होली उत्सव और महामूर्ख की उपाधि | Holi Utsav Aur Mahamurkh Ki Upadhi
विजय नगर की होली आसपास के सभी साम्राज्य से सबसे मशहूर होली थी। वहां पर होली के उत्सव के दिन सबसे बड़ा आयोजन होता था। विजयनगर की होली देखने के लिए आसपास के सभी गांव के लोग एकत्रित होते थे। होली का त्यौहार विजय नगर में सबसे मनोरंजनात्मक रूप से मनाया जाता था। विजयनगर के महाराज खुद इस पर्व पर होने वाले आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे।
होली का यह दिन विजय नगर में मनोरंजनात्मक इसलिए माना जाता था, क्योंकि इस दिन किसी एक व्यक्ति को महामूर्ख की उपाधि से नवाजा जाता था और साथ ही उस व्यक्ति को दस हजार सोने की मुद्रा भेंट स्वरूप दी जाती थी। तेनालीराम हर साल अपनी चतुराई और बुद्धिमता से यह उपाधि अपने नाम करता था।
इस बार होली का त्योहार नजदीक था और इस बार सब लोगों ने यह निर्णय लिया कि इस बार तेनाली रामा को किसी भी कीमत पर यह उपाधि अपने नाम नहीं करने देंगे। वहीं खड़ा एक बुद्धिमान व्यक्ति सबसे कहता है कि जब तक तेनाली रामा उस कार्यक्रम में हिस्सा लेगा उतनी बार वही जीतेगा।
इस बार कुछ ऐसा करते हैं कि तेनाली रामा इस कार्यक्रम में हिस्सा ही ना ले सके। सभी ने यह निर्णय लिया कि इस बार तेनाली रामा को भांग पिला देंगे, ताकि भांग के नशे में तेनाली रामा इस कार्यक्रम में ऐसा ही नहीं ले पाएगा, जिसके फलस्वरुप जीत भी उसकी नहीं होगी।
कुछ दिनों बाद होली का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। इस बार होली का कार्यक्रम एक विशेष बगीचे में की गई। जहां पर खास तरह की सजावट की गई। खूबसूरत फूलों से लगे हुए पेड़ पौधे देखने में बहुत आकर्षक लग रहे थे। इसके अलावा वहां पर तरह-तरह के पकवान भी रखे गए और होली खेलने वाले लोगों के लिए रंग-बिरंगे गुलाल भी रखे गए। बगीचे का मनमोहक दृश्य एवं होली खेलने के लिए आसपास के सभी गांव के लोग एकत्रित हुए।
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उत्सव की शुरुआत महाराज की घोषणा के साथ शुरू हुई, जिसमें महाराज ने कहा सभी दिल खोलकर खाए-पिए और होली खेले। लेकिन इन सब बातों के पीछे ध्यान रहे कि किसी को कुछ भी तकलीफ ना हो, जितना हो सके उतना अपनी हरकतों से अपनी मूर्खता का प्रमाण दें।
इसी के साथ उत्सव की शुरुआत हुई, सभी लोग होली खेलने में व्यस्त हो गए। कुछ लोग रंगों को हवा में उछाल रहे थे तो कुछ लोग पकवानों में ही व्यस्त थे। इतने में तेनालीरामा का भांग का नशा उतर चुका था और वह उत्सव में हिस्सा लेने पहुंच गया।
तेनाली रामा सभी लोगों को देखते हैं, कुछ लोग अपनी मस्ती में होली खेल रहे हैं तो कुछ लोग नाचते हुए पकवान का लुफ्त उठा रहे हैं। इसी बीच तेनाली रामा की नजर पुरोहित जी पर पड़ी। तेनाली रामा पुरोहित जी को ध्यान से देख रहे थे, वे मिठाइयां खा कम रहे थे और झोली व जेबों में ज्यादा भर रहे थे।
जब पुरोहित जी की झोली और जेब दोनों भर गए तब तेनाली रामा उनके पास जाता है और उनकी जेब व झोली में पानी डाल देते है, तेनाली रामा खूब हंसते हैं। पुरोहित जी को तेनालीराम पर बहुत गुस्सा आता है और तेनाली रामा के पानी उड़ेलने की वजह भी पूछते हैं।
पुरोहित जी के चीखने पर सभी लोग उन दोनों को ही देख रहे थे। महाराज भी उन दोनों को देखने के लिए आए और पुरोहित जी के चीखने की वजह भी पूछी। पुरोहित जी ने कहा कि तेनालीराम ने मेरे झोली और जेब में पानी डाल दिया। महाराज को तेनाली रामा पर बहुत गुस्सा आया। महाराज ने तेनालीरामा से इसकी वजह पूछी।
तभी तेनाली रामा कहते हैं कि महाराज पुरोहित जी की झोली और जेबों ने बहुत ही ज्यादा पकवान खा लिए थे, मैंने सोचा अधिक खाने की वजह से कहीं उनको बदहजमी ना हो जाए, इसलिए मैंने उनको पानी पिला दिया।
तेनाली रामा की यह बात सुनकर महाराज ठहाके लगाकर जोर-जोर से हंसने लगे। सभी जनता जनार्दन भी ठहाके लगाकर हंसने लगी। थोड़ी देर बाद महाराज बोले कि तुम सबसे महामूर्ख हो, जेब और झोली कब से मिठाई खाने लगे। महाराज की यह बात सुनकर तेनाली रामा को भी हंसी आ जाती है।
इतने में तेनाली रामा ने पुरोहित जी की झोली को उलट दिया, जिससे सारी मिठाइयां घास पर गिर गई। वहां पर पुरोहित जी को काफी शर्मिंदा होना पड़ा। सभी लोग पुरोहित जी व तेनालीराम को देख कर उन दोनों की हरकतों पर हंसने लगे। उसी बीच तेनालीराम महाराज से पूछते हैं कि क्या आपने मुझे महामूर्ख कहकर पुकारा यही बात जनता से पूछते हैं कि क्या आप मुझे महामूर्ख समझते हैं।
तभी सब ने एक ही स्वर में कहा कि जो हरकत आपने अभी की है, उससे तो यही लगता है कि यहां पर आप ही सबसे महामूर्ख हो। फिर क्या हर साल की तरह इस साल भी महामूर्ख की उपाधि चतुर और चालाक तेनालीराम को ही दी गई। उसके साथ ही दस हजार सोने की स्वर्ण मुद्रा भी उनको दी गई।
कहानी की सीख
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति धीरज, विनम्रता और अपनी बुद्धि को काम मैं ले तो जीत जरूर मिलती है।
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