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श्री शनि चालीसा (लिरिक्स, महत्व, नियम, फायदे)

Shri Shani Chalisa: जितने भी व्यक्ति जीवन में पाप करते हैं, उन्हें जीवन में कुछ समय के लिए भगवान शनि के प्रकोप से गुजरना पड़ता है। पृथ्वी का हर व्यक्ति भगवान शनि के प्रकोप से बचना चाहता है। जितने भी व्यक्ति जीवन में किसी भी प्रकार का पाठ करते हैं, उनके जीवन में कुछ समय के लिए शनि दशा चलती है।

जिसमें उनके साथ हर चीज बुरा होता है, मगर भगवान शनि का प्रकोप खत्म होने पर उनके साथ कुछ बहुत अच्छा होता है। श्री शनि चालीसा एक ऐसा उपाय है, जिसका सही तरीके से उच्चारण करते हुए रोजाना पाठ करने से भगवान शनि की कृपा आप पर बनी रहेगी।

Shri Shani Chalisa
Image: Shri Shani Chalisa

आपके परिवार पर भगवान शनि की कुदृष्टि कभी नहीं पड़ेगी और इसके बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी देने के लिए श्री शनि चालीसा (महत्व, नियम, फायदे आदि) के बारे में आज का लेख लिखा गया है।

अगर आपको भगवान शनि के प्रकोप से बचना चाहते हैं और अपने घर को शनि की कुदृष्टि से बचाना चाहते हैं तो नीचे दिए गए निर्देशों का आदेश अनुसार पालन करते हुए श्री शनि चालीसा पढ़ने के नियम और इससे जुड़े कुछ खास उपाय की जानकारी अवश्य प्राप्त करें।

श्री शनि चालीसा (लिरिक्स, महत्व, नियम, फायदे) | Shri Shani Chalisa

शनि चालीसा क्या है?

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान शनि न्याय और कर्म के देवता माने जाते है। त्रिदेव की आज्ञा अनुसार भगवान शनि धरती के हर व्यक्ति पर नजर रखते है और उनके जीवन में किए गए कर्म अनुसार उन्हें न्याय देने के लिए कुछ समय के लिए कुदृष्टि डालते है।

शनि चालीसा ऐसा पाठ है, जिसमें भगवान शनि के बारे में बताया गया है। उनके कर्म और उनके कार्य से जुड़े विस्तार पूर्वक जानकारी शनि चालीसा में दी गई है। भगवान शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए और अपने जीवन में खुशहाली लाने के लिए लोग भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग प्रकार के कार्य करते है।

उसमें एक प्रचलित कार्य रोजाना शनि चालीसा का पाठ करना है। आज इस लेख में हम आपको भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए शनि चालीसा के पाठ से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं।

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल।।
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।

चौपाई

जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै।।

परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके।।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा।।

पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन।।

सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा।।

जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं।।

पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत।।

राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो।।

बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई।।

लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा।।

रावण की गति-मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई।।

दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका।।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा।।

हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी।।

भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो।।

विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों।।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी।।

तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी।।

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई।।

तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा।।

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी।।

कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो।।

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला।।

शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।

वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।

जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं।।

गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा।।

जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी।।

तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा।।

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।

समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी।।

जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला।।

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई।।

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत।।

कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

दोहा

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार।।

श्री शनि चालीसा पढ़ने के नियम

  • आप श्री शनि चालीसा का पाठ कभी भी कर सकते हैं। मगर भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए मुख्य रूप से शनिवार के दिन शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  • शनिवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके शनि चालीसा का पाठ करें।
  • पाठ खत्म करने के बाद अपने घर के पास मौजूद किसी शनि मंदिर में जाएं, अगर आप नहीं जा सकते तो अपने घर में भगवान शनि की प्रतिमा पर सरसों तेल और काले तिल को अर्पित करें।
  • सुबह उठकर सबसे पहले सनी भगवान की पूजा करें और उसके बाद उनके समीप बैठकर शनि चालीसा का पाठ करें।
  • शनि चालीसा का पाठ प्रत्येक शनिवार लगातार 40 शनिवार तक करने पर भगवान शनि की कुदृष्टि का असर खत्म हो जाता है और लाभ मिलता है।

श्री शनि चालीसा का महत्व

हिंदू धर्म में शनि चालीसा का बहुत अधिक महत्व है। क्योंकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शनि कर्म और न्याय के देवता माने जाते है। हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्रिदेव की आज्ञा से भगवान शनि को धरती पर सभी इंसानों के ऊपर नजर रखने और उनके कर्म अनुसार उन्हें फल देने के लिए रखा गया है।

भगवान शनि का महत्व इसलिए बहुत अधिक है क्योंकि भगवान शनि की असीम कृपा बरसती है तो राजा रंग और कोई रंक राजा बन जाता है। अगर आप निस्वार्थ भाव से अपना काम करते हैं।

मगर उसमें किसी प्रकार की समस्या आ रही है तो उसे खत्म करने के लिए भगवान शनि की आपको रोजाना पूजा करनी चाहिए। भगवान शनि की पूजा में सरसों तेल और काला तिल अर्पित किया जाता है। मगर इसके साथ शनि चालीसा का पाठ करने से भक्तों को अत्यधिक लाभ मिलता है।

श्री शनि चालीसा के फायदे

  • श्री शनि चालीसा का लगातार 40 शनिवार तक पाठ करने से भगवान शनि की कुदृष्टि खत्म हो जाती है।
  • भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए शनि चालीसा अत्यंत लाभदायक माना जाता है।
  • शनि चालीसा का रोजाना पाठ करने से भगवान शनि की कृपा बरसती है और कोई रंग तुरंत राजा बन जाता है।
  • करियर नौकरी व्यवसाय या परिवार में आ रही किसी भी प्रकार की समस्या को खत्म करने के लिए श्री शनि चालीसा महत्वपूर्ण है, इससे इन सभी क्षेत्र में अत्यंत लाभ प्राप्त होते हैं।

FAQ

श्री शनि चालीसा क्या है?

श्री शनि चालीसा एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शनि के कार्य अहमियत और उनके भक्तों के प्रति उधार को दिखाया जाता है। शनि देवता को प्रसन्न करने के लिए श्री शनि चालीसा का पाठ आवश्यक है।

श्री शनि चालीसा का पाठ कैसे करना चाहिए?

शनिवार का दिन भगवान शनि का माना जाता है, उस दिन सुबह उठकर स्नान करके भगवान शनि को सरसों तेल और काले तिल को अर्पित करके उनके निमित्त बैठकर श्री शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए।

श्री शनि चालीसा का पाठ कब करना चाहिए?

श्री शनि चालीसा का पाठ शनिवार की सुबह स्नान करके भगवान शनि की पूजा के बाद करना चाहिए।

भगवान शनि की कुदृष्टि से कैसे बच सकते हैं?

भगवान शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए लगातार 40 शनिवार तक आपको शनि चालीसा का पाठ सुबह सुबह करना होगा।

निष्कर्ष

आज इस लेख में हमने आपको श्री शनि चालीसा (महत्व, नियम, फायदे आदि) से जुड़ी कुछ आवश्यक जानकारी दी है। उम्मीद करते हैं इसे पढ़ने के बाद आप समझ पाए होंगे कि भगवान शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए श्री शनि चालीसा कितना आवश्यक है और इसका उपयोग किस प्रकार किया जाता है।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।