भगवान राम की बहन शांता (रामायण की कहानी) | Bhagwan Ram Bahan Shanta Ramayan Ki Kahani
रामायण न केवल एक पवित्र ग्रंथ है बल्कि इसमें सदियों से चली आ रही भारत की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। रामायण में हर रिश्ते के महत्व को बताया गया है, इसमें बेटे की मां के प्रति समर्पण भाव, एक पत्नी का अपने पति के प्रति समर्पण भाव, पिता के प्रति पुत्र का समर्पण समर्पण भाव और भाई का अपने बड़े भाई और भाभी के प्रति समर्पण भाव सच में सराहनीय है।
रामायण के पाठ से व्यक्ति रिश्तो का सही मोल समझ सकता है। रामायण से ना केवल पाठक को भारतीय संस्कृति के बारे में जाने को मिलता है बल्कि यह रिश्तो की मर्यादाओं का भान कराती है। पाठक को उचित मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करती है। हर भारतिय रामायण की कहानी से अवगत है। रामायण के हर एक किरदार को लोग अच्छे से जानते हैं।
सबको पता है कि रामायण में भगवान राम के तीन भाई थे परंतु शायद ही कोई राम की बहन से परिचित है। इसका कारण यह भी है कि बहुत से ग्रंथों में रामायण के जिक्र करते समय भगवान राम की बहन का जिक्र नहीं किया गया। लेकिन कुछ धारावाहिक और कुछ ग्रंथों में भगवान राम की बहन का भी जिक्र किया गया है।
जिसके बाद हर किसी को भगवान राम की बहन की कहानी जानने की रुचि जागृत होती है। इसीलिए आज के इस लेख में हम भगवान राम की बहन की कहानी लेकर आए हैं।
भगवान राम की बहन
भगवान राम अपने तीनों भाइयों में सबसे बड़े थे। परंतु भगवान राम से भी बड़ी इनकी बहन थी, जिनका नाम शांता था। सांता दशरथ और कौशल्या की पुत्री थी, जो भगवान राम और उनके चारों भाइयों से पहले जन्मी थी। अब प्रश्न यह भी आता है कि फिर पूरे रामायण में सांता का जिक्र क्यों नहीं किया गया। भगवान राम के बचपन के प्रसंग में सांता का जिक्र क्यों नहीं है?
दरअसल सांता ने जन्म तो अयोध्या में लिया था परंतु राजा दशरथ और कौशल्या ने सांता को राजारोमपद को गोथ दे दिया था। राजाराम पद अंग देश के राजा थे और वे त्रेता युग में राजा दशरथ के अच्छे मित्र भी थे। राजा रोमपथ और उनकी पत्नी का नाम वर्षिनी था, जिन्हें कोई संतान नहीं था, जिस कारण वे हमेशा ही चिंतित रहती थी।
एक बार राजा रोमपद और अपनी पत्नी वर्षिनी के साथ अयोध्या राजा दशरथ के घर आते हैं। वहां पर सभी परिवारजन बैठ कर बात कर रहे होते हैं तब उधर से राजकुमारी सांता आती है, जिस पर वर्षिनी का ध्यान जाता है। सांता की शालीनता देख वर्षिनी प्रभावित हो जाती है और वह करूण शब्दों में कह उठती है कि यदि मेरी कोई संतान हो तो भगवान करे सांता की तरह हो।
यह बात सुन राजा दशरथ के मुंह से सांता को उन्हें गोद देने की बात निकल आती है। राजा दशरथ राजा रोमपद को अपनी पुत्री शांता गोद देने का वचन दे देते हैं। रघुकुल की रीत प्राण जाए पर वचन ना जाए के अनुसार राजा दशरथ को अपनी पुत्री शांता को रोमपद और उनके पत्नी को गोद देना पड़ता है। इस प्रकार राजकुमारी सांता जन्म तो अयोध्या में लेती है परंतु वह अंग देश की राजकुमारी बन जाती है।
सांता का विवाह
सांता बहुत सुंदर थी, साथ ही वह बुद्धिमान लड़की थी। वह वेद, कला और शिल्प की ज्ञाता थी। एक दिन राजा रोमपद अपनी पुत्री शांता के साथ बैठकर वार्तालाप कर रहे थे कि तभी बारिश के मौसम में एक याचक राजा रोमपद के पास मदद मांगने के लिए आता है। परंतु राजा अपनी पुत्री शांता के साथ वार्तालाप में इस कदर व्यस्त रहते हैं कि वे उस याचक पर ध्यान नहीं दे पाते, जिस कारण याचक वहां से खाली हाथ वापस चला जाता है।
राजा रोमपद का अपने याचक के प्रति ऐसा निरादर व्यवहार देख भगवान इंद्र बहुत क्रोधित होते हैं और वे उस साल यंग देश में वर्षा नहीं करते, जिसके कारण चारों तरफ सूखे से हाहाकार मचने लगती है।
सूखे से निजात पाने के लिए राजा रोमपद ऋषि श्रृंग के पास जाते हैं और उन्हें वर्षा कराने के लिए यज्ञ करने की याचना करते हैं। राजा रोमपद के याचना पर ऋषि श्रृंग वर्षा के लिए यज्ञ करते हैं, जिसके बाद यंग देश में वर्षा होने लगती है। वर्षा होने के बाद राजा रोज्ञपद ऋषि से बहुत प्रसन्न होते हैं और उन्हें दक्षिणा में कुछ मांगने के लिए कहते हैं।
तब ऋषि श्रृंग उनकी पुत्री शांता का हाथ अपने हाथ में देने की बात करते हैं। इस प्रकार राजा रोमपद ऋषि श्रृंग के बात को ठुकरा नहीं सकते थे, इसीलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह ऋषि श्रृंग से कर दिया।
सांता का अपने माता पिता से दोबारा मिलन
सांता राजा दशरथ और कौशल्या की इकलौती संतान थी। उसे गोद देने के बाद राजा दशरथ का लंबे समय से कोई संतान नहीं होता है। अपने कुल को आगे बढ़ाने के लिए राजा दशरथ को पुत्र की चाहत थी, जिस कारण वह बहुत चिंतित भी थे। इस चिंता से मुक्त पाने के लिए और पुत्र प्राप्ति की लालसा में भी ऋषि श्रृंग के पास जाते हैं, जो एक महान ऋषि माना जाते थे।
जहां पर वे पैर रखते थे, वहां सूखा गायब हो जाता था और बारिश होने लगती थी। उनके मात्र चरण स्पर्श से वातावरण में शांति फैल जाती थी और वहां समृद्धि रहती थी। राजा दशरथ के पुत्र का पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाने की इच्छा जताई। यज्ञ में निमंत्रण देने के लिए दशरथ ने अपने मंत्री सुमंत को ऋषि श्रृंग के आश्रम में भेजा, जहां पर सुमंत ने राजा दशरथ के द्वारा ऋषि श्रृंग को यज्ञ में निमंत्रण दिया।
ऋषि श्रृंग ने कहा कि मैं यज्ञ में शामिल तो हो सकता हूं परंतु मैं अकेले नहीं आ सकता। यज्ञ कराने के लिए मेरे साथ मेरी पत्नी भी आएगी। सुमंत इस शर्त से सहमत हो जाते हैं, जिसके बाद ऋषिश्रृंग राजा दशरथ को अयोध्या के पूर्व दिशा में यज्ञ कराने के लिए सामान जुटाने को कहते हैं।
ऋषि श्रृंग ने यज्ञ कराया और प्रसाद के रूप में राजा दशरथ को खीर दिया, जिसे अपनी तीनों रानियों को खिलाने के लिए कहा। राजा दशरथ ने खीर को अपनी तीनों पत्नियों में बांट दिया, जिसके बाद कौशल्या और कैकई ने एक एक हिस्सा स्वयं खाया और एक एक हिस्सा सुमित्रा को खिलाया। इस तरीके से सुमित्रा को 2 पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्राप्ति होती है। वहीँ कौशल्या और कैकई को एक एक पुत्र राम और भरत की प्राप्ति होती है।
इसी यज्ञ के दौरान कौशल्या की नजर ऋषि श्रृंग की पत्नी पर पड़ती है, जिसे देख उन्हें अपनी पुत्री शांता की याद आ जाती है। कौशल्या को देखते ही ऋषि श्रृंग की पत्नी उनके चरण स्पर्श करती है। एक ऋषि की पत्नी कौशल्या के चरण को स्पर्श करती है। एक ऋषि की पत्नी होकर कौशल्या के चरण को स्पर्श करना कौशल्या को कुछ समझ नहीं आया।
तब ऋषि श्रृंग की पत्नी ने कौशल्या को सब कुछ बताया और कहा कि मैं आपकी पुत्री शांता हूं, जिसे आपने अंगदेश के राजा रोमपद को गोद दे दिया था। अपनी पुत्री को इतने दिनों के बाद देखने के बाद कौशल्या और दशरथ बहुत प्रसन्न होते हैं। इस तरीके से इतने सालों के बाद कौशल्या और दशरथ का अपनी पुत्री से दोबारा मिलन होता है।
भगवान राम और सांता का मिलन
बहुत लंबे समय तक भगवान राम और उनके तीनों भाइयों को सांता के बारे में नहीं पता था। वे नहीं जानते थे कि उनकी एक बड़ी बहन भी है। इतना साल होने के बाद भी कौशल्या अपनी पुत्री शांता के वियोग को भूल नहीं पाई थी। जिस कारण कौशल्या और राजा दशरथ ने कई बार मतभेद हो जाता था।
अपनी माता के दुख को महसूस करने के बाद भगवान राम ने कौशल्या से प्रश्न किया कि वे कि बारे में सोच कर हमेशा उदास रहती है? तब कौशल्या ने भगवान राम को उनकी एक बड़ी बहन शांता के बारे में बताया और जिसके बाद भगवान राम और अपने तीनों भाइयों के साथ अपनी बड़ी बहन शांता से मिलने जाते हैं। जब भगवान राम अपनी बहन शांता से मिलते हैं तब सांता अपने त्याग का फल उनसे मांगती है। तब भगवान राम हमेशा उनके साथ रहने का वचन देते हैं और इस तरीके से जीवन भर वे एक दूसरे की परछाई बनकर रहते हैं।
भगवान राम की बहन शांता से संबंधित दूसरी कहानी
सांता की कहानी रामायण में सुनने को नहीं मिलती। यही कारण है कि सांता की कहानी को लेकर कई मतभेद होते रहते हैं और भगवान राम की बड़ी बहन शांता के कहानी को बहुत अलग-अलग ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। भगवान राम की बहन शांता की कहानी कुछ इस तारह भी है कि लंका के राजा रावण को भगवान राम के जन्म से पहले ही पता चल चुका था कि उसकी मृत्यु कौशल्या और राजा दशरथ के पुत्र राम से होने वाली है।
जिस कारण रावण राजा दशरथ और कौशल्या के विवाह होने से पहले ही वह कौशल्या को मरवा देने की कोशिश करते हैं। वह कौशल्या को एक संदूक में बंद कर देते हैं और नदी में बहा देते हैं। उसी दौरान राजा दशरथ शिकार करने के लिए जंगल जा रहे थे कि नदी किनारे बहते संदूक देखते हैं, जिसमें उन्होंने कौशल्या को देखा और इस तरीके से कोशल्या की जान बचाते हैं और फिर नारद जी उनका गंधर्व विवाह करा देते हैं।
विवाह के बाद राजा दशरथ और उनकी पत्नी कौशल्या को सांता के रूप में एक पुत्री की प्राप्ति होती है। परंतु शांता दिव्यांग थी। राजा दशरथ ने अपने दिव्यांग पुत्री का इलाज करवाने की बहुत कोशिश की गई। कई वैद्द को दिखाया लेकिन कोई भी सांता की समस्या को दूर नहीं कर पाया। लेकिन फिर एक वैद्द ने कहा कि राजा दशरथ और कौशल्या दोनों एक ही गोत्र के हैं, इसीलिए इनकी पहली संतान दिव्यांग जन्म ली।
यदि वह अपनी पुत्री को ठीक करना चाहते हैं तो इन्हें अपनी पुत्री के माता-पिता को बदलना पड़ेगा। यानी अपनी पुत्री को किसी और को गोद देना पड़ेगा। तब राजा दशरथ अपने मित्र रोमपद जो अंग देश के राजा होते हैं, उन्हें कोई संतान नहीं होता और उनके संतान चाह की इच्छा देख राजा दशरथ अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद दे देते हैं।
देवी सांता का मंदिर
भले ही रामायण में देवी सांता का जिक्र ना किया गया हो परंतु कहीं ना कहीं यह कुछ हद तक सही है। यही कारण है कि दक्षिण के पुराणों में भगवान राम की बहन शांता का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त भारत के कुल्लू में श्रृंग ऋषि का मंदिर हैं, जहां से 60 किलोमीटर की दुरी पर देवी शांता का भी मंदिर हैं।