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बाबा लाडी शाह जी नकोदर इतिहास और कहानी

Dera Baba Murad Shah ji History in Hindi

Dera Baba Murad Shah ji History in Hindi: पंजाब को गुरुओं और पीरों की धरती कहा जाता है। यहां पर ऐसा कोई भी शहर या गांव नहीं है, जहां पर कोई ना कोई मजार या दरगाह ना हो। यहां पर कई परंपरागत धार्मिक स्थान के अतिरिक्त सूफी मत से प्रभावित डेरो की तादाद भी बहुत है।

इन सबके बीच पंजाब के जालंधर जिले के नकोदर में स्थित है जग प्रसिद्ध सूफी फकीर से संबंधित  डेरा मुराद शाह। यह देश का एक ऐसा सूफियाना दरबार है, जहां पर न केवल मुस्लिम बल्कि हर मजहब के लोग सिर झुकाते हैं।

साल में यहां पर दो दिन का मेला सजाया जाता है, जिसमें दुनिया भर से लोग देखने आते हैं। इस डेरे का इतिहास देश की आजादी से भी पहले का है। इस लेख में इस जग प्रसिद्ध बाबा लाडी शाह जी नकोदर इतिहास के बारे में जानेंगे।

डेरा बाबा मुराद शाह की वास्तुकला

पंजाब के अमृतसर से लगभग 105 किलोमीटर दूर जालंधर के नकोदर में स्थित डेरा बाबा मुराद शाह संगमरमर की बनी एक खूबसूरत दरगाह है। यहां के संगमरमर के सफेद दीवारों पर कारीगरों के द्वारा मीनाकारी की गई है जो लाजवाब है।

दरगाह के बीचो-बीच बड़ा सा गुंबद है। दरगाह के अंदर दीवारों पर बनी सुंदर फूल इसकी सुंदरता को और भी ज्यादा बढ़ा देते हैं। यहां पर दिन भर जलने वाली अगरबत्ती और धूप की सुगंध यहां के वातावरण को और भी ज्यादा आध्यात्मिक बनाता है।

डेरा बाबा मुराद शाह का इतिहास (Dera Baba Murad Shah ji History in Hindi)

पाकिस्तान का एक सूफी फकीर जिसका नाम शेरशाह था, वह पंजाब के नकोदर में आकर बस गया। नकोदर उस समय एक वीरान जगह हुआ करता था, जहां पर बहुत कम लगभग ना के बराबर आबादी थी।

उन्होंने इस जगह को चुना ताकि वे यहां पर एकांत में रह कर साधना में व्यस्त रह सके। बाबा शेरशाह यहां पर रहकर इबादत में व्यस्त रहते थे। धीरे-धीरे लोगों को उनके बारे में पता चला। लोग यहां पर आकर माथा टेकने लगे।

कहा जाता है कि यहीं पर जैलदारों का एक परिवार रहता था। उन्होंने बाबा शेरे शाह की खूब सेवा की थी। उनके सेवा से प्रसन्न होकर शेरशाह ने उन्हें एक ऐसे सुपुत्र का वरदान दिया था, जो आध्यात्मिकता को समर्पित होगा और अपने पूरे जीवन को आध्यात्मिक राह पर ले जाएगा।

कुछ साल के बाद उनके परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम विद्यासागर रखा गया और वही बालक आगे चलकर बाबा मुराद शाह के नाम से जाना गया।

अच्छे घराने से ताल्लुक रखने वाला विद्यासागर जो कि आध्यात्मिकता की खोज में था, उसे एक मुसलमान लड़की से प्यार हो गया था। वह युवती चाहती थी कि वह भी अपना धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बन जाए तभी वह शादी करेगी।

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इसके बाद विद्यासागर घूमते घूमते बाबा शेरशाह के पास पहुंचा और उन्हें अपनी सारी परेशानी बताई। बाबा शेरशाह ने उन्हें अपना चेला बना लिया और उनका नाम मुराद शाह रख दिया। बाबा शेरशाह मुराद शाह की समय-समय पर परीक्षा लेते रहते थे। मुराद शाह हर एक परीक्षा में पास हो जाते थे।

समय बितता गया और मुराद शाह की ख्याति भी बढ़ने लगी। कुछ सालों के बाद बाबा शेर शाह ने मुराद शाह को अपनी गद्दी सौंप दी और वे लोगों का भला करने में लग गए।

बाबा मुराद शाह 24 साल की उम्र में फकीर बन गए थे और 28 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। मुराद शाह का जब निधन हो गया तब गुलाम शाह जिन्हें लाडी शाह के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने गद्दी संभाली। उन्होंने दरबार कीशा देखभाल करना जारी रखा।

गुलाम शाह ने मुराद शाह के स्मृति में एक वार्षिक उर्स मेले का भी आयोजन किया, जिसमें कव्वाल और सूफी पंजाबी गायक दुनिया भर से आते आमंत्रित किये गये थे।

निष्कर्ष

इस लेख में आपने पंजाब के जालंधर के नकोदर में स्थित सूफी संप्रदाय से संबंधित दरबार डेरा बाबा मुराद शाह (Dera Baba Murad Shah ji History in Hindi) के बारे में जाना।

हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए आपको डेरा बाबा मुराद शाह के इतिहास और उससे संबंधित सभी प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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