भगवान श्री राम जी की मृत्यु (रामायण की कहानी) | Shree Ram ki Mrityu Ramayan Ki Kahani
श्री राम ने त्रेता युग काल मे भगवान विष्णु का अवतार लिया था। जैसा कि आपको ज्ञात होगा कि हिन्दू धर्म के तीन भगवान (ब्रम्हा, विष्णु, महेश) बहुत प्रसिद्ध माने गए है और विष्णु जी के अवतार का मनुष्य ने जितने बार भी रूप ग्रहण किया है पूरे विश्व की अच्छाई के लिए किया है।
कहा जाता है कि विष्णु जी द्वारा कुल दस अवतार अवतरित किये गए थे, जिसमें श्री राम जी सप्तम स्थान पर थे और यह अवतार सबसे पूजनीय माना गया है। इसके अलावा हिन्दू धर्म के सबसे प्रिय भगवान श्री राम कहे गए हैं।
सीता जी का भूगर्भ में जाना
प्रभु श्री राम के बारे में महर्षि वाल्मीकि के द्वारा बहुत सी कथाएं लिखी गयी है, जो हमे कलयुग में देखने को मिलती हैं। इन्ही कथाओं में सीता जी का वर्णन स्पष्ठ रूप से देखने को मिलता है। सीता जी की मृत्यु के संबंध में यह मत है कि उन्हें अपनी पवित्र होने की प्रामाणिकता को सिद्ध करना था और उन्होंने अपनी पवित्रता का प्रमाण भी दिया, जिसके बाद उन्होंने अपने पुत्र लव और कुश को प्रभु श्री राम जी को समर्पित कर दिया।
इस पश्चात वो बहुत आहत हुई और उन्होंने धरती माँ को पुकारा, भरी सभा मे सबकी आंखें फटी की फटी रह गयी जब धरती माँ प्रकट हुई। तत्पश्चात सीता जी ने उनसे कहा “मुझे आप अपने अंदर समा लीजिए, ले चलिए अपने साथ” और पल भर में ही सीता जी भूगर्भ हो गयी। अपनी आंखों से यह दृश्य देख राम जी व्यथित हो उठे, वहां सभा मे बैठे सभी लोगों की आंखें नम थी।
कथा के अनुसार राम जी की मृत्यु का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार राम जी की मृत्यु के विषय मे बात करें या उन्हें धरती लोक त्याग कर विष्णु लोक क्यों जाना पड़ा इस संबंध में मत यह है कि एक ऋषि मुनि भगवान श्री राम से मिलने की उत्सुकता के साथ अयोध्या आये और उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें प्रभु से एकांत में ही वार्ता करनी है।
इस पर प्रभु श्री राम उन्हें अपने कक्ष ले गए और श्री राम ने अपने अनुज लक्ष्मण को यह आदेश दिया कि जब तक हमारी वार्ता समाप्त न हो जाये या इस वार्ता को किसी ने भंग करने की चेष्टा की तो वह मृत्यु दंड का पात्र होगा।
लक्ष्मण जी प्रभु श्री राम के आदेश को पूरी कर्मठता और ईमानदारी से निभाने लगे। आपको बताते चले कि जो ऋषि मुनि राम जी से वार्ता करने आये थे वो और कोई नहीं बल्कि विष्णु लोक से भेजे गए कालदेव थे, जो प्रभु श्री राम को अवगत कराने आये थे कि उनका धरती लोक में समय समाप्त हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक प्रस्थान करना होगा।
जब लक्ष्मण जी श्री राम के कक्ष के पास पहरा दे रहे थे, उसी समय उस स्थान पर ऋषि दुर्वासा आ गए और उन्होने राम जी से मिलने की जिद्द पकड़ ली। आपको बताते चले ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे, उन्हें क्रोध बहुत जल्दी आ जाता था। बहुत समय तक लक्ष्मण जी के द्वारा मना करने के बाद भी वे नहीं मान रहे थे और उन्हें क्रोध आने लगा।
ऋषि दुर्वासा ने कहा यदि उन्हें तुरंत श्री राम जी से न मिलने दिया गया तो वे श्री राम को श्राप दे देंगे। यह सुन लक्ष्मण जी बहुत बड़ी दुविधा में फस गए। यदि उन्होंने ऋषि दुर्वासा जी की बात न मानी तो वे राम को श्राप दे देंगे और मान ली तो श्री राम जी के आदेश का अवलंघन होगा। पर लक्ष्मण जी ने अपने प्राणों की तनिक भी चिंता न करते हुए, उन्हें जाने की अनुमति दे दी, जिसके पश्चात कक्ष में चल रही वार्ता में विघ्न पड़ गया।
दरअसल लक्ष्मण जी कभी भी यह नहीं चाहते थे कि उनके कारण उनके अग्रज भ्राता श्री राम पर कोई आंच भी आये, जिसके चलते उन्होंने यह कठोर फैसला लिया। श्री राम यह दृश्य देख बहुत व्यथित हो उठे और धर्म संकट में पड़ गए। पर उनके वचन का मान रखने के कारण लक्ष्मण जी को मृत्यु दंड न देकर उन्हें देश निकाला घोसित कर दिया गया और उस समय देश निकाला मृत्यु दंड के समान ही माना जाता था।
पर लक्ष्मण जी की अभी तक कि यात्रा में लक्ष्मण जी ने श्री राम और माता सीता का साथ कभी भी नहीं छोड़ा, जिस कारण उन्होंने इस धरती को त्याग करने का निर्णय ले लिया और उन्होंने सरयू नदी जाकर उन्होंने यह पुकार लगाई कि उन्हें इस संसार से मुक्ति चाहिए। इतना कहते वे नदी के अंदर चले गए, जिस तरह उनके इस जीवन का समापन हो गया और वे विश्व लोक का त्याग कर विष्णु लोक में चले गए और वहां जाकर वे अनंत शेष के रूप में परिवर्तित हो गए।
श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण के बलिदान के बाद पूरी तरह से टूट गए। मानो एक पल में उनसे उनका सब कुछ छीन गया हो। प्रभु राम का इस मानव संसार से मन सा उठ गया, उन्होने अपना राज पाठ अपनी गद्दी अपने पुत्रों को सौप दी और उसी लोक में जाने का मन बना लिया।
श्री राम जी की मृत्यु में यह मत है और इसके अलावा वाल्मीकि द्वारा लिखी पुस्तक से यह सिद्ध होता है कि उन्होंने अपने प्राणों को सरयू नदी के हवाले कर दिया था और उसी नदी में श्री राम हमेशा के लिए विलीन हो गए थे। उसके बाद वहां से विष्णु जी के अवतार में प्रकट हुए थे और वहां पर उपस्थित उन्होंने अपने भक्तों को दर्शन दिए। श्री राम ने अपने मनुष्य का रुप त्याग कर अपने वास्तविक रूप का धारण किया और बैकुंठ धाम की ओर गमन कर गए।