The Greedy Cobra and Frog King Story In Hindi
मेंढक की कहानी (Mendhak Ki Kahani): एक कुएं में बहुत सारे मेंढक रहते थे। उन मेंढकों के राजा का नाम गंगदत्त था। गंगदत्त बहुत ही चिड़चिडे और झगड़ालू स्वभाव का था। उस कुँए के आसपास दो-तीन और कुए थे। उन कुओं में भी बहुत सारे मेंढक रहते थे। हर कुँए का एक अलग राजा था।
गंगदत्त किसी ना किसी कारण सभी राजाओं से झगड़ा करता ही रहता। जब वह अपनी मूर्खता के कारण कोई ना कोई गलती करता तो बुद्धिमान एवं समझदार मेंढक जब उसे रोकने का प्रयास करते तो गगदत्त द्वारा पाले गए कुछ गुंडे मेंढकों द्वारा उनकी जमकर धुलाई की जाती।
सभी मेंढको में गंगदत्त के प्रति गुस्सा बढ़ता ही गया। वह अपनी गलती का दोष हमेशा किसी ना किसी और पर लगाता रहता।
एक बार गंगदत्त का झगड़ा पड़ोसी कुए के राजा से हो गया। उन दोनों में खूब तू-तू मैं-मैं हुई। झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि गंगादत्त ने उस राजा से बदला लेने का निश्चय किया। वह अपने कुएं में आया और सभी मेंढकों को बुलाकर कहा “पड़ोसी राजा ने आप के राजा का बहुत अपमान किया है तो तुम सब जाकर पड़ोसी कुए पर हमला बोल दो।”
कुछ बुद्धिमान मेंढक आपस में सलाह करने के बाद बोले “महाराज! पड़ोसी कुँए में मेंढक हमारी संख्या से दुगुने है और वह हमसे ज्यादा हष्ट पुष्ट भी हैं तो हम उनसे युद्ध नहीं कर सकते।”
गंगदत उन सबकी बात सुनकर बहुत ही क्रोधित हो गया। उसने अपने पुत्रों को बुलाया और कहा “तुम्हारे पिता को पड़ोसी राज्य ने बहुत ज्यादा अपमानित किया है, तुम सब जाओ और पड़ोसी राज्य के राजा के पुत्रों की खूब पिटाई करो।”
सभी पुत्र पिता की बात सुनकर एक दूसरे का मुंह देखने लगे। बड़े पुत्र ने कहा “पिता जी आपने हमें कभी टर्राने की इजाजत ही नहीं दी। टर्राने से मेंढकों में जोश आता है और हम बिना जोश के अन्य मेंढकों से कैसे लड़ेगे।”
अब गंगदत्त सभी से चिढ़ गया। वह अपने कुए से बाहर आया और इधर उधर घूमने लगा। घूमते-घूमते उसकी नजर एक काले नाग पर पड़ी जो अपने बिल में घुस रहा था। जब अपने ही दुश्मन बन जाए तो दुश्मन को अपना लेना चाहिए यह सोच कर गंगदत्त जल्दी से जल्दी उसके पास गया और बोला “हे नागदेव! मेरा प्रणाम स्वीकार करो।”
नाग फुकारता हुआ बोला “अरे मेंढक, मैं तेरा शत्रु हूं। मैं तुम्हें खा सकता हूं। फिर भी तुम मेरे बिल के सामने आकर मुझे आवाज दे रहे हो।”
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गंगा दत्त बोला “कभी-कभी शत्रुओं से ज्यादा अपने दुख देने लगते हैं। मेरी अपनी जाति वालों और परिवार वालों ने मेरा घोर अपमान किया है। इसके कारण ही मैं उनको सबक सिखाने के लिए अपने शत्रु के पास मदद की पुकार लेकर आया हूं। तुम मेरी मित्रता स्वीकार कर लो तुम्हारे मजे ही मजे हैं।”
नाग बिल से बाहर आया और बोला “मजे कैसे मजे?”
गंगादत्त ने कहा “मैं तुम्हें बहुत सारे मेंढको को खाने के लिए दूंगा। उन्हें खाकर तुम अजगर के समान हो जाओगे।”
नाग ने कहा “मैं पानी में नहीं जा सकता तो मेढको को कैसे पकडूगा।”
गंगादत्त ने कहा “मैंने दूसरे राज्यों के मेंढकों पर नजर रखने के लिए कई सुरंगे बना रखी है। उन सुरंगो के पास एक कक्ष बना हुआ है, तुम उस कक्ष में छिपे रहना और मैं कहूं उस मेंढक को खा लेना।”
नाग गंगदत्त की दोस्ती के लिए तैयार हो गया क्योंकि उसमें उसका ही लाभ था। एक मूर्ख बदले की भावना से अपनों को शत्रु के पेट के हवाले करने के लिए तैयार हो तो दुश्मन इसका लाभ अवश्य ही उठाएंगे।
नाग सुरंग के कक्ष में जाकर बैठ गया। जैसे-जैसे गंगदत्त बताता गया वैसे-वैसे नाग ने पड़ोसी राज्यों के सभी मेंढकों को खा लिया। जब सभी समाप्त हो गए तो नाग गंगदत्त से बोला “अब बता मैं किसे खाऊं? अब पूरे दिन मेरा पेट भरे रहने की आदत पड चुकी है।”
अब गंगदत्त ने अपने कुए के सभी बुद्धिमान मेंढकों को नाग का भोजन बना दिया। उनको खाने के बाद नाग ने और भोजन मांगा तो गंगादत्त ने सोचा कि मेरी प्रजा मेरे से हर समय शिकायतें करती रहती है, उनकी ऐसी की तैसी। नाग को अपनी सारी प्रजा को खाने के लिए दे दिया। प्रजा को खाने के पश्चात नाग ने और भोजन मांगा तो गंगादत्त बोला “अब केवल मेरे पुत्र और मित्र ही बचे हैं।”
नाग बोला “मुझे कुछ नहीं पता, बस तुम मेरे भोजन का इंतजाम कर दो।” गंगादत्त ने अपने मित्रों को नाग के हवाले कर दिया। उनको खाने के पश्चात नाग ने और भोजन मांगा तो गंगदत्त ने अपने पुत्रों को भी यह सोच कर नाग के हवाले कर दिया कि अगर मैं और मेंढकी जिंदा रहे तो संताने तो और उत्पन्न कर लेंगे।
उनको खाने के पश्चात नाग फुकार भरकर बोला “और भोजन कहां है?” गंगदत्त ने डरते हुए मेंढकी की ओर इशारा किया। मेंढकी को खाने के पश्चात नाग ने और भोजन मांगा तो गंगदत्त हाथ जोड़कर बोला “मित्र अब मेरे अलावा कोई नहीं बचा है। अब तुम अपने बिल में लौट जाओ।”
नाग ने कहा “तुम कौन से मेरे मामा लगते हो।”
यह कहकर नाग ने गंगदत्त को भी खा लिया।
शिक्षा:- अपनों से बदला लेने के लिए जो शत्रु से जा मिलता है उसका अंत निश्चित होता है।
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