सबसे अधिक साहसी कौन? (बेताल पच्चीसी सत्रहवीं कहानी) | Sabse Adhik Sahashi Kaun Vikram Betal ki Kahani
कई बार कोशिश करने के बाद भी विक्रमादित्य बेताल को अपने साथ ले जाने में असफल हुए। फिर भी उन्होंने हार नही मानी और पेड़ के पास जाकर बेताल को पकड़कर अपने कंधे पर बिठाकर ले गए। अब शर्त के अनुसार बेताल ने फिर से कहानी सुनाना शुरू कर दिया और इस बार कहानी थी-सबसे अधिक साहसी कौन?
सबसे अधिक साहसी कौन? (बेताल पच्चीसी सत्रहवीं कहानी)
एक बार की बात है कनकपुर नामक राज्य था। वहाँ एक राजा का शासन था जिसका नाम यशोधन था। राजा अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था और बहुत ख्याल रखता था। उसी नगर मैं एक सेठ भी रहता था। सेठ की एक बेटी थी उन्मादिनी, जो की अत्यंत ही खूबसूरत थी। जो भी उसे देखता बस देखता ही रहता था।
समय बीता और सेठ की बेटी बड़ी हुई। अब सेठ अपनी बेटी के लिए उपयुक्त वर की तलाश में लग गया। सबसे पहले वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज मेरी बेटी बहुत सुंदर और गुणवान है मैं उसके लिए अच्छे वर की तलाश कर रहा हूँ और सबसे पहले आपके ही पास आया हूँ आपसे ज्यादा उत्तम वर उसे कहा मिलेगा। कृपया आप उससे शादी कर लें।
राजा थोड़ी देर सोचने के बाद कहता है कि ठीक है तुम अभी जाओ। मैं कुछ ब्राह्मणों को तुम्हारे घर भेजूँगा और वहीं तुम्हारी बेटी की परख करके मुझे बताएंगे।
राजा अपने कुछ विश्वाशपात्र ब्राह्मणों को सेठ की बेटी को देखने भेजता है। वे सभी उन्मादिनी को देखकर बहुत खुश हुए क्योंकि इससे पहले उन्होंने इतनी सुंदर लड़की नही देखी थी।
लेकिन वे असमंझस में पड़ जाते है कि अगर वे इस लड़की की सुंदरता के बारे में राजा को बताएंगे तो राजा उसके मोह में पड़ जायेगा और प्रजा के बारे में सोच नही पायेगा।
ब्राह्मण वापस महल जाकर राजा को बताते है कि सेठ की लड़की इतनी सुंदर भी नही है तो राजा ब्राह्मणों की बात मानकर सेठ की बेटी को मना कर देता है।
सेठ कुछ ही दिनों में राजा के यहाँ काम करने वाले सेनापति जो कि अच्छा आदमी था, उससे उन्मादिनी की शादी करवा देता है। अब सेनापति के घर मे उन्मादिनी खुशी से रहने लगी।
लेकिन एक बात रह-रहकर हमेशा उसे परेशान करती रहती थी कि राजा ने उसे किस कारण ठुकराया था।
एक दिन राजा बसंत का मेला देखने के लिए अपने दरबारियों के साथ जा रहे थे। उसी वक्त उन्मादिनी अपने छत पर खड़ी थी। राजा ने उसे देखा तो देखते ही रह गया और अपने दरबारियों से पूछा कि ये सुन्दरी कौन है।
दरबारियों ने कहा कि ये उस सेनापति की पत्नी है जिसकी शादी का प्रस्ताव पहले आपने ठुकराया था। फिर सेठ ने बेटी की शादी अपने महल के एक सेनापति से करवा दी थी।
राजा महल जाकर बहुत पछतावा करता है कि उस लड़की में कोई कमी नहीं थी फिर भी मैंने उसके प्रस्ताव को ठुकराकर उसका अपमान किया था। राजा ब्राह्मणों को बुलाता है तो ब्राह्मण पूरी बात बता देते है राजा को सब ब्राह्मणों पर बहुत गुस्सा आया और उसने उन सबको नगर से निकलने का आदेश दे दिया।
राजा कहीं न कहीं उन्मादिनी के बारे में सोचकर दुःखी रहने लगा और उसे चाहने भी लगा था। जब दरबारियों को पता चला तो उन्होंने राजा से कहा कि आप चिंता क्यों कर रहे हो। उन्मादिनी अपने ही सेनापति की औरत है आप चाहो तो उसे अपनी रानी बना लो। राजा सभी दरबारियों से कहता है कि ये मेरे धर्म के विरुद्ध होगा।
राजा की ऐसी हालत देखकर सेनापति स्वयं राजा को बोलने आया कि महाराज आप चिंतित न होवे। मैं आपका दास हूँ और मेरी पत्नी आपकी दासी हुई। आप उसे अपना ले औऱ अपने महल में रख ले मुझे कोई एतराज नहीं है।
या अगर आप कहे तो मे उसे देवकुल में छोड़कर आता हूँ फिर वह देवकुल की स्त्री हो जाएगी तो आप उसे अपना सकते हो।
राजा सेनापति की बाते सुनकर बहुत क्रोधित हुआ और बोला कि तुम्हें शर्म नहीं आती है तुम अपनी स्त्री और अपनी जिम्मेदारी को छोड़ने की बात करते हो अगर तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हे नगर से निकाल दूँगा और अगर मैं उन्मादिनी से शादी करूँगा तो ये मेरे राज्यधर्म के खिलाफ होगा। मेरा उन्मादिनी को भूलना ही बेहतर होगा।
इस तरह राजा उसे भूलने की कोशिश करने लगा लेकिन असफल रहा और ज्यादातर बीमार रहने लगा। एक दिन राजा की मृत्यु हो गई। सब जानते थे कि राजा की अकाल मृत्यु का कारण कहीं न कहीं उन्मादिनी का प्रेम ही था।
राजा की जलती हुई चिता में सेनापति जाकर कूद पड़ा क्योंकि उसे लगा कि कहीं न कही दोष उसका भी रहा था। अपने पति को देखकर उन्मादिनी भी उसी चिता में जलकर भस्म हो गई।
बेताल राजा से पूछता है कि बताओ कौन सबसे ज्यादा साहसी था।
राजा कहता है कि सबसे साहसी राजा था क्योंकि अगर वह चाहता तो अपने धर्म और कर्म को अनदेखा कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
इतना सुनकर बेताल पेड़ से लटक गया और राजा उसे पकड़कर लाया और अगली कहानी सुनी।
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