हनुमान जी का जन्म (रामायण की कहानी) | Hanuman ji Ka Janm Ramayana Ki Kahani
ग्रंथों और पुस्तकों के अनुसार हम आप सबको बताते चले कि ऋषि दुर्वासा द्वारा स्वर्ग में एक सभा का आयोजन किया गया था, जिसमे सभी लोग उपस्थित थे। वहीँ पर भगवान इंद्र का भी वास था। सभी बहुत ही गहन भावना में लीन थे, उसी दौरान एक अप्सरा जिसका नाम पुंजिकस्थली था, वो उस सभा मे विघ्न पैदा कर रही थी।
पर उनको जरा सा भी ज्ञात न था, वो अपनी इस नादानी से कितना गलत कार्य कर रही है। उसी समय ऋषि दुर्वासा ने उन्हें सरलतापूर्वक इस कार्य को न करने को कहा। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो बार-बार उस सभा मे आ रही जा रही थी यह देख ऋषि और अन्य लोग बहुत नाराज हुए।
ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दिया और श्राप देते हुए कहा तुम्हारा यह कृत बहुत अशोभनीय हैं, मैं तुम्हे श्राप देता हूँ “तुम वानरी हो जाओ।” यह सुन मानो अप्सरा के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्हें अपने द्वारा किये गए कार्य का बहुत पछतावा हुआ। वे रोते हुए ऋषि दुर्वासा और सभा में बैठे सभागार से क्षमा मांगने लगी, जिसके बाद ऋषि ने उन्हें एक वर भी दिया, जिसमें उन्होंने कहा वे अपनी इच्छा शक्ति से अपने रूप को भी बदल सकती हैं।
ऋषि दुर्वासा ने कहा अगले जन्म में आपका विवाह एक वानर के साथ होगा, जो एक भगवान होंगे और तुम्हारा पुत्र भी वानर होगा, जिसके पास बहुत सी शक्तियां होंगी और बहुत बलवान होगा। ऋषि दुर्वासा का यह कथन सुनकर उन्होंने इसको स्वीकारा और उनका अभिवंदन किया। कहे गए कथन के अनुसार कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली विरज की पत्नी के गर्भ से एक वानरी का अवतार लिया, जिनका नाम माता अंजना रखा गया।
माता अंजना जब अपने किशोरावस्था में पूर्ण हुई तो उनका विवाह वानर केसरी से हुआ, जो महान पराक्रमी शिरोमणि कपिराज अर्थात भगवान थे। पुंजिकस्थली माता अंजनी ने नाम से सम्भोदित की जाने लगी, उनका जीवन सुखमय और शांति के साथ व्यतीत होने लगा।
ऋषियों द्वारा दिया गया वरदान
एक समय की बात है जब अनेक ऋषि अनुष्ठान कर रहें थे तो वहाँ पर एक जंगली हाथी ने उपद्रव करना शुरू कर दिया। बहुत से ऋषि अपने अनुष्ठान को पूरा नहीं कर पाए। यह देख केसरी जी खुद को रोक नहीं पाए और उन्होंने अपने प्रिय हाथी को मार दिया, जिसके बाद उन्हें इस कृत का बहुत पश्चताप हुआ और दुःख और पीड़ा के पात्र हो गए।
यह देख वहां सभी उपस्थित ऋषियों ने उन्हें वरदान दिया, उन्होंने कहा की शीघ्र अति शीघ्र तुम्हारे यहां एक बच्चे का जन्म होगा, जो बहुत बलवान और शक्तिशाली होगा, पवन से भी तेज जिसकी रफ्तार होगी।
एक मत यह भी है कि माता अंजनी मानव रूप में पर्वत की तरफ से जा रही थी, वे उस समय वहां के हर दृश्य का आनंद ले रही थी, उसी दौरान वहां बहुत ज़ोरों से हवा चलने लगी और उनका वस्त्र उड़ने लगा। पर आस पास कोई क्रिया नहीं हो रही थी, न पेड़ पौधों के पत्ते उड़ रहे और न ही कोई अन्य क्रिया।
यह देख माता बहुत क्रोधित हुई और चेतावनी देने लगी कि कोई भी हो मै श्राप दे दूंगी। इतने में इंद्र प्रकट हुए और उनसे क्षमा मांगते हुए बोले ऋषियों ने मेरे बराबर मेरी ताकत के पुत्र होने का वरदान दिया है, जिस कारण मैंने यह कार्य किया। वरदान के कारण आपके शरीर को स्पर्श किया।
उन्होंने यह भी कहा भगवान रुद्र मेरे स्पर्श से आपकी आत्मा में प्रविष्ट हुए, जो आपके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और इसी के चलते भगवान श्री हनुमान जी का जन्म हुआ, जिन्हें हम भगवान रूद्र के अवतार मानते हैं और इसी कारण हम इन्हें पवन देवता भी कहते हैं।
श्री हनुमान जी के जन्म के बाद उन्होंने बहुत से महान कार्य किये, बहुत सारे राक्षसों का वध किया है। प्रभु श्री राम की भक्ति में लीन रहने के पश्चात उन्हें भगवान राम मिले, उनकी सेवा करी, माता सीता जी को लंका से छुड़ाने में अहम भूमिका निभाई। इसके साथ ही साथ उन्हें कलयुग काल तक जीने का वरदान साक्षात विष्णु जी से मिला।
राजस्थान, लंका, कर्नाटक और भी अनेक स्थान हैं, जहां हनुमान जी के होने के अवशेष प्राप्त हुए हैं। हम सभी को हर समय चाहें सुख हो या दुख हो, उनके प्रति आराधना करनी चाहिए, उनकी भक्ति में लीन रहना चाहिए।