तैयार हूं। मैं वृद्ध हो चुकी हूं तो दूर से मुझे सुनाई नहीं देता है। कृपया करके मेरे पास आकर अपने-अपने पक्ष रखें।
तीतर और खरगोश ने बिल्ली की बात मानकर उसके पास पहुंच गए। उनके वहां पहुंचते ही बिल्ली के एक ही पंजे के वार से तीतर और खरगोश को दबोच लिया और अपना भोजन बना लिया।
शिक्षा:- किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से भरोसा नहीं करना चाहिए।
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