कुंभकरण की नींद (रामायण की कहानी) | Kumbhakarna Ki Neend Ramayan Ki Kahani
रामायण एक पवित्र ग्रंथ है, जो भारत के संस्कृति की पहचान है। रामायण पढ़ लेने से व्यक्ति सत्य और मानवता के पथ पर चलना शुरू कर दें। रामायण की हर एक कहानी जितनी प्रेरणादाई है, उतना ही रोचक भी है। रामायण में बताए गए हर एक किरदार प्रभावशाली हैं। हर एक किरदार से जुड़ी कहानी पाठक को प्रेरित करती है और सीख देती है।
रामायण के हर किरदार की तरह कुंभकरण की कहानी भी काफी रोचक और मजेदार भी है। कुंभकरण अपनी भूख और निंद्रा के लिए काफी प्रसिद्ध था। क्योंकि राक्षस कूल का होने के बावजूद यह 6 महीने सोता था और 6 महीने जागता था। हर कोई जानता है कि कुंभकरण बहुत सोता था।
लेकिन इसके सोने के पीछे की कहानी क्या है यह शायद बहुत कम लोग जानते हैं और आज के इस लेख में हम आपको रामायण के कुंभकरण की नींद की कहानी बताने वाले हैं कि आखिर किस कारण उसे 6 महीने तक सोने का श्राप मिला।
कुंभकरण कौन था?
कहानी जानने से पहले जानते हैं कि आखिर कौन था कुंभकरण? कुंभकरण रावण का सबसे छोटा भाई था। रावण के दो भाई थे विभीषण और कुंभकरण। कुंभकरण की माता का नाम कैकसी था, जो राक्षस कूल से थी। वहीँ उसके पिता विशवी, ब्राह्मण कुल के थे। यही कारण था कि रावण और उसके तीनों भाइयों में राक्षस कुल के होने के बावजूद ब्राह्मण का गुण था।
रावण राक्षस होने के साथ-साथ बहुत बड़ा ज्ञाता पंडित था। कुंभकरण भी काफी ज्ञानी और बहादुर थे। हालांकि ये दोनों भाईयों में राक्षस के भी गुण थे क्योंकि यह दोनों अपने माता के साथ काफी समय बिताया करते थे। लेकिन विभीषण अपने पिता के साथ ज्यादा समय बिताया करते थे, जिसके कारण उनमें राक्षस का गुण बिल्कुल भी नहीं था।
यही कारण था कि वह भगवान राम के बहुत बड़े भक्त थे। कुंभकरण का जिक्र रामायण में तब होता है जब माता सीता के अपहरण कर लेने के बाद भगवान राम और उनकी वानर सेना के साथ रावण का युद्ध होता है। रावण की विशाल सेना जब भगवान राम की सेनाओं के साथ लड़ने से मृत्यु हो जाती हैं तब अंत में रावण अपने भाई कुंभकरण की मदद लेने का सोचता है।
कुंभकरण की निंद्रा की क्या कहानी है? (Kumbhakarna Ki Neend Ramayan Ki Kahani)
कुंभकरण बहुत ही विशालकाय शरीर वाला बुद्धिमान और ताकतवर राक्षस था। इसकी ताकत के सामने तो भगवान इंद्र भी डरते थे। कुंभकरण को हमेशा से ही खाने का बहुत शौक था। विशालकाय शरीर होने के कारण वह एक बार में हजारों लाखों लोगों का खाना खा जाता था। उसकी सेना और राज्य के दास खाना जुटाते जुटाते थक जाते थे लेकिन कुंभकरण का मुख समाप्त नहीं होता था।
कुंभकरण ने सोचा कि यदि भगवान ब्रह्मा की तपस्या करें और उनसे वरदान में स्वर्ग का सिहासन मांग ले तो जीवन भर उसे पेट भर के खाना खाने को मिलेगा। यह सोच कुंभकरण और इसके दोनों भाई रावण और विभीषण भी इसके साथ तपस्या करना शुरू कर देते हैं। भगवान ब्रह्मा का नाम जपते हुए लंबे समय तक तपस्या करते हैं।
इधर भगवान इंद्र को भी डर था कि कहीं भगवान ब्रह्मा इन से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को ना कहें और यदि उन्होंने ऐसा किया तो निश्चित ही कुंभकरण स्वर्ग का सिहासन मांग लेगा। यह डर उन्हें सता रहा था और यही चिंता लेकर भगवान इंद्र मां सरस्वती के पास जाते हैं और अपनी सारी चिंता व्यक्त करते हैं।
उधर भगवान ब्रह्मा कुंभकरण के तपस्या से प्रसन्न हो चुके थे और फिर वे उन तीनों को दर्शन देते हैं। भगवान ब्रह्मा कुंभकरण को मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहते है। कुंभकरण वरदान के रूप में इंद्रासन मांगने वाला होता ही है कि मां सरस्वती उसके जिह्वा पर विराजमान होकर इंद्रासन के बजाय निंद्रासन बुलवा देती है।
रावण या कुंभकरण यह समझ पाते कि तब तक भगवान ब्रह्मा तथावस्तु बोल चुके होते हैं। इसके बाद जब कुंभकरण और रावण को इस बात का एहसास होता है तो वे भगवान ब्रह्मा को वरदान वापस लेने के लिए कहते हैं। लेकिन भगवान ब्रह्मा कहते हैं कि एक बार दे दिया गया वरदान वापस नहीं लिया जा सकता।
इधर कुंभकरण को भी अपनी गलती का एहसास हो जाता है। वह भगवान ब्रह्मा के सामने रोने गिरगिडाने लगता है। तब भगवान ब्रह्मा कहते हैं कि मैं वरदान तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इस वरदान के प्रभाव को कम जरूर कर सकता हूं। हमेशा निंद्रा में रहने के बजाय अब तुम 6 महीने जागोगे और 6 महीने निंद्रा में रहोगे।
जिसके बाद से कुंभकरण 6 महीने तक नींद में रहता था और फिर 6 महीने जागने के बाद पेट भर कर खाना खाता था। यही कहानी थी कुंभकरण के निंद्रा की।
आखिर कैसे रावण की सेना ने कुंभकरण को नींद से उठाया
जब रावण की सेना भगवान राम की सेना के सामने हार चुकी थी तब रावण ने अपने भाई कुंभकरण की मदद लेना चाहा। लेकिन उस समय कुंभकरण अपने निंद्रा अवस्था में था और इतने विशालकाय भाई को गहरी नींद से उठाना बहुत ही कठिन काम था। फिर भी उसने अपने सभी सेनाओं को कुंभकरण को उठाने के लिए भेजा।
इधर रावण की लाखों सेना भाला, तलवार और सिढी लेकर कुंभकरण को जगाने चल पड़ती है। उधर कुंभकरण गहरी नींद में सोया हुआ था। सभी सेना उसे जगाने की बहुत कोशिश करती हैं। कुछ लोग सिढी के जरिए उसके पेट पर चढ़कर उछल उछल कर उसे जगाने की कोशिश करते हैं तो कोई नीचे उसके शरीर पर भाले का वार करके उसे उठाने की कोशिश करते हैं।
लाख कोशिश करने के बाद भी जब कुंभकरण नहीं उठा तब सेनाओं के मन में ख्याल आया कि क्यों ना इसे स्वादिष्ट भोजन परोसा जाए। क्योंकि कुंभकरण खाने का बहुत शौकीन था और शायद भोजन के सुगंध से उठ जाए। ठीक यही हुआ। सभी सेनाओं ने विशाल मात्रा में विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट भोजन को जुटाया। भोजन की स्वादिष्ट सुगंध जब कुंभकरण के नाक में गई तो वह अपने आप उठ गया।
भरपेट खाना खाने के बाद अंत में कुंभकरण अपने भाई रावण के पास जाता है, जहां रावण उसे राम से युद्ध लड़ने के लिए कहता है। कुंभकरण राक्षस होने के साथ ही वह बहुत बुद्धिमान भी था, उसे पता था कि भगवान राम के सामने जीत पाना मुश्किल है। लेकिन वह अपने भाई रावण से बहुत प्रेम करता था और वह उनकी आज्ञा का निरादर नहीं करना चाहता था। इसीलिए वह भगवान राम से युद्ध लड़ने के लिए चला जाता है।
कुंभकरण को यह बात पता थी कि इस युद्ध में उसकी मृत्यु उसकी जरूर होगी। क्योंकि वरदान देते समय भगवान ब्रह्मा ने कहा था कि जब यह निंद्रा अवस्था में होगा और यदि कोई इसे बलपूर्वक उठाएगा तो उस दिन इसकी मृत्यु निश्चित है। ठीक यही हुआ रावण की सेनाओं ने बलपूर्वक कुंभकरण को उठाया, जिस कारण उस दिन उसकी मृत्यु निश्चित थी।
यह जानने के बावजूद भी कुंभकरण भगवान राम के साथ युद्ध करने के लिए जाता है। क्योंकि वह जानता था कि भगवान राम के हाथों मृत्यु से उसका उद्धार हो जाएगा। युद्ध भूमि में पहुंचने के बाद इसके विशालकाय पैरों तले भगवान राम की हजारों सैना कूचला जाती हैं। अंत में भगवान राम धनुष बाण उठाते हैं और कुंभकरण के दोनों हाथों को काट कर उसका वध कर देते हैं। इस तरीके से रामायण के इस मजेदार किरदार की मृत्यु हो जाती हैं।