मरने के बाद घरवालों द्वारा खुले में छोड़ दिया जाता है शव, टुकड़े-टुकड़े कर गिद्धों को परोसा जाता है, जाने इस अनोखी परंपरा के बारे में और यह किन समुदायों में होती है
दुनिया भर में तरह-तरह के समुदाय के लोग हैं और सभी लोगों के अपने समारोह को मनाने का तरीका भी अलग-अलग होता है। लोग अंतिम संस्कार भी अलग-अलग तरीके से करते हैं।
वैसे ज्यादातर समुदायों में मौत के बाद लाश को जलाने या दफनाने की परंपरा होती है। लेकिन आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि ऐसे भी समुदाय हैं, जिसमें लाश को जलाने या दफनाने की परंपरा नहीं है बल्कि गिद्धों को खिलाने की पऱपरा है।
यह जानकर आप हैरान जरूर हुए होंगे लेकिन यह कोई मीथ या कहानी नहीं है। अभी भी यह परंपरा विद्यमान है और इस लेख में हम आपको उसी समुदाय के बारे में बताने वाले हैं।
किन समुदायों में प्रसिद्ध है यह परंपरा?
शवों को जलाने या दफनाने के बजाय उसे गिद्धों को खिलाने की यह परंपरा पारसी समुदायों में काफी पहले से चली आ रही है। इतना ही नहीं यह प्रथा बोध समुदायों में भी प्रसिद्ध है। पारसी में शव को इस तरह खत्म करने की प्रथा को दखमा कहा जाता है। वहीं बौद्ध समुदायों में इस परंपरा को नियिगंमा परंपरा कहा जाता है।
पारसी समुदायों में अपने परिजनों के शवों को एक जगह पर छोड़ दिया जाता है, जिसे टावर आफ साइलेंस कहा जाता है। भारत में कोलकाता में “टावर आफ साइलेंस” पहली बार बनाया गया था।
हालांकि एक बार बीबीसी से बातचीत के दौरान कोलकाता के पारसी मंदिर के पुजारी ने बताया था कि यह टावर आफ साइलेंस केवल गिद्धों पर ही निर्भर नहीं है। यहां पर अन्य पंछी भी आ सकते हैं। इसके अतिरिक्त सूरज की गर्मी से भी शरीर धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है।
बोध्द समुदायों में इस परंपरा को लेकर कहा जाता है कि शवों को गिद्धों को खिलाने से उनकी आत्मा गिद्धों के उड़ान के साथ ही स्वर्गलोक पहुंच जाती है। यह परंपरा तिब्बत में काफी ज्यादा प्रसिद्ध है।
कैसे किया जाता है शवों का अंतिम संस्कार?
पारसी और बोध्द दोनों समुदायों में थोड़ा अलग-अलग तरीके से शवों को गिद्ध के सामने परोसा जाता है। पारसी लोगों का मानना है कि शवों को दफनाने या जलाने से प्रदूषण होता है। इसीलिए वे कुएं में शवों को डाल देते हैं। वे शवों को इस तरह रखते हैं ताकि गिद्ध जैसे पंछी शवों को आसानी से खा सके।
कुछ सालों के बाद जब शव पूरी तरीके से नष्ट हो जाता है तो केवल हड्डियां बचती है, जिनका निपटारा किया जाता है। हालांकि अब टावर आफ साइलेंस में आने वाले शवों की संख्या भी कम होते जा रही है। क्योंकि अब गिद्ध पंछी भी काम हो रहे हैं। इतना ही नहीं अब ऐसी परंपरा पर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या भी काफी कम होते जा रही है।
वहीं बौद्ध समुदायों में मृत्यु के बाद लाश को छोटे-छोटे टुकड़े में बदला जाता है। “स्काई बुरियल* की परंपरा के तहत शमशान के कर्मचारी ही लाश के टुकड़े करते हैं। उसके बाद टुकड़ों को जौ और आटे के घोल में भिगोकर गिद्धों के सामने परोसा जाता है।
उसके बाद मृत व्यक्ति का परीजन मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है और फिर तिब्बती बुक ऑफ द डेथ पढ़ी जाती है।