Bird Pair and the Sea Story In Hindi
प्राचीन समय में एक समुंद्र के किनारे टिटिहरी का एक जोड़ा रहता था। वे दिन भर अपने दाना पानी की व्यवस्था करते और शाम के समय वापस अपने घौसले पर आ जाते।
जब टिटिहारी के अंडे देने का समय आया उससे एक दिन पहले उसने अपने पति से कहा कि कहीं सुरक्षित स्थान की खोज कर ले वहां जाकर मैं अपने अंडे रखूंगी। टीटीहरे ने कहा “यह स्थान पर्याप्त सुरक्षित है, तुम चिंता मत करो।”
टिटिहरी – “जब समुद्र की लहरें उफान पर होती है तो वह एक व्यस्क हाथी को भी खींच कर ले जाती हैं तो इस समुंद्र के आगे हमारे अंडे कैसे टिक पाएंगे। इसलिए हमें समुंद्र से कहीं दूर जाकर अपने अंडे रखने चाहिए।
टीटीहरा – “समुंद्र इतना दु:साहसी नहीं है कि वह मेरे अंडों को नुकसान पहुंचाए। तुम बिना किसी डर के यहां पर अंडे दे दो।
समुंद्र भी इन दोनों की बातों को ध्यान से सुन रहा था। समुंदर ने सोचा “यह टिटिहरा बहुत अभिमानी है। जब भी सोता है अपने चारों पैर आकाश की और करके सोता है ताकि कभी आकाश गिर जाए तो यह अपनी टांगों पर आकाश को उठाकर अपनी रक्षा कर सकें। इसका अभिमान भंग होना चाहिए।” यह सोच कर समुंद्र ने लहरों के साथ उसके अंडे अपने अंदर ले लिए।
टीटीहरी जब साईं काल को अपने घोंसले पर पहुंची वहां पर अंडे ना पाकर वह बहुत दुखी हो गई और विलाप करते हुए टिटिहरे से बोली “मूर्ख मैंने पहले ही तुम्हें चेतावनी दी थी कि यह समुंद्र हमारे अंडे बहाकर ले जाएगा। किंतु तुमने अपने घमंड में मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया। अपने शुभचिंतकों की बातों पर जो व्यक्ति ध्यान नहीं देते उनकी ऐसी ही दुर्गति होती हैं। बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो आपत्ति आने से पूर्व ही आपत्ति का उपाय सोच लेता है। ‘जो होगा, देखा जाएगा’ कहने वाले व्यक्ति शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।”
यह बात सुनकर टिटिहरे ने टिटिहरी से कहा “मैं मूर्ख और निष्कर्म नहीं हूं। तुम मेरी बुद्धि का चमत्कार देखो। मैं इस समुंदर को सुखा दूंगा।
टिटिहरी – “हमें अपनी शक्ति देखकर ही किसी से वैर लेना चाहिए। समुंद्र के साथ तेरा वैर तुझे शोभा नहीं देता। इस पर क्रोध करने से क्या लाभ?
टिटिहरा फिर भी अपनी चोंच से समुंद्र को खाली करने की डींगे मारता रहा। तब टिटिहरी ने फिर उसे समझाया की जिस समुंद्र में हर समय गंगा यमुना जैसी सैकड़ों नदियों का पानी गिरता है उस समुंद्र को तुम अपनी चोंच से कैसे खाली करोगे?
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टिटिहरा फिर भी अपनी हट पर अड़ा रहा। तब, टिटिहरी ने कहा “यदि तुमने समुंद्र को सुखाने की हट कर ही ली है तो तुम दूसरे पक्षियों की सहायता लो। कई बार दो छोटे जीव मिलकर एक बड़े जीव को हरा देते हैं। जैसे चिड़िया कठफोड़े और मेंढक ने मिलकर हाथी को मार दिया था।
टिटिहरा – “अच्छी बात है। मैं दूसरे पक्षियों की सहायता से समुंद्र को सुखाने का प्रयत्न करूंगा।
यह कहकर उसने हंस गूगले सारस चिड़िया आदि अनेक पक्षियों को अपनी दुख भरी कथा सुनाई। तब सभी पक्षियों ने मिलकर कहा कि हम सब तो समुंद्र के आगे अशक्त है किंतु पक्षीराज गरुड़ आपकी अवश्य ही सहायता करेंगे। हम सबको मिलकर उनके पास जाना चाहिए।
यह कहकर सभी पक्षी पक्षीराज गरुड़ के पास गए और सारा वृत्तांत सुनाया। आपके रहते हुए हम सब पक्षियों पर समुंद्र ने यह अत्याचार कर दिया।
हम इसका बदला लेना चाहते हैं। आज इस टिटिहारी के अंडे बहाकर ले गया, कल किसी और पक्षी के अंडे वह आकर ले जाएगा। यदि इस अत्याचार की रोकथाम नहीं की गई तो सारा पक्षी कुल नष्ट हो जाएगा।
गरुड़ ने सभी पक्षियों की बात सुनकर उनकी सहायता करने का निश्चय किया। उसी समय भगवान विष्णु का दूत आया। भगवान विष्णु ने उस दूत के द्वारा गरुड़ को सवारी के लिए बुलवाया था। गरुड़ ने दूत से क्रोध पूर्वक कहा कि जाकर भगवान विष्णु को कह दे कि आप दूसरी सवारी का प्रबंध कर लें। दूत ने क्रोध का कारण पूछा तो गरुड़ ने सारी कथा सुनाई।
दूत के मुख से गरुड़ के क्रोध की कहानी सुनकर भगवान विष्णु स्वयं गरुड़ के घर आए। वहां पहुंचने के बाद गरुड़ ने हाथ जोड़कर विनम्र शब्दों से बोला “भगवन, इस समुंद्र ने मेरे साथी पक्षी के अंडे चुराकर मेरा अपमान किया है। मैं इस समुंद्र से अपने अपमान का बदला लेना चाहता हूं।”
भगवान विष्णु बोले “तुम्हारा क्रोध सही है। समुंद्र को ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए।
मैं समुंद्र से उन अंडों को टीटीहरी को वापस दिला दूंगा उसके पश्चात हमें अमरावती भी चलना है।
जब भगवान विष्णु ने अपने धनुष पर आग्नेय बाण चढ़ाकर समुंद्र से कहा “दुष्ट! अभी उन अंडों को वापस देदे। वरना मैं तुम्हें क्षण भर में सुखा दूंगा। भगवान विष्णु के डर से समुंद्र ने अंडों को वापस दे दिया।
शिक्षा:- हमें किसी को कमजोर नहीं समझना चाहिए।
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