दो मछलियों और एक मेंढक की कहानी (The Tale of Two Fishes & A Frog Story In Hindi)
मेंढक की कहानी: प्राचीन समय में एक तालाब दो मछलियां रहती थी, जिनका नाम शतबुद्धि (सौ बुद्धि वाली) और सहस्त्रबुद्धि (हजारबुद्धि वाली) था। उसी तालाब में एक मेंढक रहता था, जिसका नाम एकबुद्धि था।
सहस्त्र बुद्धि और शतबुद्धि को अपनी बुद्धि पर बहुत ही अभिमान था, किंतु मेंढक के पास एक बुद्धि होने के कारण उसे अपनी बुद्धि का जरा भी अभिमान नहीं था।
एक शाम कुछ मछुआरे उस तालाब किनारे आए और अपने जाल नीचे रखकर बोले “इस तालाब में खूब मछलियां है हम कल सुबह इस तरह पर आएंगे और यहां से खूब मछलियां पकड़ेंगे।”
इन मछुआरों की बात तीनों ध्यान से सुन रहे थे। रात्रि में मछलियों ने एक बैठक बुलाई। सभी मछलियां चिंतित हो गई। तभी सहस्त्रबुद्धि बोली “यदि दुनिया में सब कुछ कहे अनुसार हो जाए तो यह दुनिया चलने ही मुश्किल हो जाएगी। दुष्टों का अभिप्राय कभी पूरा नहीं होता है, इसलिए तो यह संसार आज तक बना रहा है। प्रथम बार तो कल मछुआरे आएंगे ही नहीं, यदि वह आए तो भी मैं अपनी बुद्धि का प्रयोग करके सब की रक्षा कर लूंगी।”
सतबुद्धि ने सहस्त्रबुद्धि की बातों का सहयोग किया और कहां “बुद्धिमान के लिए संसार में सब कुछ संभव है, इसलिए ही तो कहा जाता है कि जहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाता, वहां तक बुद्धिमान की बुद्धि पहुंच जाती है। किसी के कहने मात्र से हम अपनी मातृभूमि को छोड़कर नहीं जा सकते हैं। मातृभूमि तो स्वर्ग से भी अच्छी होती है। भगवान ने हमें बुद्धि दी हैं तो उस बुद्धि का उपयोग खुद की रक्षा करने के लिए करना चाहिए। भय का युक्ति पूर्ण सामना करने के लिए बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए।”
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तालाब की सभी मछलियों ने सहस्त्रबुद्धि और सतबूद्धि की बातों पर विश्वास कर लिया और वहीं रुक गए। किंतु मेंढक ने कहा मैं तो अपनी प्रियतमा को लेकर यहा से कहीं दूर चला जाऊंगा।” यह कहकर मेढ़क अपनी प्रियतमा के साथ दूसरे तालाब पर निकल गया।
दूसरे ही दिन प्रातः काल मछुआरे आए और उन्होंने अपने जाल बिछा दिए। जाल में धीरे-धीरे करके सभी मछलियां फसने लगी।
उसमें सहस्त्र बुद्धि और सद्बुद्धि भी शामिल थी। इन दोनों ने मिलकर बचाव के लिए खूब प्रयास किए। किंतु मछुआरे भी पुराने खिलाड़ी थे, उन्होंने भी उनके एक-एक प्रयास को नाकाम कर दिया। वे सब मछलियो ने तड़प तड़प कर मरने लगी।
सहस्त्रबुद्धि और सतबुद्धि दोनों का आकार विशाल होने के कारण उन में से अपने कंधे पर रखा और दूसरे को हाथ में लेकर मछुआरे अपने घर की ओर रवाना हो गए।
उनकी यह हालत देखकर मेंढक ने मेंढकी से कहा “देखो प्रिये! में कितना दूरदर्शी हूं। जब सहस्त्रबुद्धि कंधों पर और सतबुद्धि हाथ में है, उस समय में इस छोटे से जलाशय में जल से खेलने का आनंद ले रहा हूं।
शिक्षा:- हमें किसी भी कार्य को अपनी बुद्धि द्वारा हल कर लेना चाहिए।
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