सर्वश्रेष्ठ वर कौन? (बेताल पच्चीसी नवीं कहानी) | Sarvashreshth Var Kaun Vikram Betal ki Kahani
कई बार कोशिश करने के बाद भी विक्रमादित्य बेताल को अपने साथ ले जाने में असफल हुए। फिर भी उन्होंने हार नही मानी और पेड़ के पास जाकर बेताल को पकड़कर अपने कंधे पर बिठाकर ले गए। अब शर्त के अनुसार बेताल ने फिर से कहानी सुनाना शुरू कर दिया और इस बार कहानी थी-सर्वश्रेष्ठ वर कौन?
सर्वश्रेष्ठ वर कौन? (बेताल पच्चीसी नवीं कहानी)
उज्जैन नगरी में वीरदेव नाम के राजा का शासन था। वीरदेव जितना पराक्रमी था उसकी रानी उतनी ही रूपवती थी। दोनों राजा रानी खुशी से अपने राज्य में रह रहे थे परंतु उन्हें एक ही कमी सदैव महसूस होती थी कि उनके कोई संतान नही है।
संतान पाने की इच्छा से दोनों सदैव मंदाकिनी के तट पर जाकर तपस्या करते थे। एकि दिन भोलेनाथ रानी से प्रसन्न हुए और एक आकाशवाणी हुई कि तुम्हे एक पुत्र और एक रूपवती पुत्री की प्राप्ति होगी।
एक वर्ष बीता और रानी ने एक साहसी पुत्र को जन्म दिया और पुत्र के बाद एक पुत्री को जन्म दिया पुत्री अत्यंत ही सुंदर थी उसकी सुंदरता के आगे अप्सराएं भी फीकी लगती थी। राजा ने अपने पुत्र का नाम शूरवीर और पुत्री का नाम अनंगरति रखा।
अब अनंगरति युवा हो चुकी थी और उसकी सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे। बहुत से राजकुमार राजा से राजकुमारी का हाथ माँगने आये परन्तु राजा को एक भी वर योग्य नही लगा।
अंत मे राजा ने राजकुमारी से कहा कि बेटी तुम्हारे लिए मैने बहुत से वर देखे परंतु मुझे एक भी अच्छा नही लगा। मै चाहता हूँ कि तुम स्वयंवर कर लो।
बेटी ने जवाब नही की पिताजी मुझे इस कार्य मे लज्जा महसूस हो रही है। आप मेरे लिए एक ऐसा वर खोजना प्रारंभ करें जो किसी कला में श्रेष्ठ हो।
अब राजा ने बेटी के अनुसार एक सर्वश्रेष्ठ कला प्रेमी वर की खोज शुरू कर दी। राजा ने इस बात का एलान कर दिया कि उसे किसी कला प्रेमी पुरूष की आवश्यकता है। ये सुनकर एक दिन राज्य में 4 कलाप्रेमी पुरूष राजा के पास आये।
राजा ने उन्हें अपनी कला का वर्णन करने को कहा। पहले पुरूष ने कहा- “राजन! मैं पंचपटिक नाम का शुद्र कुल में जन्मा हुआ हूँ। मैं प्रतिदिन पांच जोड़े कपड़ो के तैयार करता हूँ जो बहुत सुंदर होते है। पहला जोड़ा देवी के आगे चढ़ाता हूँ। दूसरा ब्राह्मण को दान करता हूँ।
तीसरा मैं स्वयं पहनता हूँ। चौथा जोड़ा में बाजार में जाकर बेच आता हूँ जिससे मेरा जीवन निर्वाह चल सके और पांचवा जोड़ा मैं राजकुमारी को भेंट करूँगा। कृपया आप अपनी पुत्री का हाथ मुझे सौंप देवें।
दूसरा पुरूष कहता है कि राजाजी मैं एक वैश्य पुरूष हूँ और कई भाषाओं का ज्ञाता हूँ। कई सारे पशु-पक्षियों की आवाज निकाल सकता हूँ। आप राजकुमारी का विवाह मुझसे करा देवें मैं सदैव उसका मनोरंजन करता रहूंगा।
तीसरा कहता है कि “महाराजा! मैं जीवद्त हूँ और मेरे अंदर मरे हुए जीवों में प्राण डालने की कला है। राजकुमारी का विवाह मुझसे करवाये क्योंकि ऐसी कला पूरे संसार मे किसी के पास नही है।
चौथा पुरूष बोला कि महाराज मैं खड़गधर हूँ और क्षत्रिय कुल का हूँ। मैं खड्ग विद्या में कुशल हूँ इसमें मुझे कोई भी नही हर सकता है। आप राजकुमारी का विवाह मुझसे करो क्योंकि मैं सदैव उसकी रक्षा करूँगा।
चारों की कला पर चिंतन करके राजा सोचने लगा कि अनंगरती के लिए कौन श्रेष्ठ वर हो सकता है।
इतने मे बेताल रुक गया और बोला राजन तुम बताओ कि राजकुमारी अनंगरती के लिए कौन बेहतर वर होगा।
राजन ने उत्तर दिया कि हमेशा पांच जोड़ी कपड़े बनाने वाले से विवाह करके राजकुमारी को क्या फायदा होगा।
पशु-पक्षियों की आवाज निकालने वाले से विवाह करने का कोई लाभ नही क्योंकि इससे कुछ समय का मनोरंजन मिलेगा।
जो पुरुष मरे हुए प्राणियों में जान डालना जनता है उससे शादी करने का भी कोई लाभ नही होगा क्योंकि एक दिन सबको मरना ही है और अमर होकर कोई भी खुश नही हुआ।
शेष बचा क्षत्रिय पुरुष तो वह खड्ग विद्या में कुशल है जो राजकुमारी की सदैव रक्षा कर सकता है। उसका विवाह राजकुमारी से होना चाहिए। अतः चौथा राजकुमार ही अनंगरती के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
इतने में बेताल फिर से पेड़ पर जाकर लटका तो राजा उसे फिर से पकड़कर लाये और अगली कहानी सुनाने को कहा।
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