मूर्ख कछुआ की कहानी (Turtle that fell off the Stick Story In Hindi)
कछुआ और हंस की कहानी (Kachhua aur Hans ki Kahani): प्राचीन समय में कम्बुग्रीव नाम का एक कछुआ एक तालाब में रहता था। उस तालाब में दो हंस तैरने के लिए आते थे। दोनों हंसों का स्वभाव बहुत ही मिलनसार और हंसमुख था। वे कछुए की मंद चाल और भोलापन देखकर बहुत ही प्रसन्न होते थे। कछुए और हंसो में मित्रता हो गई।
दोनों हंस बहुत ही बुद्धिमान थे। वे कोसों दूर तक उड़ान भरते एवं तरह-तरह के व्यक्तियों को देखते। वे नित्य साईं काल होते ही उस तालाब के पास आ जाते और जो पूरे दिन में दृश्य देखे उसके बारे में कछुए को बताते। कछुआ भी उनकी बातों को बड़े ही गौर से सुनता क्योंकि उसकी मंद चाल होने के कारण वहां तालाब के आसपास ही जा सकता था। हंस कछुए को ऋषि मुनियों की कथा सुनाते। कछुए को बीच में टोका टोकी की बुरी आदत थी।
अपने शांत एवं हंसमुख स्वभाव के कारण हंस कभी भी कछुए की इस आदत का बुरा नहीं मानते। समय बीतता गया और उन तीनों की मित्रता भी घनिष्ठ हो गई।
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एक समय वहां पर बड़े जोर का सूखा पड़ा गया। वर्षा काल में एक बूंद भी वर्षा नहीं हुई। तालाब का पानी धीरे-धीरे सूखने लगा। उसमें उपस्थित सभी जीव धीरे-धीरे तड़प तड़प कर मरने लगे। एक समय ऐसा आया कि तालाब का सारा पानी सूख गया। कछुआ इस समस्या के कारण संकट में आ गया। उसने सोचा अगर मैं इस तालाब को छोड़कर अन्यत्र नहीं जाऊंगा तो मेरे जीवन का अंत हो जाएगा।
हंसों को भी इस संकट के कारण अपने मित्र की चिंता होने लगी। उन्होंने कछुए को ढांढस बंधाया और इस समस्या से निपटने का उपाय सोचने लगे। वह बहुत दूर तक उड़ान भरते और इस समस्या का हल ढूंढने लगे।
एक दिन हंस कछुए के पास आए और बोले “मित्र! इस तालाब से पचास कोस की दूरी पर एक बड़ी झील है। वहां बहुत अधिक पानी है वहां तुम आराम से इतना जीवन व्यतीत कर सकते हो।”
कछुआ करुण स्वर में बोला “पचास कोस दूर? मुझे वहां तक जाने के लिए महीनों लग जाएंगे। वहां पहुंचने से पहले ही बीच राह में मेरी मृत्यु हो जाएगी।”
कछुए की बात हंसों को उचित लगी। हंसों ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके इस समस्या का भी निदान कर दिया।
वे एक लकड़ी लेकर आये और बोले मित्र लकड़ी के दोनों सिरों को हम दोनों अपने पंजों में पकड़ लेंगे, तुम इस लकड़ी को बीच में से अपने मुंह से पकड़ लेना। इस तरह हम तीनों उड़कर झील तक पहुंच जाएंगे। लेकिन हंसों ने चेतावनी दी की कुछ भी हो जाए पर अपना मुंह नहीं खोलना। मुंह खोल दिया तो वहीं पर गिर जाओगे।
कछुए ने हंसों की बात का समर्थन किया। कछुए ने लकड़ी को बीच से अपने मुंह से पकड़ लिया और हंस उस लकड़ी को लेकर उड़ गए। वह एक कस्बे के ऊपर से गुजर रहे थे। जब कस्बे के लोगों ने आकाश में यह दृश्य देखा तो वे लोग अचंभित रह गए।
आकाश में हो रहे इस अद्भुत दृश्य को लोग एक दूसरे को दिखाने लगे। औरतें बच्चे बूढ़े सभी अपने अपने घरों से बाहर आए और यह दृश्य देखने लगे। कुतूहल के कारण कछुए की नजर कस्बे के लोगों पर पड़ी। वह अपने मित्रों की दी गई चेतावनी को तो भूल गया और चिल्ला पड़ा “देखो हमें कितने लोग देख रहे हैं।”
जैसे ही कछुए ने मुंह खोला उसका संपर्क लकड़ी से टूट गया और वह नीचे गिर गया। नीचे गिरते ही उसकी हड्डी पसली टूट गई।
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