अपमान का बदला (तेनालीराम की कहानी) | Apmaan ka Badla Tenali Rama ki Kahani
प्राचीन समय में विजयनगर नाम का एक राज्य था। इस राज्य के राजा का नाम कृष्णदेव राय था। महाराज के चर्चे दूर-दूर तक चर्चित थे कि महाराज बुद्धिमान एवं चतुर लोगों का बहुत सम्मान करते हैं। तेनाली ने भी महाराज के चर्चे सुने हुए थे।
तेनाली भी बुद्धिमान एवं चतुर स्वभाव का व्यक्ति था, उसने सोचा क्यों ना महल जाकर अपना हाथ आजमाया जाए। किंतु तेनाली के सामने एक समस्या थी की आम व्यक्ति का राज महल में पहुंचना संभव नहीं था। तेनाली ने सोचा की राज महल का कोई खास व्यक्ति से अगर मेरी जान पहचान हो जाए तो उसके जरिए में राज महल में पहुंच सकता हूं।
कुछ समय पश्चात तेनाली की शादी मग्नना से हो गई।
उसके एक साल बाद तेनाली को एक लड़का हुआ। तभी तेनाली को ज्ञात हुआ कि महाराजा के राजगुरु मंगलगिरी नामक स्थान पर आए हुए है। तेनाली वहा चला गया और वहां पर राजगुरु की कई दिनों तक खूब सेवा की। कुछ दिनों पश्चात तेनाली ने राजगुरु के समक्ष महाराज से मिलने की इच्छा जाहिर की।
राजगुरु बहुत ही चतुर था, अगर महल में कोई चतुर व्यक्ति आ गया तो उसका सम्मान कम हो जाएगा, यह सोचकर राजगुरु ने कहा कि उचित समय आने पर मैं तुम्हें महाराज से मिलवा दूंगा। कुछ समय पश्चात राजगुरु महल लौट गए और तेनाली अपने गांव लौट गया। तेनाली ने कई दिनों तक तो राजगुरु के संदेश की प्रतीक्षा की। किंतु राजगुरु का कोई संदेश नहीं आया।
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महल जाने की बात को लेकर कई लोग तेनाली का मजाक उड़ाते थे और कहते “क्यों तेनाली विजयनगर जाने की तैयारी हो गई?” इस पर तेनाली शांति से जवाब देता “समय आने पर सब कुछ हो जाएगा।” धीरे-धीरे तेनाली का विश्वास राजगुरु से उठ गया और उसने स्वयं ही विजय नगर जाने की ठान ली। तेनाली अपने परिवार के साथ विजयनगर के लिए निकल गया।
यात्रा में जब कभी तेनाली को कोई भी समस्या आती है तो वह राजगुरु का नाम ले लेता, जिससे समस्या का निवारण हो जाता। इस पर तेनाली ने अपनी मां से कहा “व्यक्ति जैसा भी हो लेकिन उसका नाम ऊंचा हो, तो सारे कार्य हो जाते है।”
चार मास की कठिन यात्रा के पश्चात आखिरकार तेनाली विजयनगर पहुंच ही गया। तेनाली राज्य की चमक दमक देखकर उसे बहुत अच्छा लगा। चौड़े रास्ते बड़े-बड़े घर साफ-सुथरे बाजार की चमक दमक देखकर वह दंग रह गया। उसने एक परिवार से प्रार्थना की कि उसे एवम उसके परिवार को कुछ दिनों के लिए आश्रय दिया जाए। उसके पश्चात तेनाली राजमहल की ओर निकल गया।
राजमहल पहुंचते ही तेनाली ने सेवक के हाथो राजगुरु को संदेश भिजवाया कि तेनाली गांव से रामा आया है, किंतु राजगुरु ने तेनाली को पहचानने से इंकार कर दिया। तेनाली जबरस्ती राजगुरु से मिलने पहुंच गया किंतु राजगुरु ने तेनाली को धक्के देके निकल दिया। तेनाली को देख कर वहां सभी लोग हंसने लगे। तेनाली को बहुत ज्यादा अपमान महसूस हुआ। उसने अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली। लेकिन इसके लिए महाराजा का दिल जीतना भी जरूरी था।
अगले दिन तेनाली रामा राज दरबार में पहुंच गया। वहां पर गंभीर विषयों पर चर्चा हो रही थी। संसार क्या है? जीवन क्या है? इस गंभीर विषयों पर चर्चा हो रही थी। दरबार में बैठे एक पंडित जी ने कहा कि “संसार कुछ नहीं है, ये सब कुछ छलावा है, जो कुछ हम देखते है वो सब हमारे मन का छलावा है। सच में ऐसा कुछ नहीं होता है बस हमें लगता है कि ऐसा हो रहा है।”
तभी तेनाली ने दरबार में खड़े होकर पंडित जी से पूछा “क्या सच में ऐसा होता है?” पंडित जी ने कहा “यह बात शास्त्रों में लिखी हुई है और शास्त्रों को भगवान ने खुद लिखा है तो यह शत प्रतिशत सत्य है।” तेनाली को खुद की बुद्धि पर भरोसा था। क्यो ना आज पंडित जी के विचारों की जांच की जाए।
आज महाराज की तरफ से दावत है, हम सब दावत को खाएंगे किंतु पंडित ऐसा मान लेगे कि वो भी दावत खा रहे है और दावत खाने के पश्चात महाराज सब को एक एक स्वर्ण मुद्राएं देगे केवल पंडित जी को छोड़ के क्योंकि पंडित जी मान लेगे कि उने भी स्वर्ण मुद्रा मिल गई है।
तेनाली की बात सुनकर पूरा राज दरबार हंसने लगा और पंडित जी शर्म से पानी पानी हो गए। महाराज ने तेनाली के चातुर्य को देख कर उसे पुरस्कृत किया और राज दरबार में राज विदूषक के पद से सम्मानित किया। संपूर्ण दरबार ने महाराज के फैसले का स्वागत किया जिसमें राजगुरु भी सम्मिलित थे।
शिक्षा: हमें किसी भी व्यक्ति का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए।
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